- गांधी घाट पर डॉल्फिन डे प्रोग्राम में विशेषज्ञों ने रखी राय

PATNA :

प्रतिवर्ष 5 अक्टूबर को राष्ट्रीय जलीय जीव डॉल्फिन के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए डॉल्फिन डे मनाया जाता है। सोमवार को डॉल्फिन डे 2020 का आयोजन गांधी घाट, एनआईटी के पास किया गया। इसमें बतौर मुख्य वक्ता जूलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया पटना के प्रभारी अधिकारी एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ गोपाल शर्मा ने इसके विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की । उन्होंने हाल ही में प्रधानमंत्री की ओर से प्रोजेक्ट डॉल्फिन की घोषणा और उसके महत्व पर प्रकाश डाला। प्रोजेक्ट डॉल्फिन की चर्चा में उन्होंने बताया कि सिर्फ नदी के डॉल्फिन ही नहीं बल्कि समुद्री डॉल्फिन को बचाने का भी अभियान चलेगा। जिसकी तैयारी शुरू हो गई है। गंगा के डॉल्फिन अब मछुआरों के प्रयास से बच रहे हैं लेकिन अब मिशन मोड में काम करने की जरूरत है।

जाल में फंसने से बचाएं

डॉ। गोपाल ने कहा कि मानसून के दिनों में डॉल्फिन गंगा से निकल कर दियारा के क्षेत्रों में एवं छोटी नदियों में चली जाती है। जिससे करेंटी जाल में फंस कर या किसी खेत में फंस कर मौत हो जा रही है। समय-समय पर ऐसी खबरें भी मिलती रही है। राज्य सरकार की ओर से इन्हें बचाने के लिए 2500 से 20000 रुपए तक की राशि दिए जाने का प्रावधान की है । उन्होंने कहा कि अब नियम काफी सख्त हो गए हैं। सरकार पैसे खर्च रही है उसके बाद भी अगर इसकी हत्या होती है तो संबंधित लोग पर जिम्मेदारी होगी। डॉ। शर्मा ने कहा कि जहां लोग मछली पकड़ते हैं वहां यदि डॉल्फिन अठखेलियां कर रही हो तो काफी सावधानी की जरूरत है। तभी उन्हें जाल में फंसने से बचाया जा सकता है।

फंसे तो आवाज ना करें

डॉक्टर गोपाल ने डॉल्फिन के जाल में फंसने की स्थिति में उसे बचाने के तरीकों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि यदि यह करेन्टी जाल में फंस जाए तो सोंस सांस कैसे लेगा? सबसे पहले यह देखना होगा कि डॉल्फिन का मुंह जाल में किधर फंसा है। उस समय जल्दी-जल्दी नाक /नोस्ट्रिल को पानी के उपर लाना होगा क्योंकि बहुत देर डॉल्फिन अगर जाल में फंसकर पानी के अन्दर रहेगा तो डूब कर मर भी सकता है। तेज चाकू से पहले थूथन के तरफ से जाल को कांटे की नोस्ट्रिल / नाक जाल से बाहर आ जाए। इस बीच डॉल्फिन के पास हल्ला या तेज आवाज न करें क्योंकि यह डरेगा और डर से मौत हो सकती है। अगर डैना फंसा है तो ध्यान रखे कि डैना/फ्लीपर टूटे नहीं क्योंकि इसी डैना से डॉल्फिन तैरता है।

नदी के स्वास्थ्य का प्रतीक

डॉल्फिन एक ऐसा जलीय जीव है जिसे क्लीन वाटर का इंडिकेटर भी कहा जा सकता है। इसके शरीर से कई ऐसे खतरनाक जहरीले रसायनों की जानकारी सहज रूप से मिली है, जो पानी के नमूने में नहीं मिलता है। इसलिए जितनी अधिक संख्या में जहां डॉल्फिन का निवास क्षेत्र होगा वह शुद्ध जल क्षेत्र माना जाएगा। बिहार के भागलपुर जिले में इसके संरक्षण, संवर्धन के लिए सुल्तानगंज से कहलगांव के बीच विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य बनाया गया है।

आधार श्रृंखला में सबसे ऊपर

डॉल्फिन नदी क्षेत्र में ऐसा जीव है जो आहार श्रृंखला में सबसे ऊपर है। यह स्तनपायी जीव है जो बच्चे को जन्म देती है और दूध पिलाती है। सन 2018 की गणना में करीब 1500 डॉल्फिन सिर्फ बिहार के नदियों में मिले हैं। जबकि कुल संख्या लगभग 3700 हैं। डॉक्टर गोपाल ने बताया कि यह नदी तंत्र के आधार श्रृंखला में सबसे ऊपर है। जैसे जंगलों में बाघ होते हैं। कौतुहलवश बाहर के लोग इसे देखने आ रहे हैं। जिससे स्थानीय मछुआरों की आमदनी बढ़ सकती है।

राज्य के फेमस गोताखोर राजेन्द्र सहनी ने कहा कि वन विभाग को प्रतिदिन गंगा में पैट्रोलिंग करने की आवश्यकता है जिससे डॉल्फिन के व्यापारी डरेंगे एवं डॉल्फिन कि हत्या पर रोक लगेगी। इस मौके पर नवीन कुमार, पूर्व महा प्रबंधक, बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम, बिहार पटना वन प्रमंडल के अधिकारी रुचि सिंह, आई एफ एस, दानापुर फारेस्ट रेंज ऑफिसर एवं राजेंद्र सहनी के साथ अन्य बड़ी संख्या में मछुआरे भी उपस्थित रहे।