-बिजली कटौती की समस्या से जूझ रहे एसआरएन हॉस्पिटल में जारी है अनियमितता

-सात साल से खाली पड़ा है पद, मंडल का सबसे बड़ा हॉस्पिटल

ALLAHABAD: मंडल के सबसे बड़े एसआरएन हॉस्पिटल में बिजली का जाना आम बात हो चुकी है। आए दिन घंटों बिजली गुल रहने से मरीजों के इलाज में काफी परेशानी आ रही है। यह फाल्ट कभी लोकल होते हैं तो कभी बिजली विभाग की लापरवाही से ऐसी सिचुएशन पैदा होती है। बावजूद इसके हॉस्पिटल प्रशासन की नींद नहीं टूट रही है। जानकर आश्चर्य होगा कि इतना बड़ा हॉस्पिटल बगैर इलेक्ट्रीशियन के संचालित किया जा रहा है।

परेशानियों का करना पड़ रहा है सामना

हॉस्पिटल में बिजली की प्रॉपर सप्लाई की जिम्मेदारी इलेक्ट्रीशियन की होती है। कैंपस में होने वाली फाल्ट और लगाए जाने वाले सामानों के बारे में उसे पूरी जानकारी होती है। उसके अप्रूवल के जरिए ही बिजली के उपकरण फिट किए जाते हैं। लेकिन, एक हजार मरीजों की क्षमता वाले एसआरएन हॉस्पिटल में इलेक्ट्रीशियन का पद होने के बावजूद तैनाती नहीं की गई है। 2011 में अपॉइंटेड इलेक्ट्रीशियन को चिल्ड्रेन हॉस्पिटल स्थानांतरित कर दिया गया था।

एक सप्ताह में तीन बार गुल हुई बिजली

एसआरएन में बिजली सप्लाई के हालात काफी खराब हैं। पिछले सात दिन में तीन बार बिजली गुल हो चुकी है। इतना ही नही, यहां लगे पांच में से दो जनरेटर ही काम कर रहे हैं। घंटों लाइट नहीं रहने पर बैकअप नहीं मिलता है। इससे एक्सरे, अल्ट्रासाउंड आदि जांच ठप हो जाती हैं। लेकिन अभी तक सभी जनरेटर नहीं चालू करवाए जा सके हैं।

ऐसे हालात में फेल है वीआईपी फीडर

ऐसा नहीं है कि एसआरएन हॉस्पिटल को वीआईपी फीडर से सप्लाई नहीं दी गई है। बिजली विभाग ने स्पेशल फीडर से बिजली दी है। लेकिन अधिक लोड होने के चलते रोजाना फाल्ट हो रहे हैं। इससे घंटों बिजली की कटौती होती है। बता दें कि इसी इलाके में कई आईएएस और पीसीएस के आवास भी हैं। अन्य अधिकारी भी इसी एरिया में रहते हैं। उनको भी इसी फीडर से सप्लाई दी गई है। ऐसे में लोड बढ़ने की सजा मरीजों को भुगतनी पड़ती है।

फैक्ट फाइल

3000-3500 पेशेंट्स हर रोज आते हैं मेडिकल कॉलेज

1000 बेड की सुविधाओं से युक्त है एसआरएन

140 कुल डॉक्टरों की हॉस्पिटल में है तैनाती

50-60 मरीज हर रोज होते हैं इलाज के लिए एडमिट

11 कुल वार्ड हैं इस हॉस्पिटल में

बिना इलेक्ट्रीशियन दिक्कत पेश आ रही है। इसकी नियुक्ति मेडिकल कॉलेज प्रशासन द्वारा की जानी है। पिछले कुछ सालों से पद खाली पड़ा है।

-डॉ। एके श्रीवास्तव, एसआईसी