नई दिल्ली (पीटीआई)। कोरोना वायरस से निपटने के लिए भारत में जो लॉकडाउन लगा, उसने वायरस से लडऩे में मदद तो की। साथ ही वायु प्रदूषण के स्तर को भी काफी कम कर दिया। वैज्ञानिकों की मानें, तो वायु प्रदूषण से निपटने के लिए निकट भविष्य में संभावित आपातकालीन उपायों में लॉकडाउन को इस्तेमाल किया जा सकता है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस से पहले, विशेषज्ञों ने कई पर्यावरणीय कारकों की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें बंद पड़ी फैक्ट्रियों और लोगों के आने-जाने में कमी के कारण हवा की गुणवत्ता, ध्वनि प्रदूषण, जल की गुणवत्ता में सुधार देखा गया है।

लॉकडाउन के चलते प्रदूषण स्तर गिरा

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एटमॉस्फेरिक एंड ओशनिक साइंसेज बंगलुरु के प्रोफेसर एसके सतीश ने पीटीआई को बताया, "लॉकडाउन के चलते शहरी इलाकों में खराब होती वायु गुणवत्ता में बड़ा सुधार हुआ है। भारत के दक्षिणी हिस्से में पाॢटकुलेट मैटर (पीएम) में लगभग 50 से 60 प्रतिशत की कमी आई। जबकि दिल्ली, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल आदि बड़े राज्यों में 75 परसेंट तक पीएम लेवल नीचे गिरा।' एसके सतीश की मानें, तो वायु को प्रदूषित करने में परिवहन वाहन, उद्योग, फसल-अवशेष और अपशिष्ट को जलाना बड़े कारक साबित होते हैं। उन्होंने बताया कि शहरों में, आधे से अधिक वायु प्रदूषण वाहनों से निकले धुएं के कारण होता है, मगर लॉकडाउन के दौरान सड़क पर वाहनों की संख्या में कमी आने से हवा काफी साफ-सुथरी हो गई।

वायुमंडल में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में हुई गिरावट

मई में जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स जर्नल में प्रकाशित दो अध्ययनों के अनुसार, कोविड-19 महामारी के चलते दुनिया भर में लगाए गए लॉकडाउन के लागू होने के बाद से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड सहित दो प्रमुख वायु प्रदूषकों के स्तर में भारी कमी आई है। सतीश ने कहा कि भारत में उपग्रह डेटा ने देश के अधिकांश हिस्सों में कोविड-19 लॉकडाउन के बाद पाॢटकुलेट मैटर या एयरोसोल के स्तर में भारी गिरावट दिखाई है। उन्होंने कहा, "लॉकडाउन के परिणामस्वरूप मानवीय गतिविधियों को कम करने के कारण वायुमंडल में वायु प्रदूषण के एक प्रमुख घटक, सस्पेंडेड पाॢटकुलेट मैटर (पीएम) के लेवल में पर्याप्त कमी आई है।" वैज्ञानिक ने बताया कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, प्रदूषण के स्तर में भारी कमी मुख्य रूप से जीवाश्म ईंधन जलने के उत्सर्जन में कमी के कारण है।

भविष्य में अपना सकते हैं ये तरीका

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर में अर्थ साइंस के असिस्टेंट प्रोफेसर मनीष कुमार सिंह ने सतीश के साथ सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा, इस तरह के लॉकडाउन उपायों को भविष्य में प्रदूषण का मुकाबला करने में उपयोग किया जा सकता है। कुमार ने पीटीआई को बताया, "मेरी राय में, लॉकडाउन के दौरान भारत में प्रदूषण स्तर में जो कमी आई उसे देखते हुए भविष्य में इस उपाय को आजमाया जा सकता है। इनवॉयरमेंटल इंजीनियर बोस के वर्गीस ने कहा कि जब लॉकडाउन लागू हुआ, तो कोई भी वास्तव में पर्यावरण के बारे में नहीं सोच रहा था क्योंकि लोग पूर्ण लॉकडाउन के प्रत्यक्ष नतीजे को देख रहे थे। इंफोसिस लिमिटेड में ग्रीन इनिशिएटिव्स के प्रमुख वर्गीज ने कहा, 'जैसे-जैसे दिन बीतते गए और हम घर के अंदर रहने की आदत से जूझते गए, हमने अपने आस-पास के वातावरण को देखने योग्य तरीकों में बदलना शुरू कर दिया।' एसके सतीश के अनुसार, लॉकडाउन के उपाय न केवल प्रदूषण के स्तर को कम करने में मदद कर सकते हैं, बल्कि आगामी मानसून पर भी इसका प्रभाव पड़ता है, हालांकि, इस पर एक निर्णायक बयान देना अभी बहुत जल्दी है।

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