मौलाना लियाकत अली और सरदार रामचंद्र की अगुवाई में हुआ था आंदोलन

तहसील पर था इलाहाबादियों का कब्जा, इलाहाबादियों ने चलाई थी अपनी सरकार

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PRAYAGRAJ: 15 अगस्त 1947 को भारत देश अंग्रेजों के चंगुल से आजाद हुआ। संगम नगरी के लोग 90 साल पहले ही आजादी का स्वाद चख चुके थे.अलग बात है कि यह आजादी सिर्फ दस दिनो के लिए ही थी। इलाहाबाद के मुस्लिमों और हिन्दुओं की एकता की ताकत दिखाते हुए मौलाना लियाकत अली और सरदार रामचंद्र के नेतृत्व में अंग्रेजों को खदेड़ते हुए तहसील पर कब्जा किया था। अकबर के किला से अंग्रेजों को भगाया था। करीब 30 लाख रुपये मूल्य का एक लाख 40 हजार चांदी के सिक्के लूट लिए थे। अफसोस की बात ये है कि इतिहास के पन्नों में इस हकीकत को शामिल नहीं किया गया। केवल दो लाइन ही जिक्र किया गया।

फूंक दिया था अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल

अंग्रेजों के खिलाफ पहला विद्रोह 1857 की क्रांति से शुरू हुआ था। इसमें इलाहाबाद की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण थी। पूरे देश में जब अंग्रेजों की हुकूमत थी, लोगों पर जुल्म ढाया जा रहा था, उस समय कौशांबी के रहने वाले मौलवी लियाकत अली ने और सरदार रामचंद्र ने इलाहाबाद और आस-पास के इलाकों में अंग्रेजों के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका था।

लियाकत के नाम से कांपते थे अंग्रेज

मौलाना लियाकत अली का नाम ब्रिटिश हुकूमत में जब-जब लिया जाता था तो अंग्रेज कांप उठते थे। इतनी दहशत थी कौशाम्बी के महगांव निवासी क्रांतिकारी मौलाना लियाकत अली खान की। 1857 में जब हिंदुस्तानियों ने अंग्रेजो के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाया और अवध में इसे जोर शोर से आगे बढ़ाया जा रहा था उस वक्त बगावत की लपटें इलाहाबाद और उसके आस पास के इलाकों में भी पहुंच चुकी थी।

भारतीय सैनिकों को उकसा कर किया हमला

6 जून 1857 को पूरे इलाहाबाद में पुलिस चौकियों पर धावा बोल दिया गया। किले की ओर बढ़ते दबाव के बीच प्रयाग के पंडों ने भारतीय सैनिकों को बगावत के लिए उकसाया और सुअर व गाय की चर्बी वाले कारतूस की खबर देकर अंग्रेजों के विरूद्ध भड़का दिया। सैनिकों का साथ मिलते ही इलाहाबाद में बगावत ने विकराल रूप ले लिया।

लेफ्टीनेंट को मारी थी गोली

अंग्रेज लेफ्टीनेंट अलेक्जेंडर ने देशी पलटन को बागियों पर गोली चलाने का हुक्म मिला। लेकिन, सैनिको ने क्रांतिकारियों के खिलाफ हथियार उठाने से मना कर दिया। अलोपीबाग के सैनिकों ने लेफ्टीनेंट अलेक्जेंडर को गोली मार दी। बागियों ने यूरोपीय अधिकारी को मार दिया और उनके बंगले जला दिये थे। बागियों ने दारागंज और किले के नजदीक की सुरक्षा चौकियों पर कब्जा कर लिया और बंदियों को मुक्त करा दिया गया।

11 दिन रही आजादी

क्रांतिकारियों ने तत्काल तार लाइन काट दी और तीस लाख रुपए का खजाना भी हासिल कर लिया। सात जून 1857 की सुबह कोतवाली पर क्रांति का हरा झंडा फहरा दिया गया और इलाहाबाद आजाद करा लिया गया। यह आजादी सिर्फ 11 दिन ही रही। इलाहाबाद में क्रांति को कुचलने के लिये बहुत बडी सेना के साथ कर्नल नील को इलाहाबाद भेजा गया। उनके खूंखार नेतृत्व में 18 जून को इलाहाबाद पर अंग्रेजों का दोबारा अधिकार हो गया।

इतिहास के पन्नों में बस एक-दो लाइन में इस घटना को जगह दी गई। पूरे घटनाक्रम को गायब कर दिया गया। जिसे काफी खोज कर लोगों के सामने लाया गया। इलाहाबाद के इस गौरव गाथा को पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की गई थी। लेकिन अभी तक जगह नहीं मिल सकी है।

वीरेंद्र पाठक

समाज सेवी

आजादी के 90 वर्ष पूर्व ही अपना इलाहाबाद आजाद हो गया था। मौलवी लियाकत अली और सरदार रामचंद्र ने इलाहाबादियों की सरकार चलाई थी। इस गौरव गाथा की जानकारी जब शहीद वाल से जु़ड़ा तब हुई।

रविशंकर द्विवेदी

सिविल डिफेंस

हम तो अभी तक बस यही जानते हैं कि अंग्रेजों की गुलामी से 15 अगस्त 1947 को ही आजादी मिली थी। 1857 में ही इलाहाबाद दस दिन के लिए आजाद हो गया था, इसकी जानकारी हमें नहीं है। पहली बार ऐसी जानकारी मिल रही है।

अदिती

बीएससी स्टूडेंट

आजादी की लड़ाई में लाखों लोगों ने योगदान दिया, जो गुमनाम हो गए। क्योंकि इतिहास को बनाने में भी राजनीति हुई। कुछ विशेष लोगों तक ही इतिहास को समेटा गया।

शिवम पांडेय

बीएससी स्टूडेंट