दैनिक जागरण आईनेक्स्ट के एसोसिएट एडिटर उमंग मिश्र की समीक्षा

भारत के लिए अगर कोई 402 मैच खेल कर रिटायर हो तो माना जाएगा कि काफी इंटरनेशनल क्रिकेट खेल कर रिटायर हुआ लेकिन अगर उसका नाम युवराज सिंह हो तो फिर लगता है कि कम खेला।

पहली बार अंडर 19 विश्वकप में चमके युवराज

युवराज सिंह का नाम पहली बार तब चमका था जब उनके नेतृत्व में भारत ने श्रीलंका में खेला गया अंडर 19 विश्व कप जीता था और युवराज उस टूर्नामेंट में मैन ऑफ द सीरीज बने थे। कुछ महीने बाद ही वो भारतीय टीम में थे। भारत के लिए युवराज का पहला मैच ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ था और वो भी विदेशी धरती पर आईसीसी के टूर्नामेंट में।उस ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ जिसमें ग्लेन मैग्रा और ब्रेट ली जैसे खतरनाक गेंदबाज थे।युवराज ने अपने पहले ही मैच में 80 गेंद में 84 रन बनाए थे।रनों से ज्यादा ये बात अहम थी कि उनकी टाइमिंग और बॉल को कनेक्ट करने क्षमता से ये स्पष्ट हो गया था कि 19 साल का वो युवा कोई सामान्य खिलाड़ी नहीं है।लेकिन युवराज का करिअर उतना आसान नहीं रहा जितना उनकी प्रतिभा को देखते हुए होना चाहिए था।

टेस्ट में दिया 'असली टेस्ट'

भारत के लिए उनके 402 मैचों में टेस्ट मैच सिर्फ 40 हैैं।हालांकि उन्होंने टेस्ट मैचों में भी तीन शतक और ग्यारह अर्धशतक बनाए हैैं लेकिन टेस्ट टीम में वो कभी स्थाई जगह नहीं बना सके।उस दौर में भारत की टेस्ट टीम में जगह बनाना आसान भी नहीं था और अक्सर वो टीम में होकर ग्यारह में नहीं शामिल हो सके। कई बार ऑफ स्पिन का सामना करने में वो उतने सहज नहीं दिखते थे अगर गेंदबाज मुथैया मुरलीधरन के स्तर का हो।

दिलों पर राज किया क्रिकेट के युवराज ने

19 साल की उम्र में भी बड़े से बड़े गेंदबाज को कुछ नहीं समझा

वन डे में युवराज का रिकॉर्ड शानदार है। 304 वन डे खेलना ही बहुत बड़ी बात है। 14 शतक, 52 अर्धशतक, 8701 रन और करीब 88 का स्ट्राइक रेट । 58 इंटरनेशनल टी-20 मैचों में उनका करीब 137 का स्टाइक रेट है। लेकिन ये आंकड़े भी नहीं बता पाते के दरअसल युवराज सिंह थे क्या। युवराज सिंह एक ऐसे फाइटर थे जिसने 19 साल की उम्र में भी बड़े से बड़े गेंदबाज को कुछ नहीं समझा। पहली ही सीरीज में एलन डोनाल्ड जैसे गेंदबाज को इतना परेशान कर दिया था कि डोनाल्ड स्लेजिंग करने लगे थे। तेज गेंदबाजों को हिट करने के मामले में युवराज की क्षमता अद्भुत थी। उनकी किलर इंसटिंक्ट कमाल की थी। तभी वो बार बार टीम में कम बैक करने में सफल होते थे।  युवराज के करिअर की शुरआत में सौरव गांगुली जैसा कप्तान मिला जो युवा खिलाडिय़ों को आगे बढ़ाता था। सौरव के दौर में टीम इंडिया ने नए स्तर की आक्रामकता सीखी। सहवाग,युवराज और हरभजन जैसे खिलाड़ी उस बदली हुई लड़ाकू टीम इंडिया का चेहरा थे।

युवराज का सपना था सचिन का सपना पूरा हो

सचिन तेंदुलकर को युवराज अपने गुरू जैसा मानते थे। सचिन का सपना था विश्व कप जीतना और युवराज का सपना था सचिन का सपना पूरा हो।और दोनों सपनों का पूरा होना युवराज के करिअर का हाई प्वाइंट बना। युवराज के करिअर की सबसे बड़ी सफलता भारत को 2011 का विश्व कप जिताना था जिसमें वो मैन ऑफ द सीरीज घोषित हुए।युवराज ने  गांगुली युग से धोनी युग का संक्रमण काल देखा। 2007 में धोनी की कप्तानी में पहले टी-20 विश्व कप की जीत के नायकों में थे युवराज। उस विश्व कप के दौरान ही वो  घटना हुई थी जब इंग्लैैंड के एंड्रयू फ्लिंटॉफ की छींटाकशी से भड़के युवराज ने अगले ओवर में स्टुअर्ट ब्रॉड की 6 गेंदों पर लगातार 6 छक्के मार दिए थे।

दिलों पर राज किया क्रिकेट के युवराज ने

टाइमिंग और पावर हिटिंग का कॉम्बिनेशन

युवराज अपने दौर के सबसे लोकप्रिय खिलाडिय़ों में से थे।उनकी ऑफ ड्राइव सौरव गांगुली की कवर ड्राइव जैसा मखमली अहसास देती थी और वो जब तेज गेंदबाज की बॉल को मिडविकेट के ऊपर से उटाकर मारते थे तो पावर हिटिंग का नायाब नमूना पेश करते थे। टाइमिंग और पावर हिटिंग के इसी कमाल के कॉम्बिनेशन के कारण उनकी बैटिंग देखना आनंददायक था। युवराज के साथ उनके प्रशंसकों के मन भी ये टीस रहेगी कि काश थोड़ा और खेल सकते युवराज।

दिलों पर राज किया क्रिकेट के युवराज ने

कैंसर से जंग लड़कर लौटे मैदान पर

युवराज का निजी जीवन उनके करिअर से ज्यादा कठिन था। पिता योगराज सिंह एक  पूर्व टेस्ट क्रिकेटर थे जिनके अंदर ये कुंठा थी कि वो अपने करिअर में कुछ खास नहीं कर सके। माता पिता में अलगाव था। बचपन ही युवराज के लिए चुनौतियों के लडऩे की पाठशाला बन गया। जब क्रिकेट स्टार बने तो एक फिल्म स्टार से अफेयर के बाद ब्रेक अप हुआ। उनके व्यक्तिगत जीवन का प्रभाव उनके करिअर पर न पड़ता ये संभव नहीं था। लेकिन जीवन भर का संघर्ष भी जैसे कम रहा हो कि कि सबसे बड़ी सफलता विश्व कप विजेता टीम का सदस्य बनने के कुछ ही महीनों के भीतर उन्हें कैसर डिटेक्ट हो गया।आसमान से जमीन पर पटक दिए जाने वाली मानसिक अवस्था में युवराज जिस तरह कैंसर से लड़कर जीते और फिर क्रिकेट के मैदान में वापसी की जो अपने आप में अभिप्रेरणा की एक मिसाल है। युवराज सिंह को हमेशा उनकी ईश्वर प्रदत्त प्रतिभा से साथ साथ उनके संघर्ष, मारक क्षमता, दृढ़ता और नेवर से डाई स्पिरिट के लिए भी याद किया जाएगा। बेहतर तो ये रहा होता कि ये जांबाज खिलाड़ी अपने साथियों और प्रशंसकों के बीच खेल के मैदान से संन्यास का ऐलान करता लेकिन कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता और जितना युवराज को मिला वो भी हासिल करना किसी भी क्रिकेटर का सपना होगा।

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