-बिना लाइसेंस शुल्क जमा किए शहर में चल रही शराब की दुकानें

-कई करोड़ का बकाया नहीं पहुंचा नगर निगम के खाते में

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VARANASI

आर्थिक संकट से जूझ रहे नगर निगम की इस हालत के लिए खुद जिम्मेदार है। तमाम ऐसे टैक्स और फीस हैं जो उसे सालों से हासिल नहीं हुए। इनमें से ही एक है शराब की दुकानों से मिलने वाला लाइसेंस शुल्क। शहर में खुली शराब की दुकानों से सालाना एक करोड़ रुपए से ज्यादा राजस्व मिल सकता है। लेकिन अफसरों की लापरवाही के चलते बिना लाइसेंस शुल्क जमा किए शराब की दुकानें संचालित हो रही हैं। यह फीस लम्बे समय से बकाया है। नियमानुसार निगम क्षेत्र में शराब की दुकान संचालित करने के लिए आबकारी विभाग के अलावा नगर निगम में निर्धारित शुल्क जमाकर लाइसेंस लेना अनिवार्य है। लेकिन अधिकारियों के संरक्षण में बिना लाइसेंस के अधिकतर दुकानें शराब की बिक्री कर रही हैं।

अप्रैल में ही लाइसेंस अनिवार्य

शहर में सात सौ से ज्यादा शराब व बीयर की दुकानें हैं। देशी शराब की दुकान व बीयर की दुकान के लिए 12000 रुपए लाइसेंस शुल्क है। वहीं अंग्रेजी शराब की दुकान के लिए 24000 रुपए, मॉडल शाप के लिए 18000 रुपए शुल्क निर्धारित है। लाइसेंस बनवाने की समय सीमा भी एक से 30 अप्रैल निर्धारित है। इसके बाद प्रति 12 हजार पर एक हजार रुपए विलम्ब शुल्क वसूलने का भी प्रावधान है, लेकिन लम्बे समय से शराब के दुकानदारों ने लाइसेंस नहीं बनवाया है।

नहीं बना लाइसेंस

शराब की दुकानों से लाइसेंस शुल्क जमा कराने का काम जोनल अधिकारियों का है। इस काम को वो गंभीरता से नहीं करते हैं। शराब कारोबारियों से लाइसेंस शुल्क के लिए दबाव नहीं बनाते हैं। वित्तीय वर्ष का अंतिम माह आने वाला है, लेकिन किसी दुकान का लाइसेंस नहीं बन सका है। यदि पिछले तीन वर्षो की वसूली की जाए तो लाइसेंस के मद में ढाई से तीन करोड़ रुपए का राजस्व मिल जाएगा। जो जर्जर आर्थिक स्थिति को सुधारने में थोड़ी मदद कर सकता है।

मिली भगत से चल रहा खेल

शराब की दुकानों से पिछले कई सालों से लाइसेंस शुल्क नहीं वसूला गया। चर्चा है कि इसके पीछे नगर निगम के अधिकारियों का खेल है। उनकी नजर में सभी शराब की दुकानें होती हैं। उनके गुर्गे दुकानों से धन तो वसूलते हैं लेकिन वो निगम के खाते में नहीं जाता है। बल्कि अधिकारियों की जेब में जाता है। इसके चलते संचालक बेखौफ दुकानों का संचालन करते हैं। वहीं नगर निगम धन का रोना रोता है। शराब की दुकानों से तीन-चार करोड़ लाइसेंस शुल्क वसूला जाता तो बजट के अभाव में रुके तमाम काम हो जाते।

वर्जन

निगम में बिना लाइसेंस शुल्क जमा किए शराब की दुकानें संचालित होने की जानकारी मिली है। आबकारी विभाग से सूची मंगाकर सभी को नोटिस भेजने की तैयारी चल रही है। विलम्ब शुल्क के साथ दुकानों से लाइसेंस फीस वसूला जाएगा।

-आशीष ओझा, सहायक नगर आयुक्त