PATNA : बिहार के लोगों ने अपने कठिन परिश्रम से गरीबी और अभाव में भी एक मिशाल पेश है। आज मॉरीशस, सूरीनाम, गयाना, वेस्ट इंडीज आदि देशों में विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त की है। ये बातें अमेरिका के पोलिटिकल सायंटिस्ट एवं अमेरिका में होने वाले भारतीय गिरमिटिया मजदूरी उन्मूलन के सौ वर्ष पूरा होने के अवसर पर होने वाले अधिवेशन के ऑर्गनाईजर डॉ। विष्णु बिसराम ने कहा।

डॉ बिसराम शुक्रवार को जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान में 'उत्तर गिरमिटिया काल- नए फ्रंटियर्स के सृजन' विषय पर आयोजित वार्ता को संबोधित करते हुए कहा। आयोजन संस्थान और टाटा सामाजिक शोध संस्थान के पटना केंद्र द्वारा संयुक्त रूप से किया गया था। डॉ। बिसराम ने बिहार की संस्था से जुड़कर सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के प्रति इच्छा जाहिर की। कहा कि गिरमिटिया मजदूरों को याद करना अपनी जड़, जमीन और मिट्टी को याद करना है।

सबसे ऊर्जावान गिरमिटिया

बिहार विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार चौधरी ने कहा कि बिहारियों के पोटेंशियल के एक प्रतीक स्वरूप हैं- डॉ। विष्णु बिसराम, जिनके पूर्वज छपरा से मजदूर के रूप में ब्रिटिश गयाना गए थे और आज ये इतने महत्वपूर्ण मुकाम पर हैं। गुलामी प्रथा का ही दूसरा रूप था शर्तबंदी। आधुनिक काल का सबसे ऊर्जावान इतिहास गिरमिटिया काल का ही इतिहास है, जिसमें गरीबी-बदहाली में भी मजदूरों ने न केवल अपनी भाषा, पहनावा, संस्कृति को बचाये रखा, बल्कि दूसरे को प्रभावित भी किया।

यह महत्वपूर्ण संयोग है कि

सभा को संचालित करते हुए विधान पार्षद् डॉ। रामवचन राय ने विस्तार से गिरमिटिया प्रथा और उसके प्रभावों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भोजपुरी, तमिल और मराठी भाषी मजदूर पलायन कर अन्य देशों में गए, लेकिन अपनी भाषा, पहनावा, संस्कृति को बचाए रखा। निदेशक श्रीकांत ने बताया कि यह महत्वपूर्ण संयोग है कि वर्ष क्9क्7 गांधीजी के चंपारण आगमन और गिरमिटिया प्रथा समाप्त होने का शता?दी वर्ष है। उन्होंने कहा कि बिहारी मजदूरों ने दुनिया में श्रम की मर्यादा को स्थापित की।