PATNA: जिस तरह बहुसंख्यक की मनमानी खतरनाक है उसी प्रकार अल्पसंख्यकवाद की मानसिकता भी खतरनाक है। यह बात प्रसिद्ध पत्रकार सरूर अहमद ने मंगलवार को हज भवन में विश्व अल्पसंख्यक दिवस पर उर्दू दैनिक इन्कलाब द्वारा खुशहाल अकलियत, मजबूत देश विषय पर आयोजित संगोष्ठी में कही। उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के अधिकारों के हनन का खतरा तानाशाही से अधिक लोकतंत्र में रहता है। इसकी मिसाल श्रीलंका है। वहां कभी तानाशाही नहीं रही लेकिन तमिल भाषी हिन्दुओं पर जो अत्याचार किया गया, उसकी मिसाल दुनिया और खास तौर से दक्षिण एशिया में नहीं मिलती। पाकिस्तान में अभी हाल ही में आसिया बी के साथ जो कुछ हुआ, उस पर ध्यान देने की जरूरत है। हम जहां बहुसंख्यक हैं वहां क्या कर रहे हैं। सरूर अहमद ने कहा कि हिटलर डिक्टेटर नहीं था। वह चुनाव जीत कर जर्मनी का शासक बना और फिर तानाशाह बन गया। उन्होंने कहा कि भारत के मुसलमानों को इस मानसिक बीमारी से निकलना चाहिए कि वह बहुत पिछड़े हैं। शिक्षाविद् जफर अहमद गनी ने कहा कि संविधान में हक होने के बाद भी सरकारें अल्पसंख्यकों द्वारा चलाए जा रहे शिक्षा संस्थानों में हस्तक्षेप करती हैं जो अफसोसजनक है। इन्कलाब के स्थानीय संपादक अहमद जावेद, याकूब अशरफी, मनीष शांडिल्य, मंसूर आलम, रियाज़ अज़ीमाबादी और बिहार राज्य शिया वक्फ बोर्ड के चेयरमैन इरशाद अली आजाद ने भी संबोधित किया। बिहार में इन्कलाब के मार्केटिंग डिप्टी मैनेजर तारिक़ इकबाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया।