क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: पिछले तीन दिनों से शहर के लोगों का मूड खराब है. एक अप्रैल से शहर में शराब नहीं मिल पा रही है. शराब दुकानें बंद हैं. ऐसे में खासकर डेली शराब पीने वालों की परेशानी बढ़ गई है. ऐसे लोगों के बीच आम चर्चा है कि पता नहीं कब दुकानें खुलेंगी, मूड ही खराब कर दिया है. जब इतनी देर से दुकानें खुलनी थीं तो तब तक के लिए पहले वाली व्यवस्था ही चालू रखते.

क्या है मामला

एक अप्रैल से झारखंड में शराब बिक्री प्राइवेट के हवाले कर दी गई है. एक अप्रैल से दुकानें खुल जानी थीं. लेकिन, आचार संहिता लगने की वजह से विभाग ने चुनाव आयोग से नई प्रक्रिया बहाल करने की अनुमति मांगी. चुनाव आयोग से अनुमति तो मिली, लेकिन 31 मार्च को. ऐसे में दुकान खोलने की तैयारी करने के लिए प्राइवेट प्लेयर्स को सिर्फ एक दिन का समय मिला. नतीजन, तीन अप्रैल की देर शाम तक भी दुकानें नहीं खुल पाई थीं. गौरतलब हो कि इसके पहले सरकार द्वारा ही शराब की बिक्री की जा रही थी. पांच मार्च को लॉटरी के जरिए प्राइवेट प्लेयर्स का चयन झारखंड में शराब बेचने के लिए किया गया. राज्य भर में उत्पाद विभाग की तरफ से 799 ग्रुप बनाए गएं. इनमें देसी 565, विदेशी 718 और कम्पोजिट 381 दुकानें शामिल हैं.

बार वाले वसूल रहे मनमाना रेट

बार में शराब खरीदने वालों की भीड़ बढ़ने लगी है. मौके का फायदा उठाते हुए बार के लोग मनमाने रेट पर शराब बेच रहे हैं. ऐसे में डेली शराब का सेवन करने वाले लोग मनमाना रेट चुकाने को विवश हैं. एक अनुमान के मुताबिक, इन तीन दिनों में बार मालिकों को करीब 20 लाख से ज्यादा रुपए का फायदा हुआ है.

अवैध शराब कारोबारी की चांदी

इधर, झारखंड में अवैध शराब बेचने वालों की चांदी है. उनकी खपत में करीब दस गुना का इजाफा हुआ है साथ ही मनमाने रेट पर वो भी शराब बेच रहे हैं. मुनाफे का ग्राफ इतना ज्यादा है कि अवैध तरीके से शराब बेचने वालों की कमाई का अनुमान तक नहीं लगाया जा पा रहा है. चोरी-छिपे महुआ और दूसरी तरह की शराब भी मार्केट में फुल डिमांड में हैं. गौर करनेवाली बात है कि विभाग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहा है.