-प्रदूषण नियंत्रण पर्षद, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स व शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन के बीच समझौता

PATNA: बिहार 2040 तक कार्बन उत्सर्जन के मामले में तटस्थ हो जाएगा। इसके लिए तैयारी शुरू हो गई है। सबसे पहले कार्बन उत्सर्जित करने वाले उद्योगाें, विभागों व वर्गो की पहचान की जाएगी। उसके बाद उसे नियंत्रित करने के लिए तकनीक व नीतियों में बदलाव किया जाएगा। ये बातें शुक्रवार को बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहीं। इस अवसर पर प्रदूषण पर्षद, डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स एवं शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में एक समझौता पत्र पर हस्ताक्षर किया गया।

क्या है कार्बन तटस्थता

पर्षद के वरिष्ठ विज्ञानी डॉ। नवीन कुमार ने कहा, 2040 तक बिहार में जितना कार्बन का उत्सर्जन होगा, उतना यहां के पेड़-पौधे अवशोषित कर लेंगे। इसे ही कार्बन तटस्थता कही जाती है।

जलवायु परिवर्तन नियंत्रित करने में मदद

प्रधान सचिव ने कहा, ईट-भट्ठों में कोयला का इस्तेमाल किया जा रहा है। वहां से कार्बन उत्सर्जन होने की आशंका है। प्रदूषण नियंत्रण पर्षद राज्य में लाल ईट की जगह फ्लाई ऐश की ईट निर्माण पर जोर दे रहा है। उन्होंने कहा, पिछले सात वर्षो में राज्य में कार्बन उत्सर्जन में काफी कमी आई है। बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण पर्षद के अध्यक्ष डॉ। अशोक कुमार घोष ने कहा कि कार्बन उत्सर्जन में कमी आने से जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने में काफी मदद मिलेगी। इसके लिए तीनों पक्ष संयुक्त रूप से प्रयास करेंगे। डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स के वाइस प्रेसीडेंट डॉ। सौमेन मैती ने कहा, पहली बार कार्बन उत्सर्जन के मामले में बिहार तटस्थ होने जा रहा है। शक्ति सस्टेनेबल एनर्जी फाउंडेशन के मुख्य कार्यपालक अधिकारी डॉ। अंशु भारद्वाज ने कहा, बिहार पूरे देश में रोल मॉडल बनने जा रहा है।