नई दिल्ली (आईएएनएस)। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को भारतीय दंड संहिता की धारा 497 को असंवैधानिक, प्राचीन और स्पष्ट रूप से मनमानी करार दिया है। जजों का कहना है कि महिलाओं को 'मवेशी' के रूप में नहीं देखा जा सकता है। चीफ जज दीपक मिश्र ने कहा, 'व्यभिचार को अपराध नहीं माना जा सकता है। पति महिला का मालिक नहीं है। पुरुषों और महिलाओं दोनों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए।' बता दें कि अधिकांश देशों ने व्यभिचार को अपराध के श्रेणी में डालकर ऐसे कानून को समाप्त कर दिया है।

महिलाओं को मवेशी के रूप में नहीं देखा जा सकता
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि किसी भी महिला से समाज के तरीके के बारे में सोचने के लिए नहीं कहा जा सकता है। न्यायमूर्ति रोहिंटन एफ. नरीमन ने अपने फैसले को पढ़ते हुए कहा, 'महिलाओं को मवेशी के रूप में नहीं देखा जा सकता'। इसके बाद जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने एक समेकित लेकिन अलग-अलग फैसले में कहा कि समाज में यौन व्यवहार में नैतिकता के दो सेट हैं- एक महिला के लिए और दूसरे पुरुषों के लिए। उन्होंने कहा कि समाज महिलाओं के साथ समान व्यवहार नहीं करती है, यह पुराना कानून संविधान के तहत गरिमा, स्वतंत्रता और यौन स्वायत्तता के खिलाफ है।

जजों ने फैसले को रखा था सुरक्षित

मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने आठ अगस्त को इस पर फैसला सुरक्षित रखा था। सुनवाई करने वाली पीठ में जस्टिस आरएफ नरीमन, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदु मल्होत्रा शामिल रहे। 158 साल पुरानी भारतीय दंड संहिता की धारा 497 में मैरिटल  संबंधों को अपराध माना गया है। फैसले के मुताबिक, किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी पत्नी से संबंध रखना अब दुष्कर्म नहीं होगा बल्कि इसे व्यभिचार माना जाएगा। इस पर सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि यह कानून लैंगिक समानता की अवधारणा के खिलाफ है। ऐसे मामले में केवल पुरुष को ही दोषी क्यों माना जाए?

तलाक का विकल्प
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा है अगर जीवनसाथी एक दूसरे के शादी के बाहर रिश्ते से खुश नहीं हैं तो उन्हें तलाक लेने का अधिकार है। इसके साथ फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'हां, यदि व्यभिचार के चलती एक जीवनसाथी खुदकुशी कर लेता है और यह बात अदालत में साबित हो जाए, तो आत्महत्या के लिए उकसाने का मुकदमा चलेगा। बता दें कि अदालत के इस फैसला का केंद्र सरकार ने भी समर्थन किया है।

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