- नागरिक सुविधाओं की बदहाली पर सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट ने नगर निगम को जगाया, कहा अपने अधिकार और कर्तव्य मत भूलें

- नगर निगम को बताना होगा कि दो वर्ष में राज्य सरकार से कितना फंड मिला और कितना किया खर्च

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क्कन्ञ्जहृन् :

हाईकोर्ट ने पटना नगर निगम से दो साल का हिसाब मांगा है। शुक्रवार को कोर्ट नगर आयुक्त को आदेश दिया कि वह रिपोर्ट दाखिल करें कि पिछले दो वित्तीय वर्ष में सरकार से कितनी राशि मिली और उसमें से कितना-कहां और कैसे खर्च किया गया।

कोर्ट ने नगर आयुक्त को निर्देश दिया है कि वो फौरन मेयर के साथ बैठक कर यह तय करें कि निगम नगरपालिका कानून के तहत पटना वासियों को बुनियादी नागरिक सुविधाएं कैसे देने वाले हैं? उनके पास समस्याओं के लिए क्या उपाय हैं। इस बाबत भी निगम को एक जवाबी हलफनामा दायर करना होगा। मामले की अगली सुनवाई 22 दिसंबर को होगी ।

मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश एस कुमार की खंडपीठ ने एडवोकेट मयूरी की लोकहित याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार और नगर निगम के अधिकारियों तथा पार्षदों को अपने अधिकारों और कर्तव्यों के समझने और उसके आलोक में कर्तव्य निर्वहन करने की सीख दी। कोर्ट ने साफ कहा कि उन्हें संविधान और नगरपालिका कानून को ठीक से पढ़ना चाहिए, ताकि वे बेहतर तरीके से पटना वासियों को नागरिक सुविधाएं दे सकें।

बैसाखी पर चल रहे निकाय

शुक्रवार को पटना बाइपास के दक्षिणी सिरे पर बनी कॉलोनियों की बदहाल सड़कों और सीवेज की समस्या पर सुनवाई हुई। अधिवक्ता मयूरी ने आरोप लगाया कि पटना नगर निगम खुद को राज्य सरकार के अधीन रहकर असहाय मानता है। लगता है 74वें संविधान संशोधन से मिले वित्तीय स्वायत्तता को लेकर निगम अनभिज्ञ है। नगर निकायों को राजस्व में अपनी हिस्सेदारी मिलती है। उनके पास स्वयं राजस्व वसूलने की शक्ति है। इतनी वित्तीय स्वायत्तता मिलने के बावजूद निकाय बैसाखी पर चल रहे हैं। इतने अधिकार होने के बाद भी नगर निगम टैक्स नहीं बढ़ा पाता और राज्य सरकार पर निर्भर है।

क्या संवैधानिक शक्तियों की नहीं है जानकारी

न्यायाधीशों ने कहा कि लगता है कि नगर निगम को वित्तीय तौर पर ऐसा जकड़ा गया है कि वह बदहाली के कगार पर खड़ा दिखता है। हैरानी की बात है कि संविधान से मिली सारी वित्तीय शक्तियां, बिहार नगरपालिका कानून में रहते हुए भी न तो राज्य सरकार और न ही निगम के मेयर व पार्षदों का इस ओर कोई ध्यान है। सूबे के नागरिकों की बदहाली का बदस्तूर जारी रहना क्या सरकार, मेयर और पार्षदों को अच्छा लगता है? पार्षद और मेयर ने इसलिए अबतक आवाज नहीं उठाई, क्योंकि वे खुद अपने अधिकार का इस्तेमाल करने में असफल हैं या फिर उन्हें अपनी संवैधानिक शक्तियों की जानकारी ही नहीं है! कोर्ट ने कहा कि क्या यह माना जाए कि सभी लोग जानबूझकर उदासीन बैठे हैं कि पटना के लोगों की दिक्कतों का कोई अंत नहीं हो सकता।