पटना (ब्यूरो)। सरकार की ओर से बेहतर सुविधा उपलब्ध कराने के लिए पुस्तकालयों को आवश्यक सहायता दी जा ही है। मगर पटना के पुस्तकालयों में रीडरों की संख्या दिन-प्रतिदिन घटते जा रही है। पुस्तकालयों में सुविधाओं के अभाव में पाठकों की संख्या में कमी आई है। विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने शहर के पुस्तकालयों में जाकर हाल जाना तो अधिकांश पुस्तकालयों में कर्मचारी के अलावा एक भी पाठक नहीं मिले। इस संबंध में रिपोर्टर ने पड़ताल किया तो पता चला कि कहीं हाउस कीपिंग स्टॉफ पुस्तकालय चला रहे हैं तो कहीं चपरासी के भरोसे चल रहा है। पढि़ए विस्तृत रिपोर्ट।

सालों से नहीं हुआ पुस्तकालय अध्यक्ष की नियुक्ति
रिसर्च स्कॉलर और पुस्तक प्रेमियों के लिए राज्य सरकार की ओर चल रहे
बिहार रिसर्च सोसाइटी, काशी प्रसाद शोध संस्थान, हिन्दी ग्रंथ आकदमी, राष्ट्र भाषा परिषद, बिहार राज्य अभिलेखागार, मैथिली अकादमी, संस्कृत अकादमी, भोजपुरी अकादमी, दक्षिण भाषा अकादमी, बांग्ला आकादमी में पिछले कई सालों से पुस्तकालय अध्यक्ष पद पर नियुक्ति नहीं हुई है। कर्मचारियों के सेवानिवृत
होने के बाद भर्ती की प्रक्रिया नहीं की जाती है। पुस्तकालयों में रिसर्च कार्य के लिए आने वाले रिसर्च स्कॉलरों को सही -सही जानकारी नहीं मिलने के चलते रिसर्च स्कॉलर पुस्तकालयों में आना बंद कर दिए हैं।

ए.एन सिन्हा इंस्टीट्यूट
विश्व पुस्तक दिवस के अवसर पर शहर के पुस्तकालयों की हाल जानने के लिए सबसे पहले हमारी टीम ए.एन सिन्हा इंस्टीट्यूट के पुस्तकालय पहुंची। पुस्तकों से भरा पुस्तकालय में एक भी पुस्तक प्रेमी नहीं दिखे। वहां लगे कुर्सियों की स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा था कि कई माह से पुस्तक प्रेमी यहां नहीं आ रहे है। रिपोर्टर द्वारा पूछने पर नाम न छापने के शर्त पर एक कर्मचारी ने बताया कि सहायक पुस्तकालय अध्यक्ष भूपेन्द्र नारायण मल्ल्कि हाउस कीपिंग कंपनी के स्टाफ है। 2017 से पहले ये इसी संस्था में कार्यरत थे। इससे ये अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये रिसर्च स्कॉलर को कितनी जानकारी दे सकेंगे।

घट रही है पाठकों की संख्या
इसके बाद हमारी टीम पटना संग्रहालय के शोध एवं प्रकाशन शाखा बिहार रिसर्च सोसाइटी पहुंची। यहां स्वर्ण लिखित पाण्डुलिपियों के अलावा हजारों दुर्लभ ग्रंथ रखे हुए है। इन ग्रंथों पर शोध करने के लिए पटना ही नहीं देश विदेश से शोधार्थी शोध कार्य के लिए आते रहते हैं। मगर विभाग के प्रभारी डॉ। शिव कुमार मिश्र के पास राज्य सरकार के दरभंगा, मधुबनी सहित पांच संग्रहालयों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। जिस वजह से सप्ताह में एक दिन से ज्यादा समय नहीं दे पाते हैं। बाहर से आने वाले शोधार्थियों को परोक्ष में जानकारी देने वाला कोई विशेषज्ञ नहीं है। इस वजह से पुस्तकालय में भी दिन प्रति दिन पाठकों की संख्या घट रही है।

रिसर्च स्कॉलर आते हैं लाइबे्ररी
नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी ऑफ इंडिया सहित फ्री पाठय सामग्री उपलब्ध कराने वाले अधिकांश साइट्स की ओर से पाठकों की रूझान बढने लगी है। पटना में संचालित पुस्तकालयों के कर्मचारियों ने बताया कि 90 फीसदी लोग ऑन लाइन पुस्तक अध्यन करना शुरू कर दिए है। पुस्तकालय में वही लोग आते हैं जो रिसर्च संबंधित कार्य करते हैं। क्योंकि कई रिसर्च पेपर ऑनलाइन उपलब्ध नहीं । इस संबंध में पटना म्यूजियम के प्रभारी शोध एवं प्रकाश शाखा डॉ। शिव कुमार मिश्र ने बताया कि राज्य के विभिन्न पुस्तकालयों में दुर्लभ ग्रंथ एंव पाण्डुलिपियों संग्रह है। जिसे समुचित रख रखाव एवं संरक्षण की आवश्यकता है। ऐसा नहीं है की पाठक नहीं आते हैं। रिसर्च कार्य वाले पाठक हमेशा आते रहते हैं।