Case-1

छोडऩी पड़ी जॉब

सिटी की पीलीभीत बाईपास पर बनी एक पॉश कालोनी में रहने वाले अमित (नाम परिवर्तित ) प्राइवेट कंपनी में सेल्स एग्जिक्यूटिव थे। उनको रात में सोते हुए मोबाइल की रिंगटोन सुनाई देती थी। शुरू में तो उन्होंने इसे नॉर्मली लिया। लेकिन धीरे-धीरे प्रॉब्लम इतनी बढ़ गई कि उन्हें

दिन-रात मोबाइल वाइब्रेट होना या रिंगटोन बजना फील होने लगा। प्रॉब्लम की वजह से उन्हें रात में नींद आना बंद हो गई, एंग्जायटी की वजह से उन्हें जॉब तक छोडऩी पड़ी। इस समय वह एक साइकियाट्रिस्ट से ट्रीटमेंट करवा रहे हैं।

Case-2

सफर करने में लगता है डर

सिटी के इज्जतनगर एरिया में रहने वाली रश्मि (नाम परिवर्तित) को अकेलापन अच्छा नहीं लगता, इससे बचने के लिए वह घर से बाहर निकलते समय अपने साथ मोबाइल रखती थीं। धीरे-धीरे उन्हें ऐसी जगह पर जाने से डर लगने लगा जहां मोबाइल में नेटवर्क न आता हो। तकरीबन दो साल पहले शुरू हुई यह प्रॉब्लम अब इतनी बढ़ चुकी है कि वह मोबाइल के नेटवर्क कवरेज एरिया से बाहर होने के डर से सफर करना ही नहीं चाहतीं। इस समस्या के ट्रीटमेंट के लिए घर वालों ने उन्हें डॉक्टर को दिखाया है।

क्या आप भी मोबाइल नेटवर्क से दूर होने के डर से घर से बाहर निकलने से कतराते हैं। रात में सोते हुए मोबाइल की रिंगटोन आपके कानों में गूंजती है। तो सावधान हो जाइए आपको मोबाइल एंग्जायटी की प्रॉब्लम हो सकती है। सिटी में बढ़ते मोबाइल यूजर्स के साथ ही नोमोफोबिया और फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम के केसेज भी बढ़ते जा रहे हैं। इससे परेशान हो कर लोग साइकियाट्रिस्ट्स के पास ट्रीटमेंट के लिए पहुंच रहे हैं। एक्सपट्र्स की मानें तो यूथ्स में यह प्रॉब्लम ज्यादा पाई जा रही है। कई बार यह समस्या इतनी बढ़ जाती है कि पेशेंट को स्लीपिंग डिसऑर्डर के साथ ही मेमोरी लॉस भी हो जाता है। एक रिसर्च में पाया गया कि भारत में हर सौ लोगों में से लगभग 19 लोगों को नोमोफोबिया की प्रॉब्लम होती है।

कभी भी बज उठता है मोबाइल

नोमोफोबिया के साथ ही यूथ्स में फैंटम वाइब्रेशन सिंड्रोम की भी प्रॉब्लम सामने आ रही है। इस सिंड्रोम में पेशेंट को हमेशा यह फील होता है कि उसका मोबाइल बज रहा है। ऐसे में वह बार-बार अपना मोबाइल फोन चेक करता रहता है।

Response न मिलने पर हो जाते हैं परेशान

यूथ्स में एंग्जायटी की एक बड़ी वजह एसएमएस या फेसबुक से भेजे गए मैसेज का रेस्पांस न मिलना भी है। आमतौर पर जब कोई मोबाइल यूजर अपने किसी अजीज को एसएमएस भेजता है तो उसे रिप्लाई का इंतजार होता है। कुछ ही समय में रेस्पांस न मिलने पर उसका यह इंतजार ही एंग्जायटी में तब्दील हो जाता है। वहीं जरूरत के समय कांटेक्ट नंबर न मिलने से भी कई बार एंग्जायटी हो सकती है।

Vulgar calls  से girls में हो रही problem

कई बार लड़कियों के मोबाइल फोन पर अननोन नंबर से वल्गर कॉल्स आती हैं। लगातार ऐसी कॉल्स आते रहने से उनमें मोबाइल का फोबिया डेवलप हो जाता है। हालात यहां तक हो जाते हैं कि धीरे-धीरे उनमें एंग्जायटी पैदा हो जाती है। सिटी के एक साइकियाट्रिस्ट के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में उनके पास ऐसे केसेज आए हैं जिसमें लड़की को अननोन नंबर से वल्गर कॉल्स आने की वजह से एंग्जायटी की शिकायत हुई है। उन्हें कॉल्स से डर जैसा लगने लगता है।

क्या है नोमोफोबिया

नोमोफोबिया का मतलब भी इसके नाम में ही छुपा है। यह इंग्लिश के तीन शब्दों नो मोबाइल-फोन फोबिया से मिल कर बना है। यह एक तरह का मोबाइल फोन से दूर होने का डर होता है। मोबाइल यूजर का फोन खो जाने, उसकी बैटरी डाउन होने की वजह से स्विच ऑफ होने, बैलेंस खत्म हो जाने या मोबाइल कवरेज एरिया से बाहर हो जाने की कंडीशन में इसके सिम्पटम्स नजर आते हैं।

ऐसे बच सकते हैं

*    दो तीन दिनों के गैप पर फोन की रिंगटोन बदलते रहें।

*    मोबाइल की रिंगटोन को हमेशा एसेंडिंग मोड में रखें।

*    मोबाइल चार्जर साथ रखें। इससे बैट्री डाउन होने पर आप पैनिक नहीं होंगे।

*    हो सके तो दो सर्विस प्रोवाइडर्स के सिम यूज करें। ऐसा करने से आपको मोबाइल के कवरेज एरिया से बाहर होने का डर नहीं सताएगा।

*    रात में मोबाइल को स्विच ऑफ कर दें या वाइब्रेशन मोड में रखें।

*    कांटेक्ट्स का बैकअप जरूर रखें।

मोबाइल के बिना मैं फ्रेंड्स से कनेक्ट नहीं रह सकती। मोबाइल कवरेज एरिया से बाहर होने पर किसी इंपॉर्टेंट काल के मिस होने की टेंशन बनी रहती है।

- निधि यादव, स्टूडेंट

जब किसी को एसएमएस करते हैं तो उसके रेस्पांस का भी इंतजार होता है। जब तक रिप्लाई नहीं आता, तब तक बार-बार मोबाइल उठा कर देखते हैं। ये तो मेरे साथ हमेशा होता है।

- आयुषी दुबे, स्टूडेंट

कई बार ऐसा लगता है कि मोबाइल बज रहा है, पर वास्तव में वह बज नहीं रहा होता है। ऐसा तब ज्यादा लगता है जब किसी के फोन का इंतजार हो।

- मनोज कुमार, स्टूडेंट

मोबाइल नो नेटवर्क एरिया में होने पर कोई कॉल मिस न हो इसके लिए मैंने मोबाइल पर मिस कॉल एलर्ट एक्टिवेट कर रखा है, ताकि यह पता लग जाए कि किसने कॉल किया था।

- नितीश चंद्रा, स्टूडेंट

मोबाइल यूजर्स बढऩे के साथ ही लोगों में मोबाइल एंग्जायटी भी बढ़ रही है। कई केसेज में ये बात सामने आई है। यह एंग्जायटी कई तरह की होती है। यूथ्स इसकी चपेट में ज्यादा आ रहे हैं। दरअसल मोबाइल के लिए वे ही ज्यादा क्रेजी होते हैं। इसके लिए पेरेंट्स को अवेयर होने की जरूरत है। वह अपने बच्चों को स्मार्टफोन के बजाय नॉर्मल फीचर वाले फोन दें। साथ ही मोबाइल केवल जरूरत के समय ही यूज करने की सलाह देनी चाहिए।

- डॉ। नवीन सहाय, साइकियाट्रिस्ट