पटना कलीसिया के इतिहास में वो दिन अत्यंत गौरवशाली दिवस था जब संत पिता जॉन पॉल द्वितीय ने इसे धर्मप्रांत का दर्जा दिया था। इसके बाद पटनावासियों के बीच अत्यंत लोकप्रिय, सौम्य, ईश्वरीय प्रज्ञा से परिपूर्ण धर्माध्यक्ष बेनेडिक्ट जे.ओस्ता, ये.स। महाधर्मप्रांत के प्रथम महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किए गए। 11 जुलाई 1999 को वह शुभ दिन आया जब रांची के महाधर्माध्यक्ष टेलेस्फोर पी। टोप्पो ने नए पटना महाधर्मप्रांत का उद्घाटन और ओस्ता को इसका पहला महाधर्माध्यक्ष अधिष्ठापित किया। ओस्ता की शदों में पटना की कलीसिया आज जिस मुकाम पर है उसके पीछे कई महान कलीसिया पुत्र-पुत्रियों का अथक परिश्रम, त्याग और प्रार्थनाएं हैं। वस्तुत: पटना कलीसिया का इतिहास संपूर्ण उत्तर-पश्चिमी भारत की कलीसिया के प्रारंभित इतिहास से जुड़ा है।
पटना धर्मप्रांत का विकास
6 मार्च 1921 में येसु समाजी लुईवान हक पटना धर्मप्रांत के पहले धर्माध्यक्ष के रूप में अभिषिक्त हुए। इन्होंने 'पवित्र हृदय' नामक धर्म बहनों का प्रथम धर्मसमाज की बेतिया में स्थापना की। इसके 7 साल बाद रांची के धर्माध्यक्ष के रूप में इनका स्थानांतरण होने के बाद 17 मार्च 1929 को बर्नर्ड सलीवन ये.स। पटना के नए धर्माध्यक्ष बने.
क्कङ्खष्ट और कुर्जी हॉस्पिटल
सलीवन का ध्यान स्त्री शिक्षा की ओर गया। इनके प्रयास से पटना वीमेंस कॉलेज का निर्माण हुआ। आज यह देश की श्रेष्ठतम महिला कॉलेज में से एक है। जहां से शिक्षित होकर अनेक महिलाएं देश ही नहीं विदेशों में भी विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान दे रही हैं। इसके साथ ही पटना सिटी में मेडिकल बहनों द्वारा पीडि़त मानवता की सेवा के लिए आज का लध प्रतिष्ठित होली फैमिली अस्पताल का शुभारंभ हुआ। इसी दौरान येसु समाजियों द्वारा इस क्षेत्र में पटना के दलित समाज और भागलपुर के संथाल लोगों के बीच उल्लेखनीय कार्य किया गया। बाद में भागलपुर धर्मप्रांत पटना धर्मप्रांत से अलग हो गया। आज पटना धर्मप्रांत की 90 प्रतिशत खï्रीस्तीय जनता दलित ईसाई हैं।
जब सलीवन अमेरिका चले गए
इसी बीच धर्माध्यक्ष सलीवन कतिपय कारणों से 1949 में अमेरिका चले गए। धर्मप्रांत में उस समय 22 हजार लोग धर्मी, 12 धर्मप्रांतीय तथा धर्मसमाजी पुरोहित, 140 धर्मबहनें तथा 15 धर्मबंधु थे। इसके बाद 28 अक्टूबर 1947 में येसु समाजी पुरोहित अगस्तीन वील्डरमुथ को पटना धर्मप्रांत का धर्माध्यक्ष अभिषिक्त किया गया। इनके कार्यकाल में पटना धर्मप्रांत को अनेक धर्मसमाजों ने अपना कार्यक्षेत्र बनाया। इसी समय द्वितीय वाटिकन महासभा द्वारा पारित पूजन पद्धति में भारतीय संस्कृति और भाषा के अनुरूप परिवर्तन लाने का कार्य हुआ। इन्ही के कार्यकाल में धर्मप्रचारकों के लिए क्षेत्रीय केंद्र 'नव ज्योति निकेतनÓ और मोकामा में धर्मप्रांतीय 'ज्योति भवनÓ की स्थापना की गई।
स्वयं से पूछो क्या है क्रिसमस और क्यों मनातें है?
वर्तमान में क्वीन ऑफ द अपोस्टल्स चर्च कुर्जी के पल्ली पुरोहित फादर जॉनसन केलकत कहते हैं कि हम लोग हर साल बड़े ही धूमधाम से क्रिसमस का पर्व मनाते हैं लेकिन शायद हमने कभी स्वयं से यह प्रश्न नहीं किया कि क्रिसमस है क्या और इसे क्यों मनाते हैं? सारी सृष्टि के रचनाकार ने हम मानवों की दुर्दशा देख कर हमारे प्रति दया से द्रवित हुए। वह अपने प्रियतम पुत्रों को हममें से एक बन कर इस पृथ्वी पर भेजता है। क्रिसमस के अवसर पर हम उस महान घटना और अपार प्रेम की महिमा गा रहे हैं। अनादि अनंत शद देहदारी बना और हमारे साथ हममें से एक बन कर रहने लगा। उस पावन समय में खेतों में अपनी झुंड की रखवाली कर रहे गड़ेडियों के पास आकर देवदूतों ने गाया
'सर्वोच्च स्वर्ग में ईश्वर की महिमा और पृथ्वी पर उनके कृपापात्रों को शांति'
भारतीय मूल का धर्माध्यक्ष
पटना धर्मप्रांत के लिए प्रथम भारतीय और बिहारी ये.स। पुरोहित बेनेडिक्ट जे। ओस्ता और मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत के जॉन बी। ठाकुर ये.स। नए धर्माध्यक्ष चुने गए। फिर 11 नवंबर 1998 को मुजफ्फरपुर धर्मप्रांत दो भागों में बांटा गया। और नए धर्मप्रांत के प्रथम धर्माध्यक्ष विक्टर हेनरी ठाकुर अभिषिक्त किए गए। इसके बाद मुजफ्फरपुर, बेतिया, पूर्णिया तथा भागलपुर धर्मप्रांत पटना महाधर्मप्रांत के अंतर्गत हो गए। और धर्माध्यक्ष बेनेडिक्ट जे ओस्ता ये.स। महाधर्मप्रांत के पहले महाधर्माध्यक्ष नियुक्त किए गए।
इनका है योगदान
महिला संघ
संत विंसेंट डी पॉल कुर्जी
वरीय व्यक्ति संघ
नवयुवक संघ
क्रूस वीर
बेदी सेवक संघ
(ये सभी इंटरनेशनल संघ के यूनिट हैं जो पटना में योगदान देते हैं)