- 53 प्रतिशत इंजेक्शन इनफेक्टेड हैं सरकारी अस्पतालों में
- 32 फीसदी इंजेक्शन इनफेक्टेड हैं निजी अस्पतालों में
- वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के सर्वे में सामने आया खतरनाक सच
Meerut । सावधान! मेरठ के सरकारी अस्पतालों में 53 फीसदी इंजेक्टेबल मेडिसन (इंजेक्शन) इनफेक्टेड पाई गई हैं। हाल में हुए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन के नेशनल हेल्थ सर्वे में यह खौफनाक सच सामने आया है। सूत्रों ने बताया कि रिपोर्ट के अनुसार वेस्ट यूपी और एनसीआर के गवर्नमेंट इम्यूनाइजेशन सेंटर्स पर 79 फीसदी इंजेक्शन असुरक्षित पाए गए हैं, वहीं सरकारी अस्पतालों में 68.8 परसेंट इंजेक्शन असुरक्षित मिले। ये इनफेक्टेड इंजेक्शन लोगों को बीमारियां परोस रहे हैं।
सामने आया सच
डब्लूएचओ द्वारा किए गए सर्वे में सामने आया है कि सरकारी अस्पतालों में मरीजों को लगाए जाने वाले 68.8 परसेंट इंजेक्टेबल मेडिसन इनफेक्टेड हैं। वहीं निजी अस्पतालों और नर्सिग होम में लगाए जाने वाले 59.9 परसेंट इंजेक्टेबल मेडिसन इनफेक्टेड मिली हैं। जाहिर है इतनी भारी तादाद में इंजेक्टेबल मेडिसन का इनफेक्टेड होना आम आदमी की सेहत के साथ खिलवाड़ है।
मेरठ का बुरा हाल
वेस्ट यूपी में मेडिकल सिटी मेरठ की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार यहां भी सरकारी संस्थानों में 53 फीसदी इंजेक्शन इनफेक्टेड पाए गए हैं। साथ ही निजी अस्पतालों की हालत ठीक होने के बावजूद भी 32 फीसदी इंजेक्शन इनफेक्टेड पाए गए।
इंडिया की स्थिति
अगर सालाना आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया में लगाए जाने वाले 16 बिलियन इंजेक्शनों में से भारत में 26.30 फीसदी इंजेक्शन यूज किए जाते हैं। डब्लूएचओ की साउथ-ईस्ट एशिया जरनल ऑफ पब्लिक हेल्थ में छपे इस शोध के मुताबिक इंडिया में प्रति व्यक्ति औसतन एक साल में दो इंजेक्शन दिए जाते हैं। इनमें से 62.9 फीसदी असुरक्षित हैं। इस शोध में सरकारी टीकाकरण केन्द्रों और सरकारी अस्पतालों के अलावा नर्सिग होम्स और प्राइवेट हॉस्पिटल्स को शामिल किया गया है। सभी जगह सरकारी अस्पतालों का हाल एक जैसा है।
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डिस्पोजेबल भी सुरक्षित नहीं
इस सर्वे में ये भी सामने आया कि डिस्पोजेबल माने जाने वाले प्लास्टिक के इंजेक्शन भी सेफ नहीं हैं। नए पैक्ड इंजेक्शनों में 18.2 परसेंट डिस्पोजेबल खराब मिले। वहीं कांच के 70.7 फीसदी इंजेक्शन संक्रमित हैं। इंजेक्शन के इनफेक्टेड होने का सबसे बड़ा कारण उनकी मिस हैंडलिंग को बताया गया है। इन्हें लापरवाही से इस्तेमाल किया जाता है, जिससे ये संक्रमित हो रहे हैं।
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जानलेवा बीमारियों का खतरा
ये इंफेक्टेड इनजेक्शन नवजात बच्चों के साथ अन्य मरीजों के लिए बहुत बड़ी समस्या बन रहे हैं। इनकी वजह से घातक बीमारियां होने का अंदेशा बना हुआ है। मगर इस ओर अभी स्वास्थ विभाग का ध्यान ही नहीं है।
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वर्जन
सरकारी संस्थानों में समय-समय पर चेकिंग होती रहती है। साथ ही हम भी दवाई और इंजेक्शन की पूरी जांच पड़ताल करते हैं, लेकिन फिर भी दवा कंपनियों की बदमाशी से कई बार ऐसे इंजेक्शन व दवाई भेज दी जाती है जो मानकों पर खरी नहीं उतरती। मैंने अभी हेल्थ सर्वे की रिपोर्ट को नहीं पढ़ा है।
-डॉ। वीके गुप्ता, सीएमएस जिला अस्पताल
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वेस्ट यूपी व एनसीआर
-गवर्नमेंट इम्यूनाइजेशन सेंटर्स पर इनफेक्टेड इंजेक्शन 79 फीसदी
-सरकारी अस्पतालों में इनफेक्टेड इंजेक्शन 68.8 परसेंट
-नर्सिग होम और निजी अस्पतालों में इंजेक्शन इनफेक्टेड 59.9 परसेंट
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मुख्य वजह है लापरवाही
- संबंधित इंजेक्शन के हिसाब से उचित तापमान न होना।
- इंजेक्शन के रखरखाव में लापरवाही बरतना।
-दवा कंपनियों द्वारा सील लगाने में लापरवाही बरतना
- इंजेक्शन को बहुत ज्यादा दिनों तक अन्य दवाओं के नीचे दबाकर रखना।