पटना (ब्यूरो)।जिस उम्र में बच्चे बेफिक्र और मस्त होकर चांद-तारे तोड़ लाने के सपने देखते हैं, उसी उम्र के कई ऐसे बच्चे भी हैं जो पल-पल जिंदगी की जंग लड़ रहे हैं। उन्हें विशेष देखभाल की जरूरत पड़ती है। रक्त संबंधी एक असाध्य बीमारी थैलेसीमिया से पीडि़त बच्चों को तकरीबन हर 15 दिनों के भीतर नया रक्त चढ़ाने की जरूरत पड़ती है। ऐसे गरीब बच्चों के माता-पिता रक्त के लिए दर-दर की खाक छानते हैं। बच्चों में कई बीमारियों के लक्षण एक साथ दिखते हैं। इनसे बच्चों का जीना दूभर हो जाता है। इनकी मुसीबत कई गुणा बढ़ जाती है।

पांच राज्यों के थैलेसीमिया पीडि़त बच्चे पहुंचे

14 नवंबर बाल दिवस के मौके पर सोमवार को राजधानी पटना के मछुआ टोली के महाराणा प्रताप भवन में देश के पांच राज्यों बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के अलावा पड़ोसी देश नेपाल से थैलेसीमिया पीडि़त बच्चे पहुंचे। इनमें से 335 बच्चों की बोन मैरो की जांच की गई। इनके भाई-बहनों के कुल 986 सैंपल लिए गए। इन सैंपल की जांच जर्मनी के डीकेएसएम लैब में मुफ्त में होगी। इसके बाद इनका इलाज भी सीएमएस वेलोर में मुफ्त किया जाएगा। इसको लेकर पैरेंट्स एसोएिशन थैलेसीमिया यूनिट ट्रस्ट मुंबई, कोकिला धीरू भाई अंबानी हॉस्पीटल रिसर्च इंस्टीट्यूट डीकेएमएस फाउंडेशन जर्मनी के सहयोग से मां वैष्णो देवी सेवा समिति और मां ब्लड सेंटर की ओर से एचएलए कैंप का आयोजन किया गया.इस कैंप में पहुंचे बच्चों को खेलने, खाने-पीने, उनके भरपूर मनोरंजन और विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने की व्यवस्था की गई थी। इस कार्यक्रम में कोकिला धीरूभाई अंबानी हॉस्पीटल के डॉ.जूही व डॉ। शांतनु, डीकेएमएस से ज्योति टंडन, बोर्न टू डांस अकादमी से राकेश राज, अध्यक्ष सरदार जीवन सिंह बबलू और सचिव कन्हैया अग्रवाल कन्नू और कोषाध्यक्ष नंद किशोर अग्रवाल ने भी योगदान दिया।

बिहार में चार हजार बच्चे थैलेसीमिया पीडि़त

मां वैष्णो देवी सेवा समिति और मां ब्लड सेंटर के संस्थापक मुकेश हिसारिया ने बताया कि बिहार में करीब चार हजार थैलेसीमिया पीड़ति बच्चे हैं। इनमें से अधिकतर बच्चे गरीब परिवारों से हैं। उन्होंने कहा कि सरकारी रकिॉर्ड में बिहार में थैलेसीमिया पीडि़त बच्चों की संख्या करीब आठ सौ है। उन्होंने कहा कि 1400 से ज्यादा बच्चे उनकी संस्था में रजिस्टर्ड हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे बच्चों को नियमित रक्त मिल सके और उनका इलाज हो सके इसकी व्यवस्था संस्था की ओर से की जाती है। मुकेश हिसारिया ने कहा कि 23 फरवरी 2020 को पटना में पहला थैलेसीमिया एचएलए कैंप लगाया गया था। उस कैंप में 38 बच्चे पहुंचे थे। उनमें से 13 बच्चों का बोन मैरो ट्रांसप्लांट सफलता पूर्वक हो चुका है जबकि 5 बच्चों का अगले माह दिसंबर में होना है। इस सफलता के बाद इस साल उन्हें ऐसा कैंप फिर से लगाने की जरूरत पड़ी। इस कैंप में पांच राज्यों बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और पड़ोसी देश नेपाल तक के बच्चे पहुंचे हैं।

20 हजार से ज्यादा बच्चों की कर चुके हैं मदद

मुकेश हिसारिया ने बताया कि वे 2009 से ही थैलेसीमिया पाडि़त बच्चों की मदद कर रहे हैं। अब तक करीब 20 हजार बच्चों की मदद की है। उन्होंने कहा कि ब्लड बैंक की स्थापना हुए 261 दिन हुए हैं। इस दौरान करीब 500 यूनिट ब्लड डोनेट किया गया है।

खून के लिए भटकने की मजबूरी

एचएलए कैंप में अपने दो साल के बच्चे मो। अयान की बोन मैरो जांच कराने अररिया से आए पिता अब्दुल मतीन और माता रेशमी खातून ने कहा कि उन्हें बच्चे को खून चढ़ाने के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। खून खरीदने में हर बार पांच हजार रुपये खर्च करने पड़ते हैं। अररिया से पूर्णिया जाना पड़ता है। उन्होंने कहा कि बच्चे के पेट में दर्द रहता है। बच्चा चिड़चिड़ा हो जाता है। यहां आकर उम्मीद बंधी है कि उनका बच्चा ठीक हो जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार को बिहार में इसके इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए।

कई जगह इलाज कराकर थक गए

किशनगंज से अपने चार साल के बच्चे की जांच कराने पहुंचे मोईन सुभानी के पिता तंजरूल हक ने कहा कि बच्चे की बीमारी पता चलने में दो साल लग गए। इस दौरान कई जगह इलाज कराया। अब हर 15 दिन पर खून चढ़ाना पड़ता है। नहीं चढ़ाने पर बच्चा पेट दर्द, कब्ज, बुखार का शिकार हो जाता है। इसकी वजह से बहुत परेशानी होती है। हम गरीब लोग हैं। इतना महंगा इलाज कहां से कराएंगे। सरकार को बिहार में इसके इलाज की व्यवस्था करनी चाहिए।
--