- 1957 के बाद दूसरी बार 2010 में 34 महिला विधायक पहुंचीं सदन

- टिकट देने से लेकर पार्टी के अंदरुनी संगठनों में भी प्रतिनिधित्व नहीं

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PATNA: महिला वोट हर पार्टी को चाहिए। महिला वोटर्स को लुभाने-रिझाने का प्रयास सभी पार्टियां करती भी हैं, पर बात जब उनकी लीडरशिप की आती है, तो हर बार इनके साथ पार्टियां बेईमानी ही करती हैं। पिछले विधानसभा चुनावों के आंकड़े को देखें, तो यह साफ हो जाता है कि महिला सशक्तिकरण की बात करने वाली हमारी पार्टियां महिलाओं के हाथ में प्रतिनिधित्व देने में कितना कतराती हैं। यह स्थिति सिर्फ महिलाओं को विधानसभा या फिर लोकसभा में टिकट देने के नाम पर ही नहीं होती, महिलाओं को पार्टी के आंतरिक संगठन में भी उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलता है।

 

महिलाओं के दम पर बनी थी सरकार

बिहार विधानसभा चुनाव-2010 के रिजल्ट आने के बाद यह माना जाने लगा था कि नीतीश की यह अप्रत्याशित बहुमत के पीछे महिलाओं का अहम योगदान रहा है। राजनैतिक विश्लेषकों का भी मानना था कि महिलाओं ने कास्ट के दायरे को लांघकर नीतीश को वोट किया था। इसके पीछे कई तर्क भी दिए गए कि नीतीश ने अपने कार्यकाल में महिलाओं को आगे लाने के लिए कई कदम उठाए। इसके पीछे जदयू के कार्यकर्ता लगे हाथ कई स्टेप भी गिनाते हैं। जैसे लड़कियों के लिए साइकिल और पोशाक योजना का लागू करना, महिलाओं को पंचायती चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण देना, महिलाओं के लिए एमए तक की शिक्षा को फ्री कर देना आदि-आदि। यह सच भी है और नीतीश इस वोट बैंक पर अपनी पकड़ खोना नहीं चाहते हैं। यही कारण है कि वे अक्सर सार्वजनिक सभाओं में कहते नजर आते हैं कि साइकिल चलाती हुई लड़कियां ही विकास की असली तस्वीर हैं। हाल ही में उन्होंने स्कूली लड़कियों के बीच सेनेटरी नैपकिन बंटवाने की योजना भी शुरू की है, पर इतनी कोशिशों के बाद भी जदयू के अंदर महिलाओं की स्थिति बेहतर नहीं मानी जाती है। पार्टी ने महिलाओं को टिकट देने में तो कोताही की ही पार्टी के अंदर भी महिलाओं की भागीदारी समुचित नहीं है।

महिलाओं की भागीदारी है नगण्य

राजनैतिक दलों के अंदर भी महिलाओं की भागीदारी को लेकर उपेक्षा का नजरिया ही दिखता है। पार्टी के प्रदेश कार्यकारिणी, संसदीय बोर्ड, अनुशासन समिति आदि में महिलाओं की पर्याप्त भागीदारी बिल्कुल ही दिखाई नहीं देती है। राजद के 21 सदस्यीय संसदीय बोर्ड में मात्र एक ही महिला सदस्य है। वहीं लोजपा ने प्रदेश कार्यकारिणी में सबसे कम 2.7 प्रतिशत जगह दी है। राजद ने 3.5 प्रतिशत महिलाओं को जगह दिया है। आंकडों की बात करें, तो कार्यकारिणी में सबसे अधिक भाजपा ने 28 प्रतिशत महिलाओं को जगह दी, पर बाकी सभी पार्टियों में जदयू 12.6 प्रतिशत, कांगेस 11 प्रतिशत और वामपंथी पार्टियों में में भाकपा (माले ) प्रदेश कमेटी में भी मात्र 9 प्रतिशत महिलाओं को ही जगह मिली है।

इतिहास दुहराने में सालों बीत गए

बिहार विधानसभा चुनाव के आंकड़ों को देखें, तो हैरत होती है। 1957 में पहली बार बिहार विधानसभा के चुनाव में 34 महिलाएं चुनाव जीत कर आयी थीं। यह इतिहास इसके बाद 2010 के विधानसभा चुनाव में दुहराया। 2010 के विधानसभा चुनाव में सालों बाद 34 महिलाएं जीत कर विधानसभा पहुंंची। 1957 में जहां विधानसभा की कुल सीट 324 थीं, वहंी 2010 में कुल 243 सीटों पर चुनाव लड़े गए थे.  2010 के पहले मात्र दो बार 2005 और 1962 में ही 25 महिलाएं चुनी गयी, जबकि पांच विधानसभा चुनावों में क्रमश: 1990, 1980, 1977, 1972, और 1952 में 13 महिलाएं चुनी गयीं और सन् 2000 और 1985 में 15 महिलाएं चुनी गयीं। सबसे कम 1969 में  4 महिलाएं बिहार विधान सभा पहुंच सकीं। आंकड़े साफ बताते हैं कि महिलाओं की भागीदारी के मामले में सभी पार्टियों पार्टियों ने आधी आबादी की उपेक्षा ही की है।

सबसे कम राजद ने दिया है टिकट

पिछले विधानसभा चुनाव को देखें, तो सबसे कम राजद ने महिलाओं को टिकट दिया था। राजद ने विधानसभा चुनाव 2010 में सबसे कम  6 प्रतिशत महिलाओं का चुनावी मैदान में उतारा, वहीं लोजपा ने 8 प्रतिशत। यही हाल कमोबेश सभी पार्टियों की रही। कांग्रेस ने सिर्फ 8 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देकर अपनी ही पार्टी के संविधान की अवहेलना की थी। मालूम हो कि 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव मैदान में कुल 3523 कैंडिडेट थे। इनमें से नौ प्रतिशत यानी 308 महिला कैंडिडेट थीं। इनमें से कुल 34 महिलाएं जीत कर सदन पहुंची। इन 34 महिला प्रतिनिधि में से 22 जदयू, 11 भाजपा और 1 स्वतंत्र महिला विधायक हुईं।  

Expert says

पार्टियां टिकट सिर्फ और सिर्फ विनेबिलिटी के आधार पर देती हैं। मनी और मसल पॉवर अब के चुनाव में विनेबलिटी डिसाइड करती है और इन दोनों गुणों में महिलाएं पीछे रह जाती हैं, पर वह दिन दूर नहीं जब पार्टियों की मजबूरी होगी कि वो महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व दें। महिलाओं में जागरूकता आ रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में पुरुषों से अधिक महिलाओं का वोट परसेंटेज 54 प्रतिशत था और जिस तरह से महिलाओं को पंचायती राज में आरक्षण दिया गया है, उससे पिछले दस सालों में महिलाओं की एक नई और प्रशिक्षित फौज खड़ी हो ही गयी है, जो आगे अपनी दावेदारी लिए खड़ी होंगी।

महेंद्र सुमन, राजनैतिक विश्लेषक  

विधानसभा में महिलाएं

वर्ष      कुल संख्या   महिला        प्रतिशत

2010    243         34         14

2005    243         25         10

2000    243         15          6   

1995    324         12          3  

1990    324         13          4

1985    324         15          4.6

1980    324         13          4

1977    324         13          4

1972    324         13          4

1969    324         4            1

1967    324         10          3

1962    324         25          7.7

1957    324         34          10

1952    324         13          4