- कई साल से राजधानी में लंबित हैं 44 मजिस्ट्रेटी जांच

- पीडि़तों का इंसाफ के लिये इंतजार नहीं हो रहा खत्म

pankaj.awasthi@inext.co.in

LUCKNOW :

केस:1

वर्ष : 2001

मडि़यांव थाने में तैनात दारोगा एसके सिंह ने अपनी टीम के साथ बदमाश आलमगीर को मुठभेड़ में मार गिराया। परिजनों का आरोप था कि आलमगीर को पहले पुलिस ने पकड़ा और फिर ले जाकर उसका साजिशन मर्डर कर उसे एनकाउंटर की शक्ल दे दी। परिजनों ने शव रखकर प्रदर्शन भी किया।

जांच स्टेटस: परिजनों के हंगामे और आरोपों को देखते हुए मामले की मजिस्ट्रेटी जांच के आदेश दिये गए। तीन माह में रिपोर्ट तलब की गई लेकिन 18 साल बीतने के बावजूद जांच अब तक जारी है।

केस: 2

वर्ष 2013

आशियाना स्थित कांशीराम स्मृति उपवन में दो बच्चों की डूबने से मौत हो गई। परिजनों ने बच्चों के शव रखकर पार्क प्रशासन पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए जमकर प्रदर्शन किया और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की।

जांच स्टेटस: प्रशासन ने पूरे मामले की मजिस्ट्रेट जांच के आदेश दिये। हालांकि, लंबा वक्त बीतने के बावजूद अब तक जांच पूरी न हो सकी। परिजनों को जांच रिपोर्ट का इंतजार

केस: 3

7 दिसंबर 2016

पुरानी पेंशन बहाली की मांग को लेकर हजरतगंज में प्रदेशभर से आए शिक्षक प्रदर्शन कर रहे थे। इसी दौरान पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया। जिसमें कुशीनगर निवासी शिक्षक राम आशीष सिंह की मौत हो गयी। परिजनों ने पुलिस की मारपीट के चलते मौत का आरोप लगाया। प्रशासन ने मजिस्ट्रेटी जांच का आदेश करते हुए जांच रिपोर्ट 15 दिन में तलब की।

जांच स्टेटस: ढाई साल बीतने के बावजूद अब तक जांच पेंडिंग, रामाशीष के परिजनों को इंसाफ का इंतजार

यह तीन घटनाएं तो बानगी भर हैं, जो यह बताने को काफी हैं कि इंसाफ के लिये कराई गई मजिस्ट्रेटी जांच सिवाय इंतजार देने के कुछ भी नहीं कर रहीं। बरसों बरस बीतने के बाद भी यह जांचें अब भी जारी हैं और पीडि़त अब भी उस ओर टकटकी लगाए देख रहे हैं कि कब जांच पूरी होगी और उन्हें इंसाफ मिलेगा। कोर्ट कचहरी की तरह मजिस्ट्रेटी जांच में भी इंसाफ के लिये लंबा इंतजार सिस्टम की साख पर सवाल खड़े कर रहा है।

44 मामलों की जांच पेंडिंग

राजधानी में 44 ऐसे मामले हैं जिनकी मजिस्ट्रेटी जांच चल रही हैं, यह सभी वे मामले हैं जिनमें कहीं न कहीं सरकारी कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगे हैं जबकि, पीडि़तों में आम जनता है। हैरानी वाली बात यह है कि इन जांचों में से कई जांच ऐसी हैं जो डेढ़ दशक से ज्यादा वक्त बीत जाने के बावजूद अब तक पूरी नहीं हो सकी हैं। आलम यह है कि इन जांचों से इंसाफ की आस लगाए बैठे पीडि़त भी अब उम्मीद खोते जा रहे हैं। जांचों में हो रही देरी के बारे में एक अधिकारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं कि इन जांचों के पूरा न होने के लिये सिस्टम की टेक्निकेलिटी जिम्मेदार है। उन्होंने बताया कि मजिस्ट्रेटी जांच में तमाम सरकारी विभाग शामिल होते हैं। अफसरों के लगातार ट्रांसफर होते रहते हैं, जिसके चलते जांच अधिकारी को बयान व साक्ष्य नहीं मिल पाते। वहीं, जांच करने वाले अफसरों का भी ट्रांसफर होता रहता है जो जांच को प्रभावित कर देती है। वहीं, जब तक नया अफसर उस मामले को समझकर उसकी जांच शुरू करता है, उसका भी ट्रांसफर हो जाता है।

बॉक्स

किस अफसर के पास कितनी जांच

अफसर जांच

एडीएम रेवेन्यू 2

एडीएम एलआर 2

एडीएम सिटी 1

सिटी मजिस्ट्रेट 2

एसीएम सेकंड 8

एसीएम थर्ड 11

एसीएम फोर्थ 6

एसडीएम मोहनलालगंज 1

एसडीएम सदर 1

वर्जन।

इसके लिये समीक्षा की गई थी। सभी मजिस्ट्रेट को पेंडिंग जांचें प्राथमिक्ता के आधार पर निस्तारित करने का आदेश दिया है।

- कौशल राज शर्मा,

डीएम लखनऊ