उन्हें लगता है कि अनइंप्लायमेंट, एजुकेशन और इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसे इश्यूज को टच करके वे यूथ के मुद्दों पर बात कर रहे हैं. लेकिन क्या वाकई में यूपी का यूथ इन मुद्दों को इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा या फिर उसके लिए सबसे अहम मुद्दा कुछ और ही है. आइए डालते हैं यूपी के यूथ की वॉइस पर नजर-

किस सिटी के यूथ चुनाव में किसे बड़ा मुद्दा मानते हैं?

1. करप्शन- इलाहाबाद-83 फीसदी, आगरा-60फीसदी, कानपुर-50फीसदी, लखनऊ-50फीसदी, वाराणसी-54फीसदी, बरेली-54, मेरठ-57फीसदी, गोरखपुर-51 फीसदी

इस सवाल के जवाब में कुछ मामलों में तो अलग-अलग सिटीज के यूथ का ओपिनियन एक जैसा रहा तो कुछ मामलों में उनकी राय जुदा दिखी. करप्शन को सारे सिटीज के यूथ इस चुनाव में सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं. सभी सिटीज के औसतन 57 फीसदी यूथ ने इसे बड़ा इश्यू माना. लेकिन अगर सिटी वाइज देखें तो इसमें एक और इंट्रेस्टिंग फाइंडिंग निकल कर आती है. इलाहाबाद में यूथ की एक बड़ी तादाद यानी करीब 83 फीसदी ने कहा कि करप्शन उनके लिए बड़ा मुद्दा है. दूसरे नंबर पर आगरा रहा, जहां के 60 फीसदी यूथ ने इसे चुना. बाकी शहरों में भी 50-57 फीसदी यूथ ने करप्शन को चुना.

इलाहाबाद इस मामले में भी यूनीक रहा कि यहां के महज 10 फीसदी यूथ ने महंगाई को दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा चुना. वहीं कानपुर, वाराणसी और बरेली ऐसे शहर रहे, जहां सबसे ज्यादा यानी एक तिहाई यूथ महंगाई को दूसरा सबसे बड़ा इश्यू मानते हैं. बाकी शहरों के औसतन 19 फीसदी यूथ ने ही इसे चुना. चौंकाने वाली बात यह रही कि सभी सिटीज के यूथ महंगाई को लेकर उतने कंसंर्ड नहीं दिखे. इलाहाबाद में सबसे कम 6 फीसदी यूथ इसे तीसरा बड़ा मुद्दा मानते हैं जबकि राजधानी लखनऊ और मेरठ के यूथ को बेरोजगारी सबसे ज्यादा सताती है. इन दोनों सिटीज के एक चौथाई यूथ ने महंगाई के बजाय इसे चुनाव में दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा बताया.

2. अपने एरिया के कैंडिटेट्स की डिटेल फीमेल वोटर्स ज्यादा जानती हैं या मेल वोटर्स?

मेल वोटर्स

हां- 49 फीसदी

नहीं- 23 फीसदी

मालूम नहीं कहां से पता करें- 28

फीमेल वोटर्स

हां- 24 फीसदी

नहीं- 43 फीसदी

मालूम नहीं कहां से पता करें- 33

ये नतीजे भी कुछ कम चौंकाने वाले नहीं हैं. करीब आधे मेल वोटर्स ने कहा कि उन्हें ये जानकारी है जबकि फीमेल वोटर्स में यह आंकड़ा आश्चर्यजनक रूप से कम है. सिर्फ एक चौथाई फीमेल यूथ वोटर्स को इसका पता है. मतलब यह हुआ कि कैंडिडेट्स की डिटेल जानने के मामले में यूथ मेल की तादाद फीमेल यूथ से दोगुनी है. इससे फीमेल यूथ वोटर का एक ट्रेंड यह समझ आता है कि सिटी में हो रही पॉलिटिकल हलचल का ज्यादातर फीमेल यूथ वोटर्स को पता नहीं होता. या तो उनकी इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं है या फिर उनका पार्टिसिपेशन इसमें बहुत कम है.

3. कैंडिडेट्स की डिटेल जानने के लिए फीमेल और मेल यूथ वोटर्स किस मीडियम का सहारा लेंगे?

मेल यूथ वोटर्स

इंटरनेट- 17फीसदी

कैंडिडेट की वेबसाइट या फेसबुक पेज-8फीसदी

मीडिया- 46फीसदी

वर्ड ऑफ माउथ-26

पता नहीं-3

फीमेल यूथ वोटर्स

इंटरनेट सर्च इंजन- 23फीसदी

कैंडिडेट की वेबसाइट या फेसबुक पेज-14फीसदी

मीडिया- 40फीसदी

वर्ड ऑफ माउथ-17

पता नहीं-11

इस सवाल के जवाब में एक ऐसी सचाई सामने आई, जिसकी ओर शायद अब तक किसी का ध्यान नहीं गया है. इसमें सबसे अहम बात यह पता चली कि मेल वोटर्स की तुलना में फीमेल वोटर्स का इंटरनेट सर्च इंजन पर ज्यादा भरोसा है और इस मामले में उनकी तादाद मेल वोटर्स से कहीं ज्यादा है. कैंडिडेट की वेबसाइट पर जाकर जानकारी लेने वाले यूथ फीमेल वोटर्स की तादाद तो मेल वोटर्स से दोगुने से थोड़ा ही कम है. |

हालांकि मेल और फीमेल दोनों यूथ वोटर्स ने मीडिया को जानकारी हासिल करने का सबसे बड़ा जरिया बताया लेकिन फीमेल वोटर्स की तुलना में मेल वोटर्स ने मीडिया पर कहीं ज्यादा भरोसा जताया.एक और इंट्रेस्टिंग बात ये भी सामने आई कि फीमेल वोटर्स इस मामले में दूसरों के मुंह से सुनी बात पर ज्यादा विश्वास नहीं करती हैं यानी कान की कच्ची नहीं हैं. जहां 17 फीसदी फीमेल वोटर्स ने वर्ड ऑफ माउथ ऑप्शन चुना, वहीं इससे 10 फीसदी ज्यादा मेल वोटर्स ने वर्ड ऑफ माउथ पर विश्वास जताया.

4. किस एज ग्र्रुप के यूथ वोटर्स को कौन सी पार्टी के कैंडिडेट पसंद है?

18-25 एज ग्र्रुप

नैशनल-28 फीसदी, रीजनल-14 फीसदी, गुड इंडिपेंडेंट कैंडिडेट- 47 फीसदी. पता नहीं- 11 फीसदी

25-30 एज ग्र्रुप

नैशनल पार्टी-35 , रीजनल-12 फीसदी, इंडिपेंडेंट-52 फीसदी, पता नहीं-1 फीसदी

30-35 एज ग्र्रुप

नैशनल-41, रीजननल-8, इंडिपेंडेंट- 48, पता नहीं-3 फीसदी

सेगमेंट वाइज पॉलिटिकल पार्टीज के प्रति यूथ वोटर्स का रवैया हैरान कर देने वाला है. खासकर फस्र्ट टाइम वोटर्स के जवाब से जो ट्रेंड समझ में आ रहा है, वह किसी भी नैशनल पार्टी के लिए अच्छी खबर नहीं है. दूसरे यूथ वोटर्स की तुलना में 18 25 एज ग्र्रुप वाले वोटर्स ने नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट को कम पसंद किया. एक तिहाई से थोड़े कम यानी 28 फीसदी ने कहा कि उन्हें नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट नहीं भाते. इंट्रेस्टिंग यह रहा कि जैसे-जैसे यूथ वोटर्स की एज बढ़ती गई, नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट्स में उनकी रूचि बढ़ती गई. 25-30 एज ग्र्रुप वालों में से 35 फीसदी और 30-35 एज ग्र्रुप वालों में से 41 फीसदी नैशनल पार्टीज के फेवर में दिखे.

सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि यूपी में सत्ता के केंद्र में रहने वाली रीजनल पार्टीज को यूथ ने सबसे कम पसंद किया. डिफरेंट एज ग्र्रुप्स में यह आंकड़ा 8 फीसदी से शुरू होकर सिर्फ 14 फीसदी तक ही रहा. यूपी की रीजनल पार्टीज के लिए यह बुरी खबर हो सकती है क्योंकि यूथ वोटर्स उनके फेवर में नहीं हैं.

इस सर्वे में सबसे दिलचस्प बात यह निकल कर आई कि सभी एज ग्र्रुप के लगभग आधे यूथ वोटर्स ने एक अच्छे इंडिपेंडेट कैंडिडेट को तरजीह दी. न तो नैशनल और न ही रीजनल पार्टीज के कैंडिडेट्स उनकी पसंद बने. इससे इस इलेक्शन में एक अहम ट्रेंड निकलकर सामने आ रहा है. अगर ईमानदार और काम करने वाला इंडिपेंडेंट कैंडिडेट चुनाव में खड़ा होगा, तो सर्वे नतीजों के मुताबिक ये तय है कि यूथ का ज्यादातर वोट उसे ही मिलेगा.

5. फीमेल और मेल यूथ वोटर्स की चॉइस क्या है? नैशनल पार्टीज, रीजनल पार्टीज या फिर गुड इंडिपेंडेंट कैंडिडेट्स?

मेल यूथ वोटर्स-

नैशनल पार्टीज-30

रीजनल-13

गुड इंडिपेंडेंट कैंडिडेट- 49 फीसदी

पता नहीं-8 फीसदी

फीमेल यूथ वोटर्स

नैशनल- 34 फीसदी

रीजनल-13 फीसदी

इंडिपेंडेंट-47 फीसदी

पता नहीं-11 फीसदी

सर्वे के आंकड़ों का जेंडर वाइज एनालिसिस करें तो मेल और फीमेल दोनों यूथ वोटर्स की लगभग आधी आबादी एक अच्छे इंडिपेंडेंट कैंडिडेट के फेवर में ही दिखे. मेल वोटर्स में यह आंकड़ा 49 फीसदी और फीमेल में थोड़ा कम 47 फीसदी रहा

यहां भी सबसे कम वोट रीजनल पार्टीज को मिले. दोनों सेक्शन के वोटर्स का 13 फीसदी ही इनके फेवर में दिखा.

इंडिपेंडेट कैंडिडेट के बाद इनकी चॉइस नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट रहे. एक तिहाई मेल और फीमेल यूथ वोटर्स की पसंद नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट रहे. इन नतीजों से साफ है कि अगर यूथ वोटर्स को अच्छे इंडिपेंडेंट कैंडिडेट नहीं मिले तो उनकी अगली चॉइस नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट्स हो सकते हैं. हालांकि नैशनल पार्टीज के कैंडिडेट का पिछला ट्रैक रिकॉर्ड भी उनकी चॉइस पर असर डालेगा.

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