सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वक़ील प्रशांत भूषण के मुताबिक, ना सिर्फ़ ऐसी अर्ज़ी देना ग़लत है बल्कि ऐसा गुजरात सरकार के दबाव के तहत किया गया है.
जिस महिला की गतिविधियों पर कथित तौर पर गुजरात सरकार के कहने पर नज़र रखी जा रही थी उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्ज़ी दी है कि केंद्र सरकार को मामले की जाँच कराने से रोका जाए क्योंकि उनके पिता के कहने पर गुजरात सरकार उनपर नज़र रख रही थी और उनके फोन टैप किए जा रहे थे.
पर बीबीसी से बातचीत में प्रशांत भूषण ने कहा कि जांच होना ज़रूरी है क्योंकि, “सिर्फ इस महिला के फोन टैप नहीं हुए थे, प्रदीप शर्मा समेत कई लोगों के फ़ोन टैप होने के आरोप सामने आए हैं, इसलिए जांच होना ज़रूरी है.”
निलंबित आईएएस अफ़सर प्रदीप शर्मा ने महिला की जासूसी कराने के इस मामले में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी और पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह के शामिल होने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट से सीबीआई जाँच की माँग की है.
उन्होंने कहा, "महिला की जासूसी उनके पिता के कहने पर चाहे हुई हो, पर मेरे फोन क्यों टैप किए गए? मुझे ये जानने का अधिकार है और गुजरात सरकार द्वारा बनाया गया जांच पैनल निष्पक्ष जांच नहीं कर सकता."
बीबीसी ने महिला, उनके पिता और उनके वक़ीलों से बार-बार बातचीत करने की कोशिश की पर कोई जवाब नहीं मिला.
निजता का उल्लंघन
वरिष्ठ वक़ील प्रशांत भूषण के मुताबिक टेलिग्राफ़ क़ानून के तहत फोन टैप करने का जुर्म ‘कम्पाउंडेबल’ नहीं है. यानि फोन टैपिंग के किसी मामले में पीड़ित के माफ़ी देने के फ़ैसले से आरोपों की जांच को रोका नहीं जा सकता.
सीआरपीसी के मुताबिक ‘नॉन-कम्पाउंडेबल’ जुर्म की तहक़ीकात अनिवार्य होती है.
महिला ने अपनी याचिका में कहा है की जासूसी के इन आरोपों की जांच होने से उनकी निजता का उल्लंघन होने की संभावना है.
सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वक़ील सूरत सिंह के मुताबिक ऐसे मामलों में एक व्यक्ति की निजता के सामने सार्वजनिक हित की अहमियत को परखना ज़रूरी हो जाता है.
"अगर अदालत को लगे कि आरोपों की जांच से सामने आनेवाले तथ्यों से जनता को फ़ायदा होगा तो वो इसे महिला के निजी हित के ऊपर रख सकती है."
-सूरत सिंह, सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वक़ील
बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, “अगर अदालत को लगे कि आरोपों की जांच से सामने आनेवाले तथ्यों से जनता के फ़ायदा होगा तो वो इसे महिला के निजी हित के ऊपर रख सकती है.”
सूरत सिंह के मुताबिक अदालत जांच पर मीडिया में रिपोर्टिंग पर पाबंदी लगाकर या ‘इन-कैमरा’ सुनवाई का आदेश देकर भी महिला की निजता का ख़्याल रख सकती है.
गुजरात सरकार का दबाव
वहीं प्रशांत भूषण के मुताबिक जांच को रोकने की याचिका के इस समय किए जाने से भी महिला और गुजरात सरकार के बीच मिलीभगत का आभास होता है.
उन्होंने कहा, “महिला या उसके पिता ने नवंबर में गुजरात सरकार द्वारा बनाए गए जांच आयोग पर कोई रोक लगाने का प्रयास तो नहीं किया, पर अब जब केन्द्र सरकार द्वारा निष्पक्ष जांच की ओर कदम उठाया जाना था तो ये अर्ज़ी डाली गई है.”
पिछले हफ़्ते केंद्रीय क़ानून मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा था कि गुजरात के ' स्नूपगेट' मामले की जांच के लिए केन्द्र सरकार 16 मई से पहले जज का नाम तय कर देगी. उनके बयान का उन्हीं के सहयोगी दलों ने विरोध किया था.
जासूसी का यह मामला तब सामने आया जब गुजरात के एक पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी जीएल सिंघल ने 2009 में फ़ोन पर कई बार हुई बातचीत रिकॉर्ड कर ली और मीडिया ने उसे जारी किया.
इस रिकार्डिंग में एक पुलिस अधिकारी से यह कहते सुना जा सकता है कि 'साहेब' ने एक लड़की की गतिविधियों पर हर पल नज़र रखने को कहा है.
इसके बाद आरोप लगे कि टेप में 'साहेब' गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी थे और फ़ोन पर पुलिस अधिकारी को निर्देश देने वाले व्यक्ति पूर्व गृह राज्य मंत्री अमित शाह थे.
जवाब में भाजपा ने कहा था कि महिला के पिता नरेंद्र मोदी के परिचित थे, अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर आशंकित थे और उनके आग्रह पर ही महिला की सुरक्षा के लिए उनकी निगरानी की जा रही थी.
अब इन आरोपों की जांच को रोकने की महिला की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट शुक्रवार को सुनवाई करेगा.
International News inextlive from World News Desk