झाड़ू हो या हाथ छाप, कमल हो या तीर छाप, इस पर होगा यूथ वार। अबकी यूथ पूरे मूड में हैं। जाहिर है कि इस बार पार्टी से ऊपर की बात की जाएगी। अगर यूथ वोटर्स एक साथ रहें, तो फिर पार्टी का नामो निशान मिट जाएगा। एक बड़ी पार्टी के बनने और न बनने का असर तो पड़ता ही है, पर जिसका मुद्दा पब्लिक के जितने करीब होगा, इस बार यूथ भी उसी को अपना वोट देगी। मजे की बात है कि इस बार मैनिफेस्टो से इतर जाकर वोटिंग की जाएगी। मसलन, हर बार की तरह इस बार का मैनिफेस्टो बनाकर अगर कोई लाता है, तो उस पर यकीन नहीं किया जाएगा। इस बार बात ग्राउंड लेवल की होगी, यानी अगर आप नेता बनते हैं, तो आपको यह बताना होगा कि आप उस एरिया के विकास में किन-किन चीजों को मुद्दा बनाते हैं। इस बार ग्राउंड लेवल पर इंडस्ट्री, कम कीमत पर एजुकेशन और हाउस वाइफ के बजट का जो ख्याल रखेगा, उस पर मेहरबानी दोनों तरफ से होगी। यानी एक इंप्लायमेंट को लेकर यूथ वोट देंगे और दूसरा हाउस वाइफ। इस बार यूथ के लिए जो सबसे जरूरी चीज है, वो यह कि आप वोट देने से पहले एक बार पार्टी और उस कैंडिडेट का मैनिफेस्टो जरूर पढ़ लें, ताकि उसके बारे में सही जानकारी मिल जाए। गरीबी-महंगाई हट नहीं सकती है, इसलिए आंसू पोछने वालों से ज्यादा जरूरत आंसू न आने देने वालों की है। इस बार के यूथ एजेंडा या कहें तो वोटर के एजेंडे में जॉब प्रायोरिटी होगी। जो धर्म-जाति, छाप और मुहर के ऊपर होगी। आने वाले दिनों में यूथ वोटर पांच साल बेरोजगारी का दंश नहीं झेल सकते हैं।

मधु निखिल, सोशल एक्टिविस्ट

]]>