-फर्नांडिस की जयंती पर स्पेशल

-जार्ज फर्नांडिस की पहल पर 1977 में मुजफ्फरपुर में हुई थी फैक्ट्री की स्थापना

-जार्ज फर्नांडिस की पहल पर 1977 में मुजफ्फरपुर में हुई थी फैक्ट्री की स्थापना

-विटामिन बी-3 कंपोजीशन के बाद इम्युनिटी बूस्टर, एजिथ्रोमाइसिन बनाने की थी प्लानिंग

MUZAFFARPUR: जार्ज फर्नांडिस की पहल पर यदि समय रहते सही तरीके से अमल हुई होती तो दवा निर्माण में मुजफ्फरपुर समेत बिहार की अलग पहचान होती। और अभी कोरोना काल में इम्युनिटी बूस्टर और एंटीबायोटिक समेत कई जरूरी दवाओं की कमी नहीं होती। आखिर जिम्मेदारों ने इस पर ध्यान क्यों नहीं दिया।

स्वीडन की तकनीक हुई बेकार

जार्ज के प्रयास से 1977 में मुजफ्फरपुर में इंडियन ड्रग्स एंड फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड (आईडीपीएल) की स्थापना हुई थी। वर्ष 1994 में इसका नाम बिहार ड्रग्स औद्योगिक केमिकल लिमिटेड रखा गया। इसमें स्वीडन से तकनीकी सहयोग प्राप्त था। शुरुआती दौर में नियासिन जैसी विटामिन बी-3 कंपोजीशन, एसिटिक एसिड और दवाओं के लिए कच्ची सामग्री तैयार होती थीं। ग्लैक्सो, फाइजर जैसी नामी कंपनियां कच्चा माल खरीदती थीं। बाद के वर्षो में इसे और विकसित करने की योजना बनी, जो सफल नहीं हो सकी। अंत में अप्रैल, 1996 में यूनिट से उत्पादन बंद हो गया।

450 स्टाफ हुए थे बहाल

सेवानिवृत्त प्लांट इंचार्ज बीएल लाहौरी बताते हैं कि यूनिट की स्थापना के समय 450 कर्मी थे। उस वक्त आइडीपीएल की ऋषिकेश, गुरुग्राम, चेन्नई और हैदराबाद के बाद यह पांचवीं इकाई थी। दवा कंपनियों के अलावा महाराष्ट्र और गुजरात की टेक्सटाइल्स कंपनियां यहां से केमिकल ले जाती थीं। गुणवत्तापूर्ण उत्पाद होते थे। वर्ष 2009 से जब कíमयों को वीआरएस देना शुरू कर दिया गया तो बची-खुची उम्मीद भी खत्म हो गई। अभी वहां दो लोग केयर टेकर हैं। कंपनी परिसर को जिला प्रशासन ने एसएसबी को दे दिया है.2009 में पासवान ने किया था निरीक्षण वर्ष 2009 में तत्कालीन केंद्रीय रसायन एवं उर्वरक मंत्री रामविलास पासवान ने निरीक्षण किया था। दवा उत्पादन की रणनीति पर चर्चा हुई। निर्णय हुआ कि यहां संक्रमण में काम आने वाली एजिथ्रोमाइसिन और बुखार की दवा का भी उत्पादन होगा, लेकिन बातों से आगे काम नहीं बढ़ा।

केंद्र और राज्य सरकार के बीच बात चल रही है। इसमें जो निर्णय आएगा, उसका पालन होगा। फिलहाल इसकी देखरेख की जवाबदेही है।

-नरेश नारायण, प्लांट इंचार्ज