-क्लास फोर में कन्हैया प्रसाद ने रामविलास को छुआया था खल्ली

PATNA:भगवान से पहले गुरु का स्थान होता है। जिदंगी के लक्ष्य तक पहुंचने का रास्ता हमें गुरु ही बताता है। गुरु ही वह शख्स होता है जो कमियों को दूर कर बेहतरी को सामने लाता है। यह बात सोमवार को केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने पटना सिटी के गुजरी बाजार स्थित दूसरी बेटी सावित्री के घर जीवन के प्रथम गुरु 90 वर्षीय कन्हैया प्रसाद से मिलने के बाद कहीं। केंद्रीय मंत्री लगभग डेढ़ बजे गुरु के घर पहुंच भाव विह्वल होकर गुरु का चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिए। उन्होंने गुरु को टोकरी में फल और सात डि?बे मिठाई भेंट किए। इसके बाद गुरु को शाल से सम्मानित करते हुए पचास हजार रुपए भेंट स्वरूप दिए। गुरु और शिष्य की आंखों में खुशी के आंसू दिखे। पास खड़े गुरु के परिजनों की भी आंखें भर आई। मंत्री ने गुरु से कुशलक्षेम लेते हुए कहा कि मेरी भी तबीयत ठीक नहीं रहती है। मंत्री ने कहा कि हमलोग के समय मां-बाप से अधिक गुरु का दर्जा था। जितना अधिकार हमको कन्हैया मास्टर साहेब पर था शायद इनको उतना अधिकार हमपर नहीं था। हम नरहन गए, कई सम्मेलन में गए लेकिन हमसे मुलाकात नहीं हुई। इस का अफसोस है। छोटे भाई की मौत के बाद दो अगस्त को फुफेरा भाई बीरेंद्र पासवान के साथ बैठा था तो पूछा की हमारे प्रथम गुरु के परिवार में कोई है या नहीं? तब भाई बोला कि अभी वे नरहन में हैं। फुफेरा भाई ने मुझे आज पटना सिटी में गुरु से मिलाने का काम किया।

दो नदी पार कर जाते थे पढ़ने के लिए

गुरु के बांये कुर्सी से बैठे केंद्रीय मंत्री ने बचपन की स्मृतियों को उकेरते बोले कि बचपन में अक्ल आई तो कन्हैया मास्टर साहेब को देखे। पिता को पता था कि दरभंगा जिला के रोसड़ा स्थित जगमोहरा में 1952 में मध्य विद्यालय खुला है। तब पिता ने मुझे जगमोहरा स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा। पांच किलोमीटर दूर स्कूल जाने के लिए दो नदियों को पार करना पड़ता था। पिता का मानना था कि कायस्थ से खल्ली छुआया तो बच्चा तेज होगा। तीन क्लास तक झोपड़ी वाले घर पर ही प्राइवेट में पढ़े थे। चौथे में कन्हैया गुरु ने खल्ली छुआया। 1954 तक उस स्कूल में पढ़े।

शुरू से कुशाग्र बुद्धि के थे रामविलास

गुरु कन्हैया प्रसाद बताते हैं कि उस समय रामविलास के वर्ग में 15-20 लड़के पढ़ते थे। उनमें से रामविलास सबसे तेज था। उसे जो भी बात एक बार बताई जाती थी वह कंठस्थ कर लेता था। कभी उसे वर्ग में डांट नहीं पड़ी थी। सवाल करते ही जबाव हाजिर रहता था। बचपन से ही कुशाग्र बुद्धिवाला रामविलास अनुशासन प्रिय था। गुरु बताते हैं कि उस विद्यालय में 14 महीने बाद वेतन नहीं मिलने से लौटकर ग्राम सेवक की नौकरी कर ली। गुरु कहते हैं कि ऐसा शिष्य आज कहां जो पद पर रहते हुए गुरु को याद करता हो।