लंदन ओलंपिक खेलों में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए सभी देशों के खिलाड़ी अंतिम तैयारियों में जुटे हैं। हो सकता है कि उनमें से कुछ नशीली दवाओं के डोप टेस्ट में पकड़े जाएं, लेकिन आप यह न सोचें कि पदक जीतने के लिए यह तरीका आज के एथलीट ही आजमाते हैं। हकीकत यह है कि जब से ओलंपिक खेल शुरू हुए हैं, इसके साथ विवाद और बदइंतजामी के किस्से भी जुड़ते रहे हैं।

ईसा के जन्म से 776 वर्ष पूर्व शुरू हुए ओलंपिक खेल धनकुबेरों के दान पर चलते थे। इसके बदले में उन्हें मनपसंद स्पर्धा में विजेता घोषित किया जाता था। रोमन शासक नीरो को एक बार रथ दौड़ का विजेता बना दिया गया, जबकि हकीकत में वह फिसड्डी रहा था। उस जमाने में दमखम बढ़ाने वाली नशीली दवाएं तो उपलब्ध नहीं थीं लेकिन खिलाडिय़ों को हारने के लिए रिश्वत देना आम बात थी। ईसा पूर्व 332 में एथेंस के एक खिलाड़ी को अपने विरोधी को घूस देते रंगे हाथ पकड़ा गया था। ईसा पूर्व 12 में एक पहलवान का पिता विरोधी के पिता को रिश्वत देने की कोशिश में पकड़ा गया था।

खेल के नियमों को धता बताने के लिए खिलाड़ी झूठ का भी सहारा लेते थे। वर्ष 93 में मिस्र का मुक्केबाज ओपोलोनियस प्रतियोगिता की ट्रेनिंग के लिए समय नहीं पहुंच पाया था। उसने आयोजकों को बताया कि हवाओं ने उसका रास्ता रोक रखा था। जबकि हकीकत में वह किसी दूसरी खेल प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर लौटा था जो समय पर पूरी नहीं हो पाई थी। उसे उस साल के ओलंपिक में भाग लेने से रोक दिया गया था।

अगले कुछ दिनों में दुनिया भर के 17 हजार एथलीट लंदन ओलंपिक की शानदार मेजबानी का आनंद उठाएंगे, लेकिन हजारों साल पहले खिलाडिय़ों को घोर बदइंतजामी में अपनी हुनर का प्रदर्शन करना पड़ता था। लगभग तीन हजार साल पहले शुरू हुए ओलंपिक खेलों में पेयजल और साफ-सफाई की कोई व्यवस्था नहीं होती थी। खिलाडिय़ों को तंबुओं में सोना पड़ता था। यहां तक कि जीतने पर उन्हें कोई पुरस्कार भी नहीं मिलता था।