शिव,विष्णु,ब्रह्मा एवं भविष्य आदि पुराणों के अनुसार यह व्रत कृष्णपक्ष की अष्टमी को किया जाता है।इसे कृष्ण जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है।भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय वृष के चंद्रमा में हुआ था।शास्त्रों में शुध्दा और विद्दा नामक इसके दो भेद हैं,परंतु व्यवहारिक सिद्दांत रूप से तत्काल व्यापिनी (अर्द्ध रात्रि में रहने वाली)तिथि अधिक मान्य होती है।यदि वह दो दिन हो अथवा दोनों ही दिन न हो तो नवमी विद्दा को ग्रहण करना चाहिए।

हिन्दू धर्म में जन्माष्टमी मनाने की प्रथा दो प्रकार से है

स्मार्त और वैष्णव स्मार्त जनों के लिये मथुरा में भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अर्द्ध रात्रि व्याप्ति में जन्माष्टमी मनाई जाती है। वैष्णव संप्रदाय में नवमी विद्दा अष्टमी को ही महत्व दिया गया है, नक्षत्र को नहीं।अतः वैष्णव संप्रदाय में यह पर्व नवमी युता अष्टमी को मनाया जाता है।श्रीकृष्ण जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र योग रहित हो तो केवला तथा रोहणी नक्षत्र युक्त हो तो जयंती कहलाती है।इस योग में किया गया उपवास करोड़ों यज्ञों का फल देने वाला होता है।श्री ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार भारत वर्ष में रहने वाला जो भी प्राणी इस व्रत को करता है वह सौ जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।श्री पदमपुराण के अनुसार जो कोई भी मनुष्य इस व्रत को करता है वह इस लोक में अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति करता है और जो उसका अभीष्ट होता है,उसे भी प्राप्त कर लेता है।श्री विष्णु रहस्य में लिखा है कि अष्टमी नवमी के साथ संयुक्त हो तो कई कुलों की मुक्ति देने वाली होती है।

23 को स्मार्त और 24 को वैष्णव करेंगे कृष्ण जन्म

इस वर्ष 23 अगस्त 2019, शुक्रवार को स्मार्त लोग और 24 अगस्त 2019,शनिवार को वैष्णव लोग इस व्रत को करेंगे।इस बार दिनाँक 23 अगस्त 2019,शुक्रवार को सप्तमी तिथि प्रातः 8.09 बजे तक रहेगी, पश्चात अष्टमी तिथि प्रारम्भ होगी जोकि 24 अगस्त 2019,शनिवार को प्रातः 8.32 बजे तक रहेगी।इसी तरह रोहिणी नक्षत्र 24 अगस्त 2019 को सूर्योदय से पूर्व प्रारम्भ होकर 25 अगस्त को सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाएगा।इस वर्ष दिनाँक 23 अगस्त,शुक्रवार को मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि रहेगी परंतु सूर्योदय के समय सप्तमी तिथि है और रात्रि में रोहिणी नक्षत्र नहीं है अगले दिन 24 अगस्त को सूर्योदय के समय अष्टमी तिथि है,रोहिणी नक्षत्र है,परंतु मध्यरात्रि में अष्टमी तिथि न होकर नवमी तिथि है परंतु रोहिणी नक्षत्र है।इसीलिए लोकोचार रूप से 23 अगस्त को स्मार्त लोग और 24 अगस्त को वैष्णव लोग जन्माष्टमी व्रत करेंगे।

कौन हैं स्मार्त जन और वैष्णव जन

स्मार्त जन:  वेद ,श्रुति ,स्मृति आदि ग्रंथों को मानने वाले धर्म परायण प्रायः सभी गृहस्थी लोग स्मार्त कहलाते हैं।जिनके व्रतादि के साधारण नियम ही प्रायः अनुसरणीय होते हैं।

वैष्णव जन:  वे धर्म परायण भक्तजन जिन्होंने किसी प्रतिष्ठित वैष्णव संप्रदाय(रामानुज,रामानंद,निम्बार्क,बल्लभ आदि) के गुरु से दीक्षा ग्रहण की हो,अपने गले में गुरुदेव द्वारा दी गई कंठी या तुलसी माला या तुलसी माणिक धारण करते हों एवं अपने मस्तक व कंठ आदि द्वादश स्थानों पर(श्री खंड चंदन से या गोपी चंदन से) द्वादश तिलक या ऊर्ध्व पुण्ड्र टीका प्रतिदिन लगाते हों,ऐसे भक्तजन वैष्णव संप्रदाय के कहलाते हैं।

कैसे करें जन्माष्टमी व्रत और पूजा

जन्माष्टमी के दिन प्रातः स्नानादि के उपरांत श्रीकृष्ण भगवान के लिए व्रत करने,उपवास करने एवं भक्ति करने का संकल्प लेना चाहिए।(अपनी मनोकामनाओं की सिद्दियों के लिए जन्माष्टमी व्रत करने का संकल्प) तदोपरांत चौकी पर लाल अथवा पीला वस्त्र बिछाकर कलश पर आम के पत्ते या नारियल स्थापित करें एवं कलश पर स्वास्तिक का चिन्ह भी बनाएं।इन आम के पत्तों से वातावरण शुद्द एवं नारियल से वातावरण पूर्ण होता है।पूर्व या उत्तर की ओर मुहँ करके बैठें,एक थाली में कुमकुम,चंदन,अक्षत,पुष्प,तुलसी दल,मौली,कलावा रख लें।खोये का प्रसाद,ऋतु फल,माखन मिश्री ले लें और चौकी के दाहिनी ओर घी का दीपक प्रज्ज्वलित करें,इसके पश्चात वासुदेव-देवकी,एवं नंद यशोदा की पूजा अर्चना करें,इसके पश्चात दिन में व्रत करने के उपरांत रात्रि 8 बजे पुनः पूजा आरम्भ करें और एक खीरे को काटकर उसमे श्रीकृष्ण का विग्रह रूप स्थापित करें अथार्त श्रीकृष्ण अपनी माँ के गर्भ में हैं।इसके बाद लगभग रात्रि 10 बजे विग्रह अथवा लड्डू गोपाल को खीरे से निकाल कर पंचामृत से उसका अभिषेक करें।पंचामृत में विधमान दूध से वंश वृद्धि ,दही से स्वास्थ्य, घी से समृद्धि ,शहद से मधुरता, बूरा से परोपकार की भावना एवं गंगाजल से भक्ति की भावना प्राप्त होती है।श्रीकृष्ण को पंचामृत का अभिषेक शंख से करने से कई गुणा फल प्राप्त होता है।इसके बाद तीसरे चरण की पूजा रात्रि 12 बजे आरम्भ करें,क्योंकि श्रीकृष्ण जी का इस धरती पर प्राकट्य रात्रि 12 बजे हुआ था।इसके बाद इस समय भगवान श्रीकृष्ण का नीराजन 11 अथवा 12 बत्तियों के दीपक से करें।जन्माष्टमी को भगवान बाल कृष्ण की पूजा के समय 'ॐ श्रियै नमः' 'ॐ वासुदेवाय नमः','ॐ देवकयं नमः','ॐ नंदाय नमः','ॐ यशोदाय नमः','ॐ बलभद्राय नमः','ॐ चण्डिके नमः' आदि मंत्र कहकर प्रणाम करें।

भगवान श्रीकृष्ण के अनुसार

जिस घर में जन्माष्टमी मनाई जाती है, वह घर शत्रुओं के भय से मुक्त हो जाता है।सभी प्रकार की अभीष्ट प्राप्त होती है।

कैसे करें व्रत का पारण

प्रत्येक व्रत के अंत मे पारण होता है, जो व्रत के दूसरे दिन प्रातः काल किया जाता है।ब्रह्मवैवर्त पुराण,काल निर्णय के अनुसार जब तक अष्टमी तिथि चलती रहे या उस पर रोहिणी नक्षत्र रहे तब तक पारण नहीं करना चाहिए।अतः तिथि तथा नक्षत्र के अंत में ही पारण करना चाहिए।व्रत का पारण नंदोत्सव  में कढ़ी चावल से करें एवं तुलसी की पूजा करें।इस तरह व्रत अर्चन करने से व्रती की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और निःसंतान दंपति को संतान प्राप्ति होती है।

अभीष्ट सिद्धि प्राप्ति का दिन है श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

जिन व्यक्तियों को अचानक दुर्घटनाओं की संभावना रहती है, वह श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन अथवा विपरीत परिस्थितियों में निम्न मंत्र का स्मरण करें लाभ मिलेगा।

-ज्योतिषाचार्य पं राजीव शर्मा

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