कई बार लगा बैन, सेहत पर ध्यान

सबसे पहले रीवा के महाराज ने अकाल पड़ने पर 1907 में इस दाल की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया था। 1961 में देश के सभी राज्यों ने इस दाल की खेती और बिक्री पर बैन लगा दिया लेकिन पश्चिम बंगाल में इस दाल का प्रयोग होता रहा। यही नहीं 2000 में नये राज्य के तौर पर उभरे दत्तीसगढ़ में भी इस दाल का धड़ल्ले से उपयोग जारी रहा। 1970 में सरकार ने कड़े कदम उठाए और इसकी खेती करने वाले किसानों की फसल जला दी गई तथा उनके बैल जब्त कर लिए गए। सरकार का तर्क था कि रिसर्च में ये बातें सामने आई हैं कि इस दाल के इस्तेमाल से इंसान और जनवर दोनों के सेहत पर खराब असर पड़ रहा है।

सरकार ने हटाए बैन, अजीब तर्क

2008 में महाराष्ट्र सरकार ने इस दाल से बैन हटा दिया और राज्य में एक बार फिर खेसारी दालों की बिक्री शुरू हो गई। लोगों को भी इससे कोई परहेज नहीं रहा और लोग धड़ल्ले से इस दाल का प्रयोग करने लगे। अब एक बार फिर से इस दाल पर से बैन हटा दिया गया है। सरकार ने इस बार महंगी दाल का हवाला देते हुए तर्क दिया है कि उत्पादन बढ़ाने के लिए यह कदम जरूरी है। साथ ही इससे महाराष्ट्र में होने वाली किसानों की सुसाइड पर भी रोक लगेगी। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च की ओर से कहा गया है कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) को इस पर लगे बैन को हटाने की जानकारी दे दी गई है।

खाने से न्यूरोलॉजिकल डिसॉर्डर

मेडिकल रिसर्च में यह बात सामने आई थी कि इस दाल के सेवन से व्यक्ति न्यूरोलॉजिकल डिसऑडर लैथरिज्म का शिकार हो सकता था। इस बिमारी से व्यक्ति के निचले अंगों (पैरों) में अपंगता आ जाती है। सरकार ने इसके बुरे प्रभाव देखने के बाद ही किसानों से इसकी खेती करने को मना कर दिया था। रिसर्च में यह बात भी सामने आई थी कि इस दाल या इसकी फसल के सेवन से जानवरों पर भी बुरे प्रभाव देखने को मिले थे। इसके ज्यादा सेवन से दुधारू जानवर कम दूध देते थे।

लोकप्रिय इतनी कि एक्सचेंज मनी जैसी

खेसारी दाल भारत में कभी इस कदर लोकप्रिय थी कि कई इलाकों में एक्सचेंज मनी के तौर पर इस दाल का इस्तेमाल होता था। यानी किसी सामान के बदले उतनी कीमत की दाल ही दे दी जाती थी। खेसारी दाल बिलकुल अरहर दाल जैसी दिखती है, जिसका फायदा कई लोग उठा रहे थे। वह इस दाल को अब तक बाकी दालों में मिलाकर बेच रहे थे। ऐसा कई सालों से चल रहा था।

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