1. क्या पॉलिटिकल पार्टीज को यूथ के लिए अलग से ‘यूथ मेनिफेस्टो’ जारी करना चाहिए?

हां- 70 फीसदी

नहीं- 14 फीसदी

कह नहीं सकते-16 फीसदी

इस सवाल के जवाब में जिस तरह से यूथ ने रिस्पॉन्ड किया, वह पॉलिटिकल पार्टीज की आंखें खोलने के लिए काफी है. तीन चौथाई से थोड़े ही कम यानी 70 फीसदी यूथ ने कहा कि पॉलिटिकल पार्टीज को अलग से यूथ मेनिफेस्टो जारी करना चाहिए. यूथ ने एकसुर में कहा कि पॉलिटिकल पार्टीज यूथ इश्यूज को मोटे तौर पर इंप्लॉयमेंट से ही जोड़ के देखती है, जो गलत है. असल में यूथ के इश्यूज इतने व्यापक हैं कि उसके लिए अलग से मेनिफेस्टो होना ही चाहिए.

यूथ वोटर्स की एक बहुत छोटी आबादी यानी सिर्फ 14 फीसदी ने ही कहा कि उन्हें अलग से यूथ मेनिफेस्टो नहीं चाहिए और फिलहाल पॉलिटिकल पार्टीज जो कर रही हैैं, वह ठीक है.  लगभग इतने ही यानी 16 फीसदी यूथ इस मामले में कन्फ्यूज्ड थे. वे यह तय नहीं कर पाए कि पॉलिटिकल पार्टीज को अलग से यूथ मेनिफेस्टो जारी करना चाहिए या नहीं.

इन आंकड़ों के हिसाब से अगर हम यूथ की ओपिनियन पर गौर करें तो तस्वीर बहुत साफ है. आज यूथ पॉलिटिकल सिस्टम से न तो अलगाव चाहता है और न ही उसे पॉलिटिक्स में आने से गुरेज है. वह इसे जीना चाहता है और डेमोक्रेसी को अपने सपनों को पूरा करने का एक मजबूत मीडियम मानता है. उसकी चाहत है कि पॉलिटिकल क्लास भी उनके इमोशन्स और ऐस्पिरेशंस को समझे और मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में इसे जगह दी जाए. चूंकि पॉलिटिकल पार्टीज का मेनिफेस्टो उनके फ्यूचर के प्लान और एक्शन का जिक्र करते हैं, इसलिए यूथ चाहता है कि इसमें उनके इश्यूज को प्रॉमिनेन्टली जगह मिले. वे अलग से एक यूथ मेनिफेस्टो बनाएं और बताएं कि यूथ के मुद्दों पर वे क्या सोचते हैं और इम्पॉर्टेंट इश्यूज को वो कैसे टैकल करने वाले हैं. इसके बारे में उनका प्लान ऑफ एक्शन क्या है? क्या सोचते हैं डिफरेंट सिटीज के यूथ

2. पॉलिटिकल पार्टीज को अलग से यूथ मेनिफेस्टो जारी करना चाहिए, इस बारे में डिफरेंट सिटीज के यूथ की क्या राय है?

हां-

इलाहाबाद-49 फीसदी,

आगरा-68

कानपुर-58

लखनऊ-73

वाराणसी-77, बरेली-89, मेरठ-86, गोरखपुर-67फीसदी

इसकी जरूरत नहीं

इलाहाबाद-14ीसदी,

आगरा-24

कानपुर-19

लखनऊ-11

वाराणसी-12,  बरेली-9, मेरठ-8, गोरखपुर-18फीसदी

कह नहीं सकते

इलाहाबाद सबसे ज्यादा-37 फीसदी

बरेली सबसे कम-2 फीसदी

यूथ मेनिफेस्टो पर सिटी वाइज वोटर्स की राय भी कम इंट्रेस्टिंग नहीं है. अगर थोड़े बहुत फ्लक्चुएशन की बात छोड़ दें तो सभी सिटीज में एवरेज 71 फीसदी यूथ वोटर्स ने कहा कि हां, पॉलिटिकल पार्टीज को अलग से यूथ मेनिफेस्टो जारी करना चाहिए. इसमें इलाहाबाद के यूथ वोटर्स का ट्रेंड दूसरी सात सिटीज से थोड़ा अलग रहा क्योंकि यहां के यूथ वोटर्स की सिर्फ आधी आबादी यानि 49 फीसदी ने ही इसकी जरूरत समझी. दूसरी सिटीज में में इससे तकरीबन 10 फीसदी ज्यादा यूथ वोटर्स अलग से यूथ मेनिफेस्टो चाहते हैं.

दिलचस्प तरीके से बरेली का यंगिस्तान यूथ मेनिफेस्टो को लेकर ज्यादा उत्साहित है. यहां तीन चौथाई से बहुत ज्यादा यानी 89 फीसदी यूथ इसकी जरूरत महसूस करते हैैं. दूसरे पोजिशन पर मेरठ रहा, जहां के 86 फीसदी यूथ इसके फेवर में रहे. बाकी शहरों में यह आंकड़ा 70 फीसदी के आसपास ही रहा.

अब जानते हैं कि किस सिटी के कितने यंगस्टर्स यूथ मेनिफेस्टो की जरूरत नहीं समझते. इसमें सबसे आगे रहे आगरा के यूथ वोटर्स, जिनकी करीब एक चौथाई आबादी यानी 24 फीसदी मानते हैं कि यूथ मेनिफेस्टो की बात बेमानी है. दूसरे नंबर पर कानपुर रहा, जहां के 19 फीसदी यूथ अपने लिए अलग से मेनिफेस्टो नहीं चाहते. 18 फीसदी के साथ तीसरे नंबर पर गोरखपुर रहा. मेरठ के सबसे कम यानी सिर्फ 8 फीसदी यूथ ने ही कहा कि यूथ मेनिफेस्टो की अलग से जरूरत नहीं है.

अब बात उन सिटीज के यूथ की, जो कन्फ्यूज्ड थे कि यूथ मेनिफेस्टो चाहिए या नहीं. यहां भी 37 फीसदी के साथ पहले नंबर पर इलाहाबाद के यूथ रहे. ये आंकड़े चौंकाते हैैं क्योंकि इलाहाबाद में अवेयर यूथ वोटर्स की एक अच्छी खासी तादाद है, जो या तो पढ़ाई करते हैैं या फिर कम्पीटिशन की तैयारी. इस मामले में महज 2 फीसदी के साथ सबसे कम असमंजस में बरेली के यूथ वोटर्स हैैं. 6 फीसदी के साथ मेरठ दूसरे नंबर पर रहा.

इन आंकड़ों पर गौर करें तो तस्वीर साफ बन रही है. अलग से यूथ मेनिफेस्टो की मांग यंगिस्तान की थिंकिंग में आए बदलाव और पॉलिटिक्स में रुझान के बहुत बड़े ट्रेंड की ओर इशारा करता है जिससे पॉलिटिकल क्लास अब तक या तो अनजान

रहा है या जानबूझकर इसकी अनदेखी करता रहा है. यूथ को उसका हक चाहिए और ये हक वो पॉलिटिकल क्लास से ही मांग रहा है, जो इंडियन डेमोक्रेसी के लिए एक पॉजिटिव साइन है.

अपनी मर्जी से वोट डालूंगा

3. आप अपनी मर्जी से वोट डालेंगे या फिर फैमिली-फ्रेंड या सोसयटी के लोगों से राय-मशविरा भी करेंगे?

अपनी मर्जी से डालेंगे- 78 फीसदी

सलाह लेंगे- 19 फीसदी

कह नहीं सकते-3 फीसदी

इससे पहले हम आपको फस्र्ट टाइम वोटर्स की थिंकिंग बता चुके हैैं कि इस मामले में वो क्या सोचते हैैं. अब जानते हैैं इस मामले में 18-35 एज ग्र्रुप वाले सभी यूथ वोटर्स की ओपिनियन. सर्वे में हमें जो आंकड़े मिले, वो ये बताने के

लिए काफी है कि जब बात वोटिंग राइट के इस्तेमाल करने की हो, तब यूथ सिर्फ अपने जजमेंट पर भरोसा करता है, फैमिली या सोसायटी की ओपिनियन यहां मैटर नहीं करती. हमारे सर्वे में तीन चौथाई से ज्यादा 78 फीसदी यूथ वोटर्स ने कहा कि

वो वोट अपनी मर्जी से ही डालेंगे. सिर्फ 19 फीसदी यूथ वोटर्स मानते है कि इस मामले में वे फैमिली या फ्रेंड्स से राय-मशविरा करेंगे. सबसे दिलचस्प बात यह रही है कि इस बात को लेकर यूथ वोटर्स में कन्फ्यूजन बिलकुल नहीं था कि उन्हें क्या करना है. एक बहुत छोटी तादाद यानी महज 3 फीसदी ने कहा कि उन्हें इस बारे में पता नहीं.ये नतीजे बताते हैैं कि वोट देने के अपने अधिकार के प्रति किस कदर यूथ वोटर्स में अवेयरनेस आई है. उसे पता है कि चेंज लाने का यह सबसे बड़ा जरिया है और इसे वह दूसरों के भरोसे या ओपिनियन पर नहीं छोडऩा चाहता. सारी चीजों को समझकर अपने फ्यूचर के लिए खुद फैसला लेना चाहता है.

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