तभी सेक्स रैकेट के डर्टी ट्रैप से बचेगा

पुलिस को सेक्स कारोबार पर रोक लगाने के लिए पूरी कोशिश करनी होगी। मॉडल्स को 'सेक्स डिमांड' के खिलाफ आवाज उठानी होगी। तभी शहर को कुकुरमुत्ते की तरह फैलते सेक्स रैकेट के डर्टी ट्रैप से बचाया जा सकेगा। ये व्यूज सामने आए आई नेक्स्ट एक्सपर्ट पैनल के साथ डिस्कशन में। आई नेक्स्ट ने 'सेक्स इन द सिटी' अभियान के तहत शहर में फैले सेक्स के जाल का पर्दाफाश किया था। इस सीरिज का समापन पैनल डिस्कशन के साथ हुआ।

रिसोर्सेज का इक्वल डिवाइडेशन हो

यहां हर चीज के लिए छीना-झपटी हो रही है। रिसोर्सेज का अनइक्वल डिवाइडेशन ही प्रॉब्लम की असली वजह है। नॉलेज के बाद भी यूथ गलत कामों में इंवॉल्व हो रहे हैं। हम वेस्टर्न कल्चर को अपना रहे हैं। वहां सेक्स कोई प्रॉब्लम नहीं है। हमारे कल्चर में यह शादी से पहले बैन है। एक तरफ तो चाइल्ड मर्डर और रेप हो रहे हैं दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट लीव इन का आर्डर दे रही है। आज रेस्पेक्ट की परिभाषा बदल गई है। पहले उम्र में बड़ा होने पर रेस्पेक्ट मिलता था आज पैसा में बड़ा होने पर रेस्पेक्ट मिलता है। 40 परसेंट से ज्यादा यूथ दिग्भ्रमित हैं। इसे दूर करने के लिए अर्निंग का इक्वल डिवाइडेशन जरूरी है।

डॉ। सुमन लाल, प्रेसिडेंट, प्रयास भारती ट्रस्ट।

कम्युनिटी पुलिसिंग की जरूरत

यूथ को पुलिस टर्मिनोलॉजी में अंडर एज कहा जाता है वे ज्यादा वोलाटाइल होते हैं यानी कि वे किसी भी क्राइम के ट्रैप में जल्दी फंसते हैं। ऐसे में पुलिस और लीगल एक्शन से ज्यादा मोरल एक्शन की जरूरत है। फैमिली और सोसाइटी मोरल एक्शन की दिशा में कदम बढ़ाए पुलिस इसमें सहयोग करेगी। इस दिशा में कदम बढ़ाते हुए पुलिस भी अब कम्युनिटी पुलिसिंग पर जोर दे रही है। इसमें काउंसिलिंग की भी व्यवस्था है। हमारी कोशिश है कि वूमेन इंस्पेक्टर ही गल्र्स यूथ के साथ इंटरैक्ट करें, लेकिन पुलिस के प्रयासों के साथ-साथ समाज का ओरिएंटेशन बदलने की जरूरत है और समय के साथ ऐसा होना भी चाहिए।

- अशोक  कुमार सिन्हा, एडिशनल एसपी, हेडक्वार्टर पटना।

हर लेवल पर काउंसलिंग की जरूरत

यूथ को सही मेंटरशिप देने की जरूरत है। उन्हें फिजिकल, मेंटल और इमोशनल बदलावों के बारे में बताने की जरूरत है। खासकर गल्र्स को बताना जरूरी है कि अबार्सन के क्या-क्या खतरे हैं। हर लेवल पर काउंसलिंग की भी जरूरत है। गावों से लेकर मैट्रोज तक स्कूल और कॉलेज लेवल पर इसकी ज्यादा जरूरत है। यूथ को इस भटकाव से तभी रोका जा सकता है जब समाज का हर जागरूक व्यक्ति गलत करने वाले को रोके और उनकी काउंसलिंग करे। प्रॉब्लम है कि क्राइम 10 परसेंट लोग कर रहे हैं और 90 परसेंट लोग इस पर चुप हैं। इतना ही नहीं सोसाइटी को इसके लिए तैयार करने की भी जरूरत है।

- प्रो। रीता झा, सोशियोलॉजिस्ट, पटना वीमेंस कॉलेेज।

सिर्फ और सिर्फ पैरेंट्स हैं जिम्मेवार

ज्वाइंट फैमिली का टूटना यूथ में तेजी से पनप रहे डेंजरस ट्रेंड का सबसे बड़ा कारण है। ज्वाइंट फैमिली के जमाने में ब'चे घरों में बड़े बुजुर्गों या रिश्तेदारों की निगरानी में रहते थे। उन पर चौबीसों घंटे किसी-न-किसी की नजर रहती थी। लेकिन अब उन पर नजर रखने वाला कोई नहीं है। साथ ही एक तो अब वर्किंग पैरेंट्स अधिक इंगेजमेंट्स की वजह से ब'चों पर नजर नहीं रख पाते हैं और दूसरी ओर जब घरों में भी होते हैं तब भी उन्हें पर्याप्त समय नहीं दे पाते हैं, उनकी काउंसलिंग नहीं करते हैं। ऐसे में मेरी नजर में यूथ के भटकाव या गलतियों के लिए सिर्फ और सिर्फ पैरेंट्स जिम्मेवार हैं।

- समायल अहमद, प्रेसिडेंट, चिल्ड्रेंस वेलफेयर एसोसिएशन।

मोबाइल में मुर्गा नं.-1, 2 3

95 परसेंट यूथ सेक्स के प्रति सोच रखते हैं। वे पोर्न वीडियो देखते हैं। इससे गूगल को लाखों का फायदा होता है। इतना होने के बाद भी हम सेक्स के बारे में बात करने से बचते हैं, जबकि इसे सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए। गवर्नमेंट को चाहिए कि सेक्स करने की उम्र घटा दे। यूथ गलत रास्ते पर जा रहे हैं इसमें पैरेंट्स का दोष है। वे बर्थडे पर ब'चों को किताब की जगह स्मार्ट फोन देते हैं। उसके बाद ब'चे उस फोन का गलत इस्तेमाल करते हैं। सेक्स के लिए लड़के व लड़कियां एक-दूसरे का इस्तेमाल करती हैं। गल्र्स के मोबाइल में मुर्गा नं.-1, 2 3 नाम से नंबर सेव होता है। इससे बचने का एकमात्र उपाय बेहतर पैरेंटिंग व एजुकेशन है।

अंशुमान, वाइस प्रेसिडेंट, पुसू।

सोशियो-इकोनोमिक कंडीशन बदलने की जरूरत

गल्र्स अगर आज ज्यादा संख्या में सेक्स रैकेट के चंगुल में फंस रही हैं तो इसका कारण यह नहीं है कि अब ज्यादा गैजेट्स का यूज हो रहा है या गल्र्स वेस्टर्न आउटफिट पहन रही हैं या फिर अब पहले के मुकाबले सोसाइटी में ओपननेस ज्यादा है। ऐसा सिर्फ इस वजह से है क्योंकि आज भी गल्र्स को, वीमेन को एक ऑब्जेक्ट के रूप में देखा जाता है। उन्हें खरीदने-बेचने वाली चीज के रूप में देखा जाता है। ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में सोसाइटी के मॉडर्न होने के दावों के बावजूद स''ााई यह है कि पैट्रियार्कल सोसाइटी अब भी कायम है। ऐसे में सोशियो इकोनोमिक कंडीशन को बदलते हुए इंबैलेंस को ठीक कर सोसाइटी का माइंडसेट बदलने और उसकी लेवल ऑफ अंडरस्टैंडिंग को बढ़ाया जाए।

- दिव्या गौतम, स्टेट ज्वाइंट सेक्रेटरी, आईसा।

अधूरे एस्पिरेशंस के बोझ तले बढ़ रहा है फ्रस्ट्रेशन

करेंट सिस्टम यूथ के एस्पिरेशन को पूरा नहीं कर पा रहा है। इसका एक बड़ा एग्जांपल यह है कि यूथ को या तो रोजगार नहीं मिल रहा है या मिल भी रहा है तो कांट्रैक्ट जॉब पर रखे जा रहे हैं। ऐसे में अधूरे एस्पिरेशंस के बोझ तले उनका फ्रस्ट्रेशन बढ़ रहा है और वे गलत रास्तों में भटक जाते हैं। सेक्स रैकेट्स का हिस्सा बनना इस भटकाव का ही एक बाई-प्रोडक्ट है। भटकाव की एक वजह यह भी है कि आज का न्यू अपर मिडिल क्लास अपने ब''ाों की हर डिमांड पूरी कर रहा है। ऐसा करने से दूसरे पैरेंट्स पर भी दबाव पैदा होता है। ऐसे में जरूरी है कि ब'चों की डिमांड्स पूरी करने के पहले पैरेंट्स यह समझ लें कि जरूरत है कि नहीं। लोगों में फीयर आफ पनिशमेंट भी खत्म हो रहा है। यह भी चिंता की बात है। पनिशमेंट का डर फिर से पैदा हो इसके लिए जरूरी है कि स्पीडी ट्रायल के जरिए दोषियों को जल्द सजा दी जाए। जरूरत इस बात की भी है कि मीडिया भी ऐसे विज्ञापन और तस्वीरें न पब्लिश करे जिससे सेक्स की कुंठित भावनाओं को बढ़ावा मिलता हो।

- प्रो। भारती एस कुमार, डीन, फैकल्टी ऑफ सोशल साइंसेस।

न्यू टेक्नोलोजी से अपडेट हों पैरेंट्स

बात-चीत में अक्सर लोग इस बुराई के लिए टेक्नोलॉजी को ब्लेम करते हैं। ऐसा करना गलत है और अपनी जिम्मेवारियों से मुंह चुराना है। ब'चों और यूथ में क्यूरिसिटी ज्यादा होती है। इस कारण वे न्यू टेक्नोलॉजी को जल्दी एडॉप्ट करते हैं। यूथ अपने टैबूज के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं। आज मोबाइल पर जीपीएस सिस्टम अवेलेवल होने के कारण ब'चों को यह पता होता है कि उनके पैरेंट्स किस वक्त कहां हैं, टेक्निक ने ब'चों को इतनी एज प्रोवाइड कर दी है। ऐसे में जरूरी है कि पैरेंट्स न्यू गैजेट्स और टेक्नोलोजी के बारे में अपडेट और एजुकेट हों। वे यह चेक करें कि उनके ब'चे इंटरनेट पर कैसे साइट्स विजिट कर रहे हैं। साथ ही उन्हें ब'चों की फेसबुक फ्रेंड लिस्ट भी चेक करनी चाहिए।

- बाबर इमाम, साइबर एक्सपर्ट।

जो दिखता है वो बिकता है

फैशन में मॉडल से सबसे पहले सेक्स की डिमांड की जाती है। नेग्लेट करने पर इंडस्ट्री से बाहर होना पड़ता है। ऐसा कई बार मेरे साथ हुआ। छोटे से छोटे एड के लिए मुझसे ऐसी डिमांड की गई। लेकिन मैंने सेक्स के दलदल में उतरने से अ'छा घर में बैठना मंजूर किया। मॉडलिंग में जब गल्र्स साथ बैठती तो इन सब चीजों पर बात होती है। वे बताती हैं कि कैसे उन्हें झांसा देकर ट्रैप किया गया। फैशन का फेमस वर्ड है 'जो दिखता है वह बिकता है'। इंडस्ट्री में इसी का यूज कर लोग गल्र्स का इस्तेमाल करते हैं। इससे बचने के लिए गल्र्स को ग्रुप में रहने की जरूरत है। डिमांड का विरोध करने की जरूरत है।

प्रिया राज, फस्र्ट रनअप देव एंड दिवा मि। एंड मिस बिहार 2012.

फ्रस्टेड हो रहे हैं यूथ

नॉन एचीवमेंट के कारण यूथ फ्रस्टेड हो रहे हैं। वे जो गोल सेट कर रहे हैं उसे अचीव नहीं कर पा रहे हैं। इस कारण वे कंफ्यूज हो जाते हैं। एक बार कंफ्यूज होते हैं तो उनका मन भटकने लगता है। उसके बाद वे घटनाओं को अंजाम देते हैं। इसमें हमारी सोसायटी का भी रोल है। वह स्क्रीन पर सबकुछ देखना पसंद करती है, लेकिन उसके बारे में बात करना पसंद नहीं करती है। यह देन है पेट्रियार्कल सासाइटी की। लड़के सोचते हैं वह कुछ भी करेंगे, सही ही होगा। गलत काम करके भी अपने को सही समझते हैं। जेएनयू में एक लडऩे ने लड़की पर जानलेवा हमला किया और खुद भी सुसाइड कर लिया। इसका मतलब यह है कि तुम मेरी नहीं तो किसी नहीं। यानि लड़की सिर्फ एक प्रोडक्ट है।

अमृता भूषण, फैशन डिजायनर.

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क्या बिहार में बेरोजगारी के कारण यूथ में भटकाव है?

आज की अर्थव्यवस्था यूथ को कुछ नहीं दे पा रही है। ग्लोबलाइजेशन तो हो रहा है, पर जॉब के लिए बाहर से लोगों को हायर कर लिया जाता है। हम अपने लोगों को जॉब नहीं दे पाते हैं। अशिक्षित की तो बात ही छोड दें, शिक्षित बेरोजगारों की भी एक बड़ी फौज खड़ी हो गई है। हमने यूथ को इंटलेक्'युअल मजदूर बना दिया है।

पुलिस के सीनियर ऑफिसर ने भी माना है कि रेड से पहले इंफॉरमेशन लीक होने के कारण गुनहगार बच निकलते हैं। इसे रोकने के लिए पुलिस क्या कर रही है?

मेरे 18 साल के कॅरियर में कम-से-कम मैंने ऐसा होते नहीं देखा है। यह हमारे प्रोफेशन की विडंबना है कि दो पार्टी की लडाई में घाटे में रहने वाला पक्ष ऐसा सोचता है कि पुलिस ने जरूर पैसा लेकर दूसरी पार्टी को छोड़ दिया है। वैसे पुलिस में 1 परसेंट वैसे जरूर होते हैं, जो क्राइम को देखकर भी निष्क्रिय रहते हैं, क्योंकि वे निकम्मे होते हैं।

क्या लोगों के मन से पुलिस का खौफ जा रहा है?

पुलिस जब बड़े क्रिमिनल्स के साथ सख्ती से पेश आती है, तो छोटे क्रिमिनल्स भी अपराध करते वक्त डरते हैं। फिर भी मैं कहता हूं कि पुलिस से मत डरो, बल्कि लॉ ऑफ ऑर्डर से डरो। हमारे कानून इतने सख्त होने चाहिए कि लोगों के मन में क्राइम करने से पहले पनिशमेंट का खौफ हो।

ब'चों को गैजेट्स के मिसयूज से कैसे रोका जाए?

टेक्नोलॉजी हमारी लाइफ का इंम्पॉर्टेंट पार्ट बन गया है। जैसे हम ब''ाों को गाड़ी सिखाने की ट्रेनिंग देते हैं, वैसे ही टेक्नोलॉजी के यूज की भी ट्रेनिंग दी जानी चाहिए। पेरेंट्स को यह भी ध्यान रखना चाहिए कि वे ब'चों की जरूरत के हिसाब से मोबाइल दें, पर कम्यूनिकेशन के लिए ब'चों को स्मार्ट फोन देना उचित नहीं है, क्योंकि स्मार्ट फोन का मिसयूज होता है।

पोर्न साइट विजिट करने से क्या परेशानी हो सकती है?

हम जैसे ही कोई पोर्न साइट विजिट करते हैं, हमारी सारी इंफॉरमेशन उस साइट को एक्सेस हो जाती है। इसे जरूरत पडऩे पर हमारे ही खिलाफ आसानी से यूज किया जाता है।

फेसबुक का यूज छोटे ब'चे भी करते हैं। इन्हें कैसे मॉनिटर कर सकते हैं?

फेसबुक आजकल ब'चों के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है। आज के पेरेंट्स को भी टेक फ्रेंडली होना चाहिए। उन्हें अपने ब'चों के फेसबुक फ्रेंड्स के बारे में भी जानकारी रखनी चाहिए कि जो लोग उनके ब'चों के फ्रेंड्स हैं, उन्हे वे भी जानते हैं या नहीं?

पेरेंट्स अपने ब'चों के भटकाव के लिए कितने जिम्मेवार हैं?

यहां पर भी कंम्प्यूटर एप्लीकेशन जीआईजीओ बिल्कुल सटीक बैठता है। अगर हम गार्बेज फीड करेंगे, तो गार्बेज ही आउट होगा। जैसा ब'चों को संस्कार देंगे, वे वैसा ही बनेंगे।