कल्पना कीजिए, आपको एक बार उस मोमेंट को फिर से जीने का मौका मिले, जिस लम्हें में दुनिया के इतिहास में भारत का नाम फक्र से लिखा गया था। जब 1983 पहली बार भारत ने विश्व कप जीता था। क्रिकेट के लिए ही, नहीं हर हिंदुस्तानी के लिए वह उनके अस्तित्व की जीत का दिन था। एक सिनेमा थियेटर में आप बैठे हों और पूरा माहौल व अनुभव आपको स्टेडियम का मिले, ऐसा लगे कि सामने कपिल देव मैदान में उतरे हैं और भारत को जीत दिला रहे हैं। 83 उन सभी अंडर डॉग लीजेंड्री क्रिकेटर्स को सम्मान देता हुआ, इमोशन से भरपूर, एंगेजिंग फिल्म है। इसे हर हाल में पूरे परिवार के साथ थियेटर में ही देखने जाना चाहिए और हाँ मास्क के साथ थोड़े रूमाल या टिश्यू पेपर भी साथ रखें, क्योंकि कई बार इस लम्हें को जीते हुए आपकी आँखें गीली होंगी। पढ़ें पूरा रिव्यू

फिल्म : 83

कलाकार : रणवीर सिंह, जीवा, हार्डी संधू, ताहिर भसीन, ऐमी विर्क, पंकज त्रिपाठी, चिराग पाटिल, निशांत दहिया, साकिब सलीम, साहिल खटटर, जतिन सरना, धैर्य, बोमन ईरानी, नीना गुप्ता, दिनकर शर्मा
निर्देशक : कबीर खान
रेटिंग : चार स्टार

क्या है कहानी
फिल्म के अंत में कपिल देव अपनी जुबानी में बताते हैं कि जिस दिन हम वर्ल्ड कप जीता था, सभी भूखे पेट सोये थे, क्योंकि देर रात खाने को कुछ नहीं मिला था लेकिन उससे अच्छी नींद फिर कभी नहीं आई थी, क्योंकि उस दिन भारत ने इतिहास रचा था। एक ऐसी टीम, जो कभी किसी बड़ी टीम से नहीं जीत सकी थी। उनके सामने वेस्ट इंडीज खड़ी थी। दो बार विश्व चैम्पियन। पूरी दुनिया सिर्फ भारत का मजाक बना रही थी। खुद इसके खिलाड़ी भी हनीमून ट्रिप समझ कर लंदन गए थे। लेकिन बिना किसी तकनीक, बिना किसी के मार्गदर्शन के, वहीं अंडर डॉग प्लेयर्स ने मिल कर इतिहास रचा। कपिल देव जैसे कप्तान के साथ। कपिल देव ने एक ऐसा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया, जिसके बारे में उन्हें खुद भी अनुमान नहीं था। लेकिन अफ़सोस कि उस दिन बीबीसी स्ट्राइक पर थी और इस दिन का कोई वीडियो दस्तावेज के रूप में नहीं है।

बेहद खूबसूरत कहानी गढ़ी
भारत में क्रिकेट के जूनून को जगाने की नींव 83 से ही पड़ी थी। कबीर खान ने ट्रिब्यूट के रूप में एक बेहद खूबसूरत कहानी गढ़ी है, जिसमें कुछ भी उतावलापन नहीं है। यह क्रिकेट का ही जूनून था कि अब के दौर में एक दूसरे को मौका-मौका कह कर छेड़ने वाले भारत-पाकिस्तान में उस वक़्त बॉर्डर पर गोलीबारी होती थी, ताकि भारतीय सैनिक ठीक से कमेंट्री न सुन पाएं। टीवी सेट अभी-अभी घरों में आने शुरू हुए थे। ऐसे में उस समय के माहौल, वास्तविकता को फ़िल्मी पर्दे पर कबीर खान ने दर्शकों को किरदारों की बैक स्टोरी में फंसाने की बजाय, सिर्फ उस मोमेंट में ही घुले रहने का मौका दिया है। लंबे समय बाद कोई फिल्म आई है, जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जाना चाहिए।

क्या है अच्छा
निर्देशक ने वास्तविक फुटेज के साथ, फ़िल्मी फुटेज का जो जस्टापोज दिखाया है, वह अद्भुत है, किरदारों का चयन, छोटी बारीकियां भी ध्यान में रखी गई है। नैरेशन, इमोशन सबकुछ सटीक है। फिल्म में काफी सरप्राइज हैं। फिल्म जिंदगी के कई लेशन सिखाती है कि आप ठान लें तो दुनिया में कुछ भी हो सकता है और कभी किसी को कमजोर न आंकिये। फिल्म में वेस्ट इंडीज के कलाकारों का चयन भी एकदम वास्वतिक क्रिकेटर्स से मेल खाते हैं।

क्या है बुरा
फिल्म के अंत में अगर सभी खिलाड़ियों की वर्तमान तस्वीर या मौजूदगी दिखाई जाती तो और मजा आ जाता।

अदाकारी
फिल्म के कलाकारों का चयन कबीर खान ने जिस कदर किया है। शानदार है। रणवीर सिंह एक मोमेंट के लिए भी रणवीर सिंह नजर नहीं आये हैं, उन्होंने कपिल के किरदार को इतनी खूबसूरती से निभाया है। कबीर ने इस फिल्म में बाकी कलाकारों के साथ पूरी तरह न्याय किया है। साहिल खटटर, जीवा, जतिन और ऐमी का काम जबरदस्त है। हार्डी, साकिब, ताहिर, चिराग, निशांत ने भी अच्छा काम किया है। पंकज त्रिपाठी ने मान सिंह की भूमिका व हैदराबादी ऐक्सेंट में कमाल कर दिया है।

वर्डिक्ट
लंबे समय के बाद कोई फिल्म इमोशनल रूप से दर्शकों को बाँधने में कामयाब रहेगी।

Review by: अनु वर्मा

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