पटना (ब्यूरो)। आज विश्व रंगमंच दिवस है और यह दिन 1961 से ही मनाया जा रहा है। मकसद है रंगमंच के कर्मियों के प्रति अवेयरनेस लाना और इस खास दिन पर उनके कृतित्व से जो प्रभाव पैदा हो रहा है या हो चुका है, उस पर चर्चा करना, लेकिन समय के पहिये में इनका दिन कभी ऐसा नहीं आया, जिसमें ये खुद को समाज में और सामाजिक और आर्थिक रूप से बेहतर स्तर पर रख सकें। बात समाज के सरोकार की हो तो कई नाटक और इसे मंच पर उतारने वाले हुनरमंद कलाकार हैं, लेकिन वैसे कलाकार अब विरले हैं या हैं ही नहीं, जिन्हें समाज में एक बेहतर ओहदे भी मिल सके। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने इसे लेकर रंगकर्म की पटना में स्थिति और कलाकारों से बातचीत की।

प्रस्तुति भी आसान नहीं

पटना में बिहार आर्ट थियेटर हो, प्रेमचंद रंगशाला हो या कालिदास रंगालय - इन सभी की स्थिति बहुत अच्छी नहंी है। सूत्रधार के महासचिव नबाव आलम की मानें तो कई नाटकों का मंचन किया गया है, लेकिन हाल में यह देखा गया कि रंग सज्जा, मंचीय व्यवस्था आदि के लिए इसकी स्थिति अच्छी नहीं है। इसके कारण नाटकों के मंचन में भी थोड़ी परेशानी का सामना करना पड़ता है। इस वजह से प्रस्तुति में परेशानी आती है। उन्होंनें रंगकर्मियों की आर्थिक स्थिति का जिक्र करते हुए कहा कि कई नाट्य संस्थानों को समय पर अनुदान तक नहीं मिल पाता है। उन्हें इस काम से जुड़े रहने के लिए सपोर्ट सिस्टम भी नहीं मिल पाता है। करीब पांच साल बाद बिहार दिवस हुआ और कई कलाकार मंच पर काम मिलने से वंचित रहे।

स्कूल-कॉलेजों में गतिविधि नहीं

रंगमंच मानव समुदाय के जीवन, संघर्ष और सौन्दर्यबोध की अभिव्यक्ति का आदिम कला-रूप है और यह पृथ्वी पर आखिरी मानव समूह के जीवित रहते मौजूद रहनेवाली कला-विधा है। हर शहर में इनकी टोलियां है और ये समूह में तैयारी करते और एक -दूसरे के उत्साह को बढ़ाते हुए अपने हुनर को जिंदा रखते हैं। हाल के दिनों में यह देखा गया है कि इसे पेशा के तौर पर स्कूल- कॉलेजों में गतिविधि के तौर पर भी अब शामिल नहीं किया जा रहा है। सांस्कृतिक मंचों पर केवल समूह गान, एकल गायन या नृत्य प्रस्तुति से ही यह पूरा हो चुका समझ लिया जाता है। जबकि यह इससे कहीं आगे है।


सिर्फ जुनून से जिंदा रहा

रंगकर्म, नाटक करने वालों को कौन प्रोत्साहित करता है, आखिर क्या है जिससे रंगकर्मी अपना बेहतर प्रस्तुति देने लिए उत्साहित रहते हैं। इस बारे में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से बातचीत में राष्ट्रपति द्वारा 2015 में केंद्रीय संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत परवेज अख्तर बताते हैं कि यह दुर्भाग्य है कि समाज और सरकारें मनुष्य की आत्मिक उन्नति में सहायक इस आदिम कला के विकास के प्रति उदासीन रही हैं। रंगमंच को स्कूल-कॉलेजों में सामुदायिक गतिविधि में शामिल करने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास का अभाव है। आज रंगकर्मी बिना किसी समर्थन के अपने जुनून और रंगमंच के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के कारण इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। आज ज़रूरत है कि समाज और सरकार दोनों ही रंगकर्म को एक सम्मानित पेशा के रूप में मान्यता देते हुए, रंगकर्मियों की ओर समर्थन का हाथ बढ़ाएं।