- पटेलनगर इंडस्ट्रियल एरिया में न तो सीसीटीवी सर्विलांस, न गार्ड की है व्यवस्था

- रियलिटी चेक में खुली सुरक्षा व्यवस्था की पोल, वुमेंस सेफ्टी पर उठे सवाल

देहरादून।

दून के इंडस्ट्रियल एरियाज में काम करने वाली महिलाएं सेफ नहीं हैं। इंडस्ट्रियल एरिया में न तो सीसीटीवी सर्विलांस की व्यवस्था है, न एंट्री एरियाज में गा‌र्ड्स की तैनाती। ऐसे में कोई भी यहां बेधड़क घुस जाता है। खाने-पीने की व्यवस्था भी दुरुस्त नहीं है। महिलाएं स्ट्रीट फूड खाने को मजबूर हैं। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पटेलनगर इंडस्ट्रियल एरिया का रियलिटी चेक किया तो इंडस्ट्रियल एरिया में वर्किग वुमेंस की सेफ्टी को लेकर लापरवाही उजागर हुई।

बेरोक-टोक एंट्री

पटेलनगर इंडस्ट्रियल एरिया के एंट्री गेट्स पर ही सिक्योरिटी में लापरवाही उजागर हो जाती है। एंट्री गेट पर गार्ड रूम तो बना है, लेकिन तीन महीने से गार्ड नहीं है। न तो यहां दाखिल होने वाले किसी व्यक्ति का रिकॉर्ड मेंटेन किया जाता है, न ही कोई पूछताछ करता है। यदि कोई भी संदिग्ध यहां किसी वारदात को अंजाम दे दे तो उसे ट्रेस करना आसान नहीं होगा।

सीसीटीवी सर्विलांस भी नहीं

इंडस्ट्रियल एरिया के एंट्री गेट पर सिर्फ एक सीसीटीवी कैमरा लगा हुआ है वो भी वहां एक ढाबे वाले की तरफ से लगाया गया है। जबकि दोनों गेट से लेकर कैंपस में कोई सीसीटीवी सर्विलांस नहीं है। दूसरे गेट के पास एक ठेली लगती है, जहां बड़ी संख्या में लोग सिरगेट या चाय पीने आते हैं, वहां से गुजरने वाली महिलाओं खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं।

बस स्ट्रीट फूड का सहारा

वर्किग वुमेंस के लिए फैक्ट्रियों में खाने-पीने, चाय-नाश्ते की कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में महिलाओं को भी सड़कों पर खड़ी ठेली-रेहड़ी पर खाना खाने आना पड़ता है। जंक फूड और तले-भुने खाने से ही काम चलाना पड़ता है। जो न सेहत के लिहाज से ठीक है न ही सेफ्टी के। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की ओर से जब एक फैक्ट्री के ओनर से बात कर महिलाओं से मिलने की अनुमति मांगी गई तो उन्होंने इसके लिए साफ मना कर दिया।

बाहर के खाने में ये खतरा

हाल ही में चाइल्ड लेबर का सर्वे करने में जुटी दो संस्थाओं ने खुलासा किया था कि इंडस्ट्रियल एरियाज में काम करने वाली महिलाओं को स्ट्रीट फूड या बाहर के खाने के साथ उत्तेजक दवाएं देकर देह व्यापार में झोंका जा रहा है। ऐसे में बाहर का खाना सेफ्टी के लिहाज से भी ठीक नहीं है, खाने में कब कोई क्या मिला दे कहा नहीं जा सकता।

--------------

फैक्ट्री के अंदर तो ठीक ही है लेकिन बाहर सेफ्टी के ठीक इंतजाम नहीं हैं। खाने-पीने के लिए भी बाहर जाना पड़ता है।

- रजनी राणा, वर्कर, बल्ब फैक्ट्री

अक्सर घर से ही खाना लेकर आते हैं। लेकिन, कई बार बाहर का खाना भी खाना पड़ता है। जो सेहत के लिए ठीक नहीं, लेकिन मजबूरी है।

- शगुफ्ता, वर्कर, बेकरी फैक्ट्री