पटना (ब्यूरो)। साहित्य व संगम के उत्सव में फनकार और साहित्यकारों के साथ प्रदेश के बुद्धिजीवी व कला प्रेमी का जुटान एक साथ देखने को मिला। खुले आकाश के नीचे मुक्ताकाश मंच पर पाटलिपुत्र के साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासतों पर बात हो रही थीं। वहीं दूसरी ओर मिर्जा गालिब, मीर तकी मीर, शायर अजीमाबादी के रचनाओं के माध्यम से कार्यक्रम को यादगार बनाने की कोशिश हुई। इस मौके पर देश के नामचीन फनकारों ने अपनी प्रस्तुति दी। शुक्रवार को बिहार संग्रहालय परिसर का मुक्ताकाश मंच नामचीन कलाकरों से गुलजार था। अहद-अनहद, नवरस स्कूल ऑफ परफार्मिंग आट््र्स, इंडियन ह्यूमन डेवलपमेंट व बिहार संग्रहालय के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय साहित्यिक-सांस्कृतिक कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। 19 मार्च तक चलने वाले कार्यक्रम का उद्घाटन पद्मश्री उषा किरण खान, वरिष्ठ फोटोग्राफर रघु राय, वरिष्ठ कलाकार जतिन दास, महोत्सव निदेशक व लेखिका सुजाता प्रसाद, नवरस स्कूल आफ परफार्मिंग आट््र्स के सचिव डॉ। अजीत प्रधान, डॉ। अलख नारायण शर्मा समेत अन्य गणमान्य लोगों ने किया।

पुरानी परंपरा को वापस लाने की जरूरत :
कार्यक्रम के दौरान प्रो। अलख नारायण शर्मा ने कहा कि अजीमाबाद (पटना) कला संस्कृति का प्रमुख केंद्र रहा है। यहां पर शास्त्रार्थ करने वाले लोगों का महत्व रहा है। आरंभ के दिनों में यहां पर कला और कलाकारों का देश दुनिया में नाम रहा है। हमें अपनी पुरानी परंपरा को वापस लाने की जरूरत है। यहां के कालजयी रचनाकारों में रेणु, दिनकर, बाबा नागार्जुन समेत तमाम लोगों ने साहित्य कर्म के साथ सामाजिक आंदोलनों में भी भाग लिया। इसी परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए शहर में ऐसे कार्यक्रम की जरूरत है। डॉ। अजीत प्रधान ने कहा कि यहां की मिट्टी में साहित्य-संस्कृति रची बसी है। आज से 30-40 वर्ष पूर्व दशहरा के मौके पर शास्त्रीय संगीत का जलवा था। देश के अलग-अलग घरानों के कलाकार अपनी प्रस्तुतियों से पूरे शहर को संगीत के सुरों में डुबो देते थे। पंडित किशन महाराज, सितारा देवी, पंडित बिरजू महाराज समेत अनेक ऐसे नाम हैं जिनका ठिकाना शहर में होता था। समय के साथ यहां की विरासत गुम होती गई। अहद अनहद गुम हुई विरासत को लौटने व लोगों के बीच मोहब्बत की डोर को मजबूत करने का छोटा सा प्रयास है।


कला, संगीत के बिना जीवन अधूरा
वरिष्ठ फोटोग्राफर रघु राय ने कहा कि जीवन कला संस्कृति के बिना अधूरा होता है। जीवन में कला और संगीत न हो तो वह नीरस हो जाता है। एक फोटो हजारों शब्द बयां करने के लिए काफी होता है। उन्होंने लोक नायक जयप्रकाश नारायण से जुड़ी यादों का जिक्र करते हुए कहा कि जेपी आंदोलन के दौरान कैमरे में कई फोटो कैद करने का अवसर मिला। ये हमारे जीवन के लिए सबसे अद्भुत क्षणों में से एक रहा। फोटोग्राफी के लिए समय की महत्ता सबसे अधिक होती है। लोगों की आंखों में झांकने का सबसे सशक्त माध्यम फोटो होता है। वरिष्ठ चित्रकार जतिन दास ने बिहार से जुड़े संस्मरणों का साझा किया।

दास्तानगोई के बहाने बसंत की कहानी
मंच पर आसीन शायरा सईदा हमीद, रेने ङ्क्षसह, मनु ङ्क्षसकदर ने शायर मिर्जा गालिब, मीर तकी मीर, फैज समेत अन्य रचनाकारों की रचनाओं में मौजूद बसंत के अलग-अलग रूपों को बयां कर कार्यक्रम में चार-चांद लगा दिया। सईदा हमीद ने मीर तकी मीर की रचना चलते हो तो चमन को चलिए कहते हैं कि बहारां है, पात हरे हैं फूल खिले हैं कम-कम बाद-ओ-बारां है पेश कर सभी का मन मोह लिया। वहीं रेने ङ्क्षसह ने मिर्जा गालिब की रचना फिर इस अंदाज से बहार आई, कि हम मेहर-ओ-मह तमाशाई पेश किया। वहीं फैज अहमद फैज की रचना नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं, करीब उन के आने के दिन आ रहे है, जो दिल से कहा है जो दिल से सुना है, सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं पेश कर समारोह को यादगार बनाया। संगत कलाकारों में तबले पर अशोक ङ्क्षसह, हारमोनियम पर प्रेमचंद लाल, सारंगी पर उस्ताद अली खान ने संगत कर सांस्कृतिक कार्यक्रम को यादगार बनाया।