कानपुर (अतुल हुंडू)। डिजिटल टेक्नोलॉजी ने फोटोग्राफी के तरीके को पूरी तरह से बदल दिया है। डिजिटल फ्री दिनों की बात करें तो एक अच्छे फोटोग्राफर को एक कुशल कलाकार होने के साथ बहुत से तकनीकी पहलुओं की जानकारी रखनी पड़ती थी। एक बढ़िया तस्वीर लेना विज्ञान और कला का मिला-जुला रूप था। डिजिटल कैमरों का दौर आने के बाद प्रोफेशनल फोटोग्राफरों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है। ऐसा इसलिए है कि अब बहुत सी तकनीकी जानकारियों (जैसे अपर्चर, आईएसओ, डेप्थ ऑफ फील्ड आदि) के बगैर भी तस्वीरें लेना आसान है।

स्मार्टफोन कैमरा की शक्ल में पूरा का पूरा कैमरा बैग हमारी जेब में

एक वह दौर था, जब आपको परिणाम देखने के लिए लबा इंतजार करना पड़ता था। इंतजार रहता था कि कब हमारे कैमरे में लगी फिल्म का रोल पूरा हो और कब उसे धुलवाकर प्रिंट बनवाएं। एक आज का दौर है जब स्मार्टफोन कैमरा की शक्ल में पूरा का पूरा कैमरा बैग हमारी जेब में मौजूद रहता है। फिल्म रोल का स्थान, इमेज सेंसर और मेमोरी कार्ड्स ने ले लिया है। एसएलआर हो या फोन कैमरा, आज हम जब चाहें न केवल स्क्रीन पर फोटो देख सकते हैं बल्कि तुरंत फोटो को एडिट करके ऑनलाइन शेयर कर सकते है। अब तस्वीरें लेना बहुत आसान हो गया है। शायद यही वजह है कि बहुत से लोग फोटोग्राफी को अपने करियर के रूप में चुन रहे हैं। इंटरनेट क्रांति का भी फोटोग्राफी पर बहुत प्रभाव पड़ है। इसकी वजह से फोटोग्राफी कलात्मक क्षेत्र से अधिक व्यावहारिक हो गई है। अब फोटोग्राफर को अपनी पहचान बनाने के लिए सोशल मीडिया और ब्लॉग जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म के बारे में ज्ञान होना भी आवश्यक है।

फोटोग्राफी, जो कभी प्रोफेशनलस का काम था अब एक क्लिक जितनी आसान

एनालॉग फोटोग्राफी के जमाने में फोटो एडिटिंग फोटोग्राफरों के लिए विज्ञान-कथा जैसी थी। एडिटिंग के नाम पर थोड़ बहुत डाजिंग-बनि र्́ग और फोटो को काटकर कोलाज बना लिया जाता था। आजकल इमेज एडिटिंग और पोस्ट प्रोसेसिंग के लिए फोटोशॉप और लाइटरूम जैसे दर्जनों सॉफ्टवेयर और ऐप्स मौजूद हैं। यहां तक कि ऑनलाइन एडिटिंग की सुविधा भी मौजूद है। वास्तव में इमेज पोस्ट-प्रोसेसिंग एक अलग करियर बन गया है। इनसे साबित होता है कि किस तरह डिजिटल टेक्नोलॉजी ने फोटोग्राफी का प्रसार किया है। फोटोग्राफी, जो कभी प्रोफेशनलस का काम था अब एक क्लिक जितनी आसान हो गई है। अब आम लोग भी फोटोग्राफी को अपना चुके हैं। वे छोटे-बड़े पलों को तस्वीरों में कैद करना पसंद करते हैं।

कुछ का तो यह भी कहना है कि फोटोग्राफी को खत्म कर रहा है फोन कैमरा

क्या फोटोग्राफी के इस विस्तार की वजह से इस कला का स्तर गिर रहा है। क्या हर क्लिक को एक 'फोटोग्राफ' कहा जा सकता है? इस बात पर अलग अलग फोटोग्राफी प्रोफेशनल्स की अलग-अलग राय है। एनालॉग फोटोग्राफी को बेहतर बताने वाले कहते हैं कि फिल्म रोल पर काम करने के लिए ज्यादा रचनात्मकता, विचारों में ज्यादा स्पष्टता और कंट्रोल की जरूरत होती है। कुछ का तो यह भी कहना है कि फोन कैमरा फोटोग्राफी को खत्म कर रहा है। वहीं डिजिटल फोटोग्राफी की पैरवी करने वाले कहते हैं कि अगर तकनीक के सहयोग से बेहतर काम किया जा सकता है तो इसमें हर्ज ही क्या है। नया माध्यम सस्ता, बेहतर और तेज है। इसी वजह से आज के युवा फोटोग्राफरों में ज्यादा लोकप्रिय है। लेकिन प्रोफेशनल तौर पर इसके नुकसान देखे जा सकते हैं। तकनीक के आसान और सस्ता होने की वजह से अगर लोग खुद ही बेहतर तस्वीरें ले सकते है तो उन्हें ज्यादातर मौकों पर प्रोफेशनल फोटोग्राफरों की क्या जरूरत। एनालॉग कैमरा के आने के बाद 18वीं सदी पोट्र्रेट्स बनाने वाले बहुत से पेंटर्स भी बेकार हो गए थे।

किसी भी कैमरा से उम्दा तस्वीरें ले सकता है एक अच्छा फोटोग्राफर

जहां तक बात खराब तस्वीरों की है तो यह सही है कि हर क्लिक फोटोग्राफ नहीं होती। एक अच्छी तस्वीर में बेहतर संयोजन, रोशनी का बेहतर इस्तेमाल, सही बैकग्राउंड, कैमरा सेटिंग्स और कैमरा एंगल के चयन का बहुत बड़ा योगदान होता है फिर चाहे वो तस्वीर किसी भी कैमरा से ली गई हो। एक अच्छा फोटोग्राफर किसी भी कैमरा से उम्दा तस्वीरें ले सकता है। माध्यम सिर्फ आपकी कुशलता को बढ़ता है। हमें इन तकनीक से जुड़े बदलावों को स्वीकार करना पड़ेगा। इस टेक्नोलॉजी ने न केवल इस कला को सस्ता और सुलभ बनाया है बल्कि आप को बहुत कुछ नया करने का अवसर भी दिया है। डिजिटल फोटोग्राफी में ज्यादा कंट्रोल होने के चलते कुछ नया करने की संभावनाए हैं। आज लोग पहले की तुलना में अधिक 'विजुअली-लिटरेट' हैं। आम आदमी भी तस्वीरों में छिपी भाषा समझने लगा है। स्मार्टफोन से खुद के पोट्र्रेट लेना इतना पॉपुलर हो गया है कि ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी ने साल 2013 में 'सेल्फी' को 'वर्ड ऑफ द ईयर' घोषित कर दिया था।

कोडक कंपनी के जॉर्ज ईस्टमैन को भी याद किया जाना चाहिए

आज का दिन 'वर्ल्ड फोटोग्राफी डे' के रूप में मनाया जा रहा है। फोटोग्राफी के जनक 'निस्फोर नीप्से' और 'डेगुएर' ने जब शुरुआती तस्वीरें ली होंगी तो उन्होंने कभी नहीं सोच होगा कि सिल्वर साल्ट्स पर आधारित उनकी यह मुश्किल तकनीक तमाम बदलावों से गुजर कर डिजिटल दौर में लोगों के बीच इतनी पॉपुलर हो जाएगी। आज के दिन ईस्टमैन कोडक कंपनी के जॉर्ज ईस्टमैन को भी याद किया जाना चाहिए जिनके 35एमएम फिल्म रोल ने फोटोग्राफी को लोकप्रिय बनाने और मुख्यधारा में लाने में एक बड़ा योगदान दिया था।

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