पटना (ब्यूरो)। महंगाई की मार मूर्तिकारों पर कुछ ज्यादा ही पड़ रही है। वजह की मूर्ति के बनाने में लागत बढ़ गई है, लेकिन मूर्ति के दाम नहीं बढ़ें हैं। इतने के बाद भी खरीदार मूर्ति की गुणवत्ता नहीं बल्कि दाम देख प्रतिमा खरीदते हैं। निर्धारित समयसीमा में मूर्ति निर्माण पूरा करने के लिए कारीगर ओवरटाइम कर रहे हैं। कारीगर व उनका परिवार दुर्गा, उनके अवतारों और राक्षसों की मूर्तियों को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं।

कुर्जी मोड़, बांस घाट, बाकरगंज, सलीमपुर अहरा, कदमकुआं, गर्दनीबाग और अनीसाबाद सहित अन्य इलाकों में कारीगरों ने पहले से ही पुआल, बांस के फ्रेम और मिट्टी की मोटी परतों का उपयोग कर देवी और उनके अवतारों की मूल संरचना तैयार कर ली है।

बांस घाट के पास मूर्ति निर्माण कार्य में जुटे संजय कुमार ने बताया कि देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाना एक लंबी और कठिन प्रक्रिया है। कलात्मकता के उत्कृष्ट नमूने बनाने के लिए इसे काफी व्यवस्थित और सावधानी से किया जाना चाहिए। मेरे परिवार के सभी सदस्य मूर्तियां बनाने की प्रक्रिया में लगे हुए हैं। कुर्जी मोड़ के कारीगर गोपाल पंडित ने कहा कि वे करीब दो दशक से इस पेशे से जुड़े हैं। उन्हें इस बात का मलाल है कि मूर्ति निर्माण अब कोई लाभदायक व्यवसाय नहीं रह गया है। पहले, एक त्योहारी सीजन में, वह पूरे साल के लिए अपने परिवार के भरन पोषण के लिए पर्याप्त पैसा कमा लेते थे। लेकिन, अब सामग्री की बढ़ती लागत और श्रमिकों की दैनिक मजदूरी के कारण कमाया गया पैसा खर्चों के अनुरूप नहीं है।

कदम कुआं के मूर्ति निर्माता संतोष कुमार ने कहा कि उन्हें इस साल औसतन 15000 रुपये प्रति मूर्ति की दर से पांच मूर्तियों का ऑर्डर मिला है। लेकिन, वह मुश्किल से प्रति मूर्ति 1000 से 1500 रुपये कमा पाते हैं। उनका कहना है कि इस अल्प आय से वह कब तक अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकेंगे।