- अट्टहास समारोह के तीसरे दिन व्यंग्यकारों ने शब्दों की सीमा पर रखे विचार

LUCKNOW: प्रतिभा का आकलन एक रचना से नहीं किया जा सकता है। हर लेखक की एक शैली होती है, कभी-कभी वह शब्द सीमा में नहीं बंधता। ये बातें व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी ने रविवार को माध्यम साहित्यिक संस्थान की ओर से कैसरबाग के जय शंकर सभागार में आयोजित अट्टहास सम्मान समारोह के तीसरे दिन व्यंग्य लेखन-सीमा शब्दों की या प्रतिभा की विषय पर कही। जबकि दूसरे सत्र में महिला व्यंग्यकार उपेक्षा और सुरक्षा विषय पर भी चर्चा हुई।

इनका रखना चाहिए ध्यान

पहले सत्र के कार्यक्रम में बोलते हुए साहित्यकार नरेश सक्सेना ने कहा कि शब्द सीमा लेखक का इम्तिहान लेती है। उन्होंने कहा कि राग दरबारी को भले ही बेहद सराहा गया हो लेकिन उसमें कोई स्त्री, बच्चे व अल्पसंख्यक किरदार न होना आश्चर्य पैदा करता है। उपन्यासकार को इन चीजों का ध्यान रखना चाहिए। चर्चा में बोलते हुए साहित्यकार सूरज कांत ने कहा कि आज के दौर में व्यंग्य स्तंभ लेखन सबसे जरूरी है। यहां शब्द सीमा की समस्या अक्सर लेखक के सामने मुंह बाए खड़ी रहती है। साहित्यकार सुभाष राय ने कहा कि कम सीमा के लेखन में शतरें के साथ लिखा जा सकता है। आज व्यंग्य लेखक भी गैरजिम्मेदारी से लिख रहे हैं। कार्यक्रम में संस्थान के अनूप श्रीवास्तव, कप्तान सिंह, हरि जोशी आदि मौजूद थे।

घरेलू विषयों तक सीमित नहीं रहीं महिलाएं

समारोह के दूसरे सत्र में महिला व्यंग्यकार उपेक्षा और सुरक्षा विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। व्यंग्यकार वीना सिंह ने कहा कि महिलाओं के साथ विसंगतियां चलती रहती हैं। महिलाएं पहले सरला से उपेक्षित थीं और आज जटिलता से उपेक्षित हैं। इस मौके पर अमिता दुबे ने कहा कि महिला लेखिकाएं केवल घरेलू विषयों व समस्याओं तक ही सीमित नहीं रही हैं। इस देश में महिला व्यंग्यकारों में सबसे पहला नाम मीरा का आता है। इसमें व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने कहा कि महिला व्यंग्यकारों को केवल कुछ किताब लिखकर पुरस्कार की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। आपके लेखन की पाठकों की जरूरत है। इस मौके पर साहित्यकार डॉ। निर्मला सिंह, साहित्यकार शशि पुरवार, आरिफा, कंचन पाठक, आरती सिंह, शेफाली, शीला पांडे, बीना सिंह, नेहा अग्रवाल आदि महिलाओं ने भी अपने विचार रखें।