- बिहार इलेक्शन वाच एवं एडीआर की ओर से वर्कशॉप में एक्सप‌र्ट्स ने रखे विचार

PATNA :

जिस मकसद से इलेक्टोरल बॉण्ड लाया गया आज उसका कोई महत्व नहीं रह गया है। राजनीतिक पाíटयों की फंडिंग की जानकारी में पारदर्शीता नहीं रह गई है। राजनीतिक पाíटयां इस संबंध में जानकारी छुपाती रही हैं। ये बातें बिहार इलेक्शन वाच एवं एडीआर के संयुक्त तत्वावधान में राजनीतिक दलों के लोकतंत्र में आरटीआई का उपयोग और पार्टी फंडिग में पारदर्शीता बिषयक ऑनलाइन वर्कशॉप के मौके पर

संगोष्ठी के पहले वक्ता मेजर जनरल अनिल वर्मा ( रिटायर्ड ) ने एडीआर की यात्रा पर बात करते हुए कही।

उन्होंने बताया कि पारदर्शीता को लेकर केंद्रीय सूचना आयोग ने क्रांतिकारी फैसला सुनाया था जिससे राजनीति एवं चुनाव सुधार की दिशा में मील का पत्थर माना गया था। किन्तु राजनीतिक दलों ने इसे स्वीकार नहीं किया। नतीजा यह है कि किसी भी पार्टी को रेगुलेट करने की व्यवस्था नहीं है। पैसे कहां से आते हैं और कहां खर्च होते हैं यह पता नहीं लगाया जा सकता है।

आरटीआई के दायरे से बाहर

संगोष्ठी के दौरान यह बात चर्चा में आई की मनमाने तरीके से प्रत्याशियों का चयन हो रहा है जिससे गवर्नेंस मे गिरावट आ रही है। हजारों करोड़ रुपए आ रहे हैं। विधिवत जानकारी नहीं दी जाती है। अधूरी जानकारी होती है। इलेक्टोरल बॉण्ड से पारदर्शीता और जबाबदेही कम हुई है जबकि इसे पारदर्शीता के नाम पर लाई गई थी। पिछले डेढ़ सालों में 6 करोड़ से अधिक पैसे इलेक्टोरल बॉण्ड से ही मिले हैं। जो सत्ता में रहेगी तो उसे ज्यादा चंदा मिलेगा। इलेक्टोरल बॉण्ड भी आरटीआई के दायरे से बाहर है। बडी कंपनियां पैसे दे रही हैं यह आप पता नहीं लगा सकते। बड़े-बड़े कारपोरेट घराने हैं जो चंदा देती हैं और उसके बदले फायदा लेती हैं।

आयोग की शक्ति नहीं

पॉलीटिकल पार्टी के चंदे की बात हो या पाíटयों से जरूरी गवर्नेंस के बात हो- आयोग के पास इन मामलों की शिकायत को लेकर पाíटयों को दंडित करने का अधिकार नहीं है। संगोष्ठी में शामिल विशेषज्ञों ने इसे चिंताजनक बताया। शबने कहा कि पाíटयों की फंडिंग का विषय आरटीआई के दायरे में लाने के बाद एक एक पैसे का हिसाब मिल सकता है और इससे गवर्नेस में पारदर्शीता आएगी।

20 हजार की सीमा को बदलने की जरूरत है। आयोग को दंडित करने का अधिकार हो। पार्टी के निबंधन को रद्द करने का भी अधिकार होना चाहिए।

नेताओं ने आरटीआई को किया भोथरा

आंतरिक लोकतंत्र एवं वित्तीय पारदर्शीता के सवाल पर ब्रजकिशोर स्मारक प्रतिष्ठान के अध्यक्ष प्रेम कुमार वर्मा ने कहा कि आरटीआई काफी संघर्ष के बाद मिला था जिसे राजनीतिज्ञों ने भोथरा कर दिया है। वरिष्ठ पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने कहा कि मीडिया अपनी भूमिका निभा नहीं पा रही है। बहुत ही उत्साह के साथ आरटीआई आया था, लेकिन आज स्थिति दयनीय है। चुनाव सुधार एवं आरटीआई मीडिया की प्रासंगिकता मे कभी रहा ही नहीं। अब चुनाव सुधार को मुद्दा बनाकर आंदोलन की जरूरत है। अन्त में प्रतिभागियों के सवालों के जबाव वक्ता ने दिए। कार्यक्रम संचालन एवं स्वागत राजीव कुमार ने किया।