समीक्षा
बोलीवुड के हालात ठीक नहीं, पैसे और पावर गेम्स और इसपे अवर्डस के टंटे, पिछले कुछ सालों से अवार्ड फंक्शन्स पर सवाल कुछ ज़्यादा ही उठ रहे हैं। क्या इस विषय पर फ़िल्म या व्यंग्य बनना चाहिए? हाँ क्यों नहीं। पर फ़िल्म कैसी बननी चाहिए वो भी एक बड़ा सवाल है और ऐसी फिल्म बनाना एक बड़ा काम। ये फ़िल्म हर लिहाज़ से एक रद्दी का टोकरा है। न तो अच्छा स्क्रीनप्ले न ही कोई अच्छे या याद रहने वाले डायलॉग। ऐसा लगता है कि फ़िल्म स्कूल के कुछ बच्चे एक शाम को आइफा अवार्ड अवार्ड देखने लगे और मज़ाक मज़ाक में स्क्रीनप्ले लिख दिया। फ़िल्म की कॉमिक टाइमिंग ऑफ है और फ़िल्म एक निचले दर्जे की स्नूज़ फेस्ट है, एक वक्त आते आते आपकी हालत क्लौस्ट्रफ़ोबिया पीड़ित जैसी हो जाती है जो जा तो रहा था छत पर हवा खाने पर लिफ्ट में फस गया। फ़िल्म की एडिटिंग और फ़िल्म की स्टाइलिंग भी ऑफ है।
अदाकारी
दिलजीत पंजाबी सिनेमा के हैंगओवर में लगते हैं, सोनाक्षी सिन्हा भी अपने रोल में फिट नहीं है। क्या बोले उनकी भी क्या गलती जब फ़िल्म लिखी ही इतनी घटिया है। फ़िल्म में आधा दर्जन फिल्मी कलाकार कैमियो देते हैं, सब के सव वेस्ट। अगर इस फ़िल्म में कोई एंटरटेनिंग है तो वो हैं करन जोहर, जितनी भी फ़िल्म झिलती है वो उनकी वजह से है। कहीं कहीं पर मेरी हालत राखी जैसी हो जाती थी और मेरे मूह से निकल पड़ता था 'मेरे करण अर्जुन आएंगे'। अगर आप फ़िल्म देखने जाएंगे तो आपका भी यही हाल होगा। बेहतर होगा कि आप अपने ऊपर ये अत्याचार न करें।
रेटिंग : 1 स्टार
Yohaann Bhargava
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