PATNA: बिहार विधानसभा चुनाव कई मायने में खास रहा। चुनाव परिणाम आने के बाद नोटा ने भी इसे यादगार बना दिया। नोटा यानी ऐसे लोगों का मत जिन्होंने न तो बीजेपी गठबंधन को पसंद किया और न ही जदयू गठबंधन को। नोटा का सलेक्शन करने वाले ऐसे मतदाता हैं जिन्हें अपने विधानसभा क्षेत्र का एक भी उम्मीदवार लायक नहीं लगा। बिहार विधानसभा चुनाव में कुल ख्.भ् प्रतिशत मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाया। हैरत की बात है कि कई पार्टियां ऐसी हैं जिन्हें नोटा से भी कम मत आये हैं।

हम को मिले मात्र ख्.फ् प्रतिशत वोट

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार विधानसभा चुनाव के कुछ महीने पहले ही अपनी पार्टी हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा का गठन किया था। बीजेपी ने अपने गठबंधन में हम का भी साथ लिया। माना जा रहा था कि बीजेपी की इस रणनीति के कारण बिहार के महादलित बीजेपी के पक्ष में जायेंगे। लेकिन जब परिणाम सामने आये तो ऐसा दिखा नहंी। बिहार के महादलित ने खुद को महागठबंधन के करीब होना ज्याद बेहतर समझा। हम पार्टी को ख्.फ् प्रतिशत वोट प्राप्त हुआ है।

वाम दलों का भी रहा बुरा हाल

वेाट प्रतिशत की बात करें तो वाम दलों का भी बुरा हाल रहा। हालांकि माले ने तीन सीटों पर दर्ज हासिल कर पुन:वापसी की लेकिन उसे मात्र क्.भ् प्रतिशत वोट ही आए। सीपीआई ने एक भी सीट हासिल नहीं की है। उसे मात्र क्.ब् प्रतिशत वोट आए हैं। जबकि ख्0क्0 के विधानसभा चुनाव में सीपीआई ने एक सीट हासिल किया था और उसे क्.म्9 प्रतिशत वोट आया था। सीपीएम को मात्र .म् प्रतिशत वोट मिला है। वामपंथी पार्टियां इस बार बिहार विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ी थी। बावजूद इसके कोई प्रभाव छोड़ने में विफल रही।

कई पार्टियों का नोटा से बुरा हाल

कई और पार्टियां हैं जिन्हे नोटा से भी कम प्रतिशत वोट हासिल हुआ है। समाजवादी पार्टी ने भी इस बार बिहार विधानसभा चुनाव में किस्मत आजमा रही थी। समाजवादी पार्टी चुनाव ने आरोप लागया था कि उसे महागठबंधन ने तवज्जो नहीं दी और बहुत की कम सीट दी। इसी को कारण बताते हुए सपा बिहार में महागठबंधन से अलग चुनाव लड़ी। इसे उम्मीद थी कि इसके साथ यादव वोट आयेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं। सपा को मात्र क् प्रतिशत वोट हासिल हो सका। वहीं जेएमएम को .फ् प्रतिशत वोट मिला और एनसीपी को .भ् प्रतिशत वोट हासिल हुआ। बिहार में चुनाव लड़ने आई अकबरुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम को भी बिहार की जनता ने नकार दिया। मुख्य रूप से ये पार्टी सीमांचल में चुनाव लड़ने आयी थी। शुरुआत में इसने घोषणा की थी कि यह ख्भ् सीटों पर चुनाव लड़ेगी। लेकिन मुसलामन वोट को टूटकर अपनी ओर आते नहीं देख ओवैसी मात्र छह सीट पर ही लड़े। ओवैसी की पार्टी को मात्र .ख् प्रतिशत वोट मिला है।