40 साल से बेघर

संजय गांधी बॉयोलॉजिकल गार्डेन में पिछले 40 साल से कई जानवर बगैर घर के रह रहे हैं, तो कइयों के केज टूट चुके हैं। इन सारे केज को 40 साल पहले बनाया गया था। पटना जू में 11 सौ से ज्यादा जानवर हैं, पर केज बस 50 के आसपास। कुछ को छोड़ दें, तो पटना जू में लगभग सभी जानवरों को दोयम दर्जे का समझा जाता है। उन्हें रहने के लिए ना तो केज दिया गया है और ना ही प्रॉपर वे में सफाई हो रही है।

हिरण-सियार की वैल्यू नहीं

जू में 50 से ज्यादा हिरण हैं, लेकिन उनके लिए कोई केज नहीं है। एक चबूतरा टाइप बनाया हुआ है, जिस पर उनकी दिन-रात गुजरती है। सियार का भी यही हाल है। सियार के केज के ऊपर लोहे का जाल बना हुआ है। बारिश और धूप के कारण वह भी टूट चुका है। अब तो जाल टूटकर लटक रहा है, जिससे सियार पूरी तरह केज के अंदर और बाहर घूम भी नहीं सकते. 

सांभर के लिए भी नो अरेंजमेंट

सांभर के केज में झरना लगा हुआ है। उसके घूमने के लिए एक बड़ा सा स्पेस भी है, पर नाइट हाउस नहीं है। बारिश और धूप से बचने के लिए इनके पास भी कोई ऑप्शन नहीं है। कुछ ऐसा ही हाल चीतल का भी है। हरिण परिवार के मुख्य प्राणी चीतल की संख्या पटना जू में बहुत है, लेकिन इसके रहने के लिए भी कोई नाइट हाउस नहीं है। इन्हें भी धूप और बारिश में अपना दिन-रात बाहर ही गुजारना पड़ता है।

चिडिय़ों के केज में चूहों का राज

जू में चिडिय़ों के केज पर चूहों का राज है। केज के फर्श पर चूहों ने कब्जा कर रखा है। चिडिय़ों केज में इधर-उधर नहीं जा पाती हैं। हर जगह चूहों ने बड़ा-बड़ा गड्डा बना रखा है।

नॉक्टलर हाउस अभी तक अधर में

रात में विचरण करने वाले तमाम जानवरों के लिए नॉक्टलर हाउस बनाया जाना था, पर पिछले 10 सालों से यह लटका हुआ है। जू के बोटैनिकल विंग के अरविंद कुमार का कहना है कि इस हाउस में चमगादर, उल्लू, छोटी जंगली बिल्ली आदि को रखना था, पर अब तक इसे बनाया नहीं जा सका है।

World के बेस्ट जू का बुरा हाल

वल्र्ड के तमाम जू में पटना जू दूसरे पोजिशन पर आता है। यहां सबसे अधिक गैंडा है। अफसोस, गैंडा के रहने के लिए भी नाइट हाउस नहीं है। पिछले कई सालों से गैंडे के लिए खुला नाइट हाउस बनने की बात कही जा रही है, पर अब तक फाइनली बना नहीं है।