लेकिन ये क्या! हॉकी तो हमारा नेशनल गेम है ही नहीं। ये हमारा नहीं इंडियन स्पोट्र्स मिनिस्ट्री का कहना है। जी हां, एक आरटीआई के जवाब में इंडियन स्पोट्र्स मिनिस्ट्री ने हमारी अबतक की जानकारी को सिरे से खारिज कर हमें शॉक्ड कर दिया।

तो क्या अब तक धोखा दे रहे थे?

1980 के मास्को ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले इंडियन हॉकी टीम के मेंबर सिल्वान्युस डुंगडुंग स्पोट्र्स मिनिस्ट्री द्वारा दी गई इस जानकारी से काफी आहत हैं और खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। गुस्से से लैश लड़खड़ाती जुबान से वे एक सवाल करते हैं, पूछते हैं कि अगर हॉकी देश का नेशनल गेम नहीं तो और क्या है? उनका दूसरा सवाल होता है, इंटरनेशनल लेवल पर किसी दूसरे गेम ने इंडिया को इतनी पहचान दी है क्या? यह सवाल सिर्फ सिल्वान्युस का नहीं उन सभी हॉकी प्लेयर्स का है जिन्होंने गरीबी और तंगहाली में रहकर भी हॉकी को अपना सबकुछ दे दिया सिर्फ इसलिए कि देश का नाम हो और नेशनल गेम की गरिमा बनी रहे।

हॉकी के साथ साजिश तो नहीं?

1984 के लॉस एंजेल्स ओलंपिक में इंडियन हॉकी टीम के मेंबर रहे मनोहर टोप्नो स्पोट्र्स मिनिस्ट्री के इस तरह के स्टेटमेंट को हॉकी के प्रति साजिश बताते हैं। वे कहते हैं कि जब इंडियन हॉकी का गोल्डेन एरा चल रहा था तो इसकी पॉपुलैरिटी चरम पर थी। समय के साथ इस खेल के साथ सौतेला व्यवहार होने और इसमें पॉलिटिक्स होने की वजह से ना सिर्फ कंट्री में इसका क्रेज घटा बल्कि इसकी पॉपुलैरिटी भी कम होती चली गई। वह कहते हैं कि यही वजह है कि अब गवर्नमेंट इससे किनारा करने की कोशिश में है। वे इशारा करते हैं कि किसी दूसरे गेम को नेशनल गेम बनाने की साजिश की जा रही है।

क्या है मामला

लखनऊ की 10 साल की ऐश्वर्य परमार ने आरटीआई द्वारा पीएमओ से नेशनल गेम, बर्ड, फ्लावर, एनिमल, एंथेम आदि के ऑर्डर की कापी मांगी थी। नेशनल गेम को लेकर पीएमओ ने स्पोटर्स मिनिस्ट्री को इसकी जानकारी देने को कहा था। एश्वर्य परमार को भेजे जवाब में कहा गया है कि गर्वनमेंट ने किसी गेम को नेशनल गेम का दर्जा नहीं दिया है। वहीं गर्वनमेंट की पोर्टल में  हॉकी को नेशनल गेम के रूप में दिखाया गया है।

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गर्वनमेंट चाहे जो कहे ना सिर्फ मेरे लिए बल्कि पूरे देश के लिए नेशनल गेम तो हॉकी ही है। गवर्नमेंट बताएगी कि अगर हॉकी नेशनल गेम नहीं है तो और क्या है। क्या आजतक हमारा नेशनल गेम डिसाइड नहीं हुआ? इसका जवाब कौन देगा।

सिल्वान्युस डुंगडुंग, 1980 मोस्को ओलंपिक गोल्ड मेडल विनर इंडियन हॉकी टीम के मेंबर

जब गवर्नमेंट ने यह कह ही दिया है कि कंट्री में नेशनल गेम का दर्जा किसी को नहीं मिला है तो अब यह भी बता दे कि यह दर्जा किसे मिलने वाला है। यह तो पूरी तरह से साजिश है। ऐसे में तो हॉकी के साथ और भी बुरा होगा।

मनोहर टोप्नो, 1984 लॉस एंजेल्स ओलंपिक में इंडियन हॉकी टीम के मेंबर

हॉकी ने ही स्पोट्र्स में इंडिया को वल्र्ड लेवल पर एक अलग पहचान दिलाई है। अब इस तरह की बात करना एकदम ठीक नहीं। हॉकी ने हमें कई बार गर्व महसूस कराया है। पूरे वल्र्ड हॉकी में दूसरा ध्यानचंद नहीं आया। हमारे लिए तो हॉकी ही नेशनल गेम है।

कांती बाई लकड़ा, नेशनल, इंटरनेशनल हॉकी प्लेयर