(अनिमेष मुखर्जी) Archies Review In Hindi: 90 के दशक में दो तरह के बच्चे होते थे। एक साधारण मिडिल क्लास वाले जो चाचा चौधरी, ध्रुव, नागराज जैसी कॉमिक्स पढ़ते थे। दूसरे थे अमीर इंग्लिश मीडियम वाले बच्चे जिनके घर में अंग्रेजी अखबार के अलावा आर्चीज कॉमिक्स आती थी। जोया अख्तर और रीमा कागती ने इसी आर्चीज कॉमिक्स पर आधारित फिल्म बनाई है। तीन बड़े स्टार किड्स को लॉन्च करने वाली यह फिल्म कैसी है आइए जानते हैं।

रेटिंग - 1.5 स्टार (मेकअप और सेट डिजाइनिंग के चलते)

आम हिंदुस्तानियों के लिए नहीं है आर्चीज
फिल्म बनाने वाले लोगों ने बचपन में आर्चीज पढ़ी होगी। उनके आस-पास सबने आर्चीज पढ़ी होगी, क्योंकि ये सब अंग्रेजी मीडियम के अमीर घरों के बच्चे थे। इस चक्कर में इन्होंने मान लिया कि भारत में सबको आर्चीज के बारे में पता है, जबकि हकीकत इसके उलट है। डायरेक्टर और राइटर की पिछली फिल्मों के चलते उनकी प्रतिभा पर कोई शक नहीं है, लेकिन इस बार, फ़िल्म शुरू होने के बाद 10 मिनट बाद आपको पता ही नहीं चलता है कि इनमें से कौन सा किरदार क्या है। कौन हीरो है? कौन हीरोइन है? कौन कॉमिक रिलीफ और कौन निगेटिव। फिल्म बनाने वाले मानकर बैठे थे कि आर्चीज़ के किरदार तो दुनिया के हर इंसान को रटे हुए हैं, तो सब देखते ही समझ जाएंगे। फिल्म देखते हुए आप रट्टा मारते हैं कि कौन आर्ची है, कौन वेरोनिका कौन बेट्टी और कौन जगहेड, लेकिन सबके एक जैसे खराब एक्सप्रेशन, एक जैसी खराब हिंदी आपको फिर से कंफ्यूज कर देती है।

एक्टिंग की बात करें, तो जैसे पहलवान का बेटा पहलवान नहीं होता वैसे ही शाहरुख खान की सुपुत्री सुहाना खान कैमरे पर कतई सहज नहीं हैं। ऐसा लगता है कि ये उनका हॉलिडे होमवर्क था, जिसे उन्हें मजबूरी में पूरा करना पड़ा। खुशी कपूर अपनी पीढ़ी में अर्जुन कपूर और जाह्नवी कपूर से निचले दर्जे की एक्टिंग कर रही हैं। अगस्त्य नंदा बाकी सबसे थोड़ा बेहतर हैं, लेकिन इतना नहीं कि किसी अच्छे एक्टर के सामने दो मिनट भी टिक सकें। फिल्म में हर स्थापित ऐक्टर ने बहुत बुरी एक्टिंग की है।

फिल्म की अच्छी बात
फिल्म के सेट और कॉस्ट्यूम शानदार हैं। शंकर अहसान लॉय का बैकग्राउंड म्यूजिक कुछ मौकों पर अच्छा लगता है। शायद यही वजह थी कि फिल्म का ट्रेलर लोगों को पसंद आया था।

कुल मिलाकर
फिल्म एक ठंडे बासी गुलाब जामुन की तरह है जिसमें हलवाई ने चाशनी नहीं डाली। मतलब दूर से देखकर मन ललचाता है, लेकिन पास जाने पर हर तरह से निराशा होती है। लोग कह सकते हैं कि आर्चीज़ की कहानी को पहले से न जानने वाले लोग इसकी बुराई कर रहे हैं। मसला यह नहीं है। भारत में शायद ही किसी ने आयरन मैन, कैप्टन अमेरिका, ब्लैक पैंथर जैसी कॉमिक्स पढ़ी थीं, लेकिन अच्छी तरह से बनी फिल्मों ने तमाम दर्शकों को अपने साथ जोड़ लिया।

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