-तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा ने शिक्षा सत्र के दूसरे दिन खुशहाली के बारे में बताया

द्दन्ङ्घन्/क्कन्ञ्जहृन्: तिब्बतियों के धर्मगुरु दलाई लामा ने अपने टीचिंग सत्र के दूसरे दिन शनिवार को कहा कि जीवन को खुशहाल बनाना चाहते हैं। तो क्रोध, ईष्र्या और घमंड का परित्याग करें। सभी सुख की कामना चाहते हैं। इसके लिए मन को वश में रखना होगा। भौतिक विकास से शारीरिक सुख मिल सकती है लेकिन मानसिक सुख नहीं। मनुष्य का वास्तविक स्वभाव करूणा, प्रेम और मैत्री युक्तहै। ऐसा वैज्ञानिक भी कहते हैं। मनुष्य को दुखी बनाने वाले कई कारक है। जिसमें प्रमुख है अविद्या। उन्होंने कहा कि शून्यता के ज्ञान का उदय होने से अविद्या का क्षय होता है। अविद्या के निरोध से संस्कार और संस्कार के निरोध से जन्म लेने की प्रक्रिया खत्म होती है। इससे प्रज्ञा पारमिता का उदय होता है, जिससे निर्वाण की प्राप्ति होती है। साथ ही बोधिसत्व की साधना सफल होती है।

दिमाग से तेज होते हैं दक्षिण भारतीय

दलाई लामा ने बोधिचित्त के उत्पाद के लिए सप्तविध अनुत्तर पूजा का विधान बताया। जिसमें वंदन, पूजन, पापदेशना, पुण्यानुमोदन, बुद्धध्येषणा, बुद्धयाचना व बोधिपरिणामना शामिल है। अनुत्तर पूजा मानसिक होती है। इस पूजा से बोधिचित्त का उदय अवश्य होता है। सभी जीवों के उद्धार के लिए बुद्धत्व की प्राप्ति के लिए सम्यक संबोधि में चित्त लगाना ही बोधिचित्त ग्रहण करना है। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारतीय लोग दिमाग से तेज होते हैं।