- 75 से अधिक ब्लैक लिस्टेड बसें अब भी बेखौफ चल रही हैं सड़कों पर

- डीटीओ ने कहा हमने जांच रिपोर्ट स्कूल को सौंप दी थी, एक्शन लेने का काम स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन का

- पुरानी गाड़ी की वजह से ही मरते-मरते बची थीं सेंट जोसेफ स्कूल की स्टूडेंट्स

PATNA : पटना सिटी में तीन दिन पहले जिस बस से एक हादसा हुआ था, उसे अगस्त ख्0क्फ् में डीटीओ ने मार्क कर कहा था कि अब यह खटारा हो चुकी है और इसे बंद कर देना चाहिए। बावजूद इसके बस से बच्चों को ढोया गया और फिर जो हुआ, वह आपके सामने है। ऐसी खटारा और जानलेवा सिर्फ एक वही बस नहीं चल रही है, बल्कि डीटीओ की ओर से की गयी जांच में 7भ् ऐसी बसें निकली थीं, जिसे पूरी तरह से डेड करार दिया गया था। हालांकि आज भी वे चल रही हैं। इस मामले पर डीटीओ दिनेश कुमार ने कहा था कि हमारा काम जांच कर स्कूल को रिपोर्ट करना था। इसके बाद स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन ने कदम नहीं उठाया, तो फिर इसमें हमलोग क्या कर सकते हैं। वहीं, जांच करने में कई दिन लग गए थे और बाहर से ऑफिसर्स को बुलाकर इस काम को पूरा किया गया था।

स्कूली एडमिनिस्ट्रेशन की हामी के बाद हुई थी जांच

जानकारी हो कि पिछले साल अप्रैल महीने में भी स्कूली बस को लेकर डीएम के पास तमाम स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन की मीटिंग हुई थी। इसमें पुरानी बसों को हटाने और बसों में नियम के मुताबिक सुविधा देने की बात कहीं गयी थी। इसी दौरान स्कूली बस की भी जांच करने के लिए कहा गया था, ताकि जिस बस में बच्चे सफर कर रहे हैं, वो पूरी तरह से बच्चों के लिए सेफ हो। फिर डीटीओ को इसका आदेश दिया गया। इसमें डीटीओ की ओर से ख्9 स्कूलों के भ्ख्0 बसों की चेकिंग हुई थी, जिसमें से 7भ् बसों को विभिन्न कैटेगरी में खटारा बताया गया। इसमें ऐसी भी बसें थी, जिन्हें परमिट तक नहीं था।

एक हफ्ते का मिला था अल्टीमेटम

बसों की रीयलटी चेकिंग होने के बाद कई ऐसी बसें निकलीं, जिन्हें सड़क पर चलाने का परमिट तक नहीं है, फिर भी वे हर दिन सैकड़ों बच्चों को स्कूल पहुंचा रही हैं। ऐसी बसों को लेते हुए डीटीओ ऑफिस की ओर से वन वीक का समय देकर उन तमाम बसों को सही कर लेने को कहा गया। कहा गया कि अगर बसें सड़क पर निकलीं, तो फिर उसे थाने में डाल दिया जाएगा, बावजूद इसके बसों को हटाया नहीं गया और न ही उस बाहरी बसों को काबू ही किया गया।

बाहरी ड्राइवर को भी देना था स्कूल का कार्ड

इस दौरान स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन को यह भी हिदायत दी गई थी कि अगर उनके कैंपस की बस नहीं है, पर कैंपस के बच्चों को कोई प्राइवेट एजेंसी की बसें ढो रही हैं, तो उस बस के ड्राइवर को स्कूल की ओर से कार्ड दिया जाएगा। इसमें उनके बारे में सारी डिटेल होगी। यही नहीं, स्कूल एडमिनिस्ट्रेशन भी उस बस ड्राइवर्स की पूरी जानकारी रखेंगे, ताकि किसी भी तरह की घटना होने पर उस पर शिकंजा कसा जा सके, पर अफसोस एक भी स्कूल ने भी इस स्टेटस को पूरा नहीं किया।

इन स्कूलों में हुई थी चेकिंग

- रेडिएंट इंटरनेशनल हाई स्कूल

- आरपीएस स्कूल

- सेंट कैरेंस स्कूल

- सेंट जोसेफ कान्वेंट

- पटना सेंट्रल स्कूल

- कृष्णा निकेतन

- सेंट जेवियर्स हाई स्कूल

- एवीएन स्कूल, पाटलिपुत्र

- बाल्डविन एकेडमी

- बीडी पब्लिक स्कूल

- हार्टमन ग‌र्ल्स हाई स्कूल

- डीएवी स्कूल, वाल्मी

- डीएवी, बीएसईबी

- डीएवी, खगौल

जांच के बाद आए रिजल्ट

चेक की गई टोटल बसें - भ्ख्0

टोटल फॉल्ट बसें - 7भ्

पॉल्यूटेड बसें - क्भ्

बिना परमिट की बसें - क्फ्

बिना इंश्योरेंस की बसें - 8

फिटनेस की कमी - क्ब्-क्भ्

एक नजर में

शहर में एक हजार से अधिक चलती हैं बसें।

हर दिन दस हजार से अधिक ढोए जाते हैं स्टूडेंट्स।

किसी भी ड्राइवर की नहीं करते हैं वेरिफिकेशन।

व्हीकल एक्ट को भी फॉलो नहीं कर पाती हैं एजेंसी।

बसों में बच्चे को ठूस कर बिठाया जाता है।

सीट से अधिक बिठाए जाते हैं स्टूडेंट्स।