पटना ब्‍यूरो। देश की प्राचीन परंपरा और उसमें विज्ञान के कई सरल व रहस्यमयी बातों का जिक्र है। इसे और समझने और परंपरागत समाज में विज्ञान की परंपरा का महत्वपूर्ण तरीके से मौजूदगी रही है। इसके कई उदाहरण भी मौजूद रहे हैं। ये बातें पटना यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी और वर्तमान में मुंगेर यूनिवर्सिटी के फाउंडर वीसी और रसायनविद प्रोफेसर रंजीत कुमार वर्मा का लेक्चर के दौरान कही। प्रोफेसर वर्मा ने प्राचीन भारत एवं भारतीय ग्रंथों में रसायन विज्ञान के विविध आयामों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस क्रम में उन्होंने बराबर की पहाड़ी पर अवस्थित नागार्जुन की गुफा को संसार की प्राचीनतम सुसज्जित प्रयोगशाला बताया। उन्होंने आगे ब्रह्मांड पुराण के एक श्लोक को उद्धत करते हुए कहा कि गंगा में मल विसर्जन, अधजले शव को प्रवाहित करने, शरीर प्रच्छालन जैसे 13 क्रियाकलापों का निषेध किया गया हैं। पुराण की यह भावना आज भी समीचीन है।


वैज्ञानिक पहलूओं को रखा
साथ हीं प्राचीन काल के ऋषि व संाख्य दर्शन के प्रवर्तक आचार्य कणाद के परमाणु ज्ञान को आज भी समीचीन व पूर्ण वैज्ञानिक दर्शन बताया। उसी प्रकार चरक, सुश्रत के आयुर्वेद ज्ञान को आज भी प्रासंगिक है। हड़प्पा मोहन-जोदड़ो संस्कृति में पाए गए विज्ञान विषयक अवशेष पर भी उन्होंने प्रकाश डाला। प्रोफेसर प्रफुल्ल चंद्र रे द्वारा लिखित 'हिस्ट्री ऑफ हिंदू केमिस्ट्रीÓ के विविध वैज्ञानिक पहलुओं को भी सामने रखा। उन्होंने आगे कहा कि हमें अपने पुरातन शास्त्रों में छिपे वैज्ञानिक ज्ञान पर गर्व करना चाहिए। मौके पर बीएन कॉलेज के प्राचार्य राजकिशोर प्रसाद ने भी बोधायन सूत्र में पूर्व से मौजूद पायथागोरस सिद्धांत होने की बात कही।

गणित विज्ञान सभी शास्त्रों से उपर
डॉ राजकिशोर प्रसाद ने प्राचीन भारतीय ज्ञान परंपरा के विभिन्न पहलुओं जैसे गणित खगोल विज्ञान ज्योतिष विज्ञान ज्योतिष विज्ञान वेदांग इत्यादि पर विस्तार से चर्चा किया। उन्होंने अपने भाषण में यह कहा की प्राचीन भारतीय मनीषियों ने गणित विज्ञान को सभी शास्त्रों के ऊपर का स्थान दिया और इसलिए भारतीय ज्ञान परंपरा में गणित का विकास काफी ज्यादा हुआ। इसे लेकर वेदांग ज्योतिष में श्लोक का भी जिक्र है। जिसमे कहा गया है- जथा शिखा मयूरा नाम, नागा नाम मलयो जथ, वेदांग सर्वशास्त्रानाम, गणितम मूर्भिन्न इस्थितम । उन्होंने कहा कि बीसी में वेदांग ज्योतिष की रचना हुई है और इसमें कहा गया है कि गणित का स्थान ठीक उसी तरह सभी शास्त्रों से उपर है। जैसे, मयूर में उनका शिख और नाग में उसका मणि। उन्होंने लेक्चर के दौरान इस बात पर जोर दिया कि आज की युवा पीढ़ी इन बातों को जाने। यह गर्व की बात है और यह भारतीय वेदांग परंपरा की खास बातें है।

विकसित भारत के लिए खीखें विज्ञान
डॉ। राजकिशोर ने आगे कहा कि भारत को विकसित बनाने के लिए स्टूडेंट्स को अपने प्राचीन विरासत और परंपराओं पर वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन करने एवं उसे समझाने पर जोर डाला। जानकारी हो कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति में कारण अब प्राचीन ग्रंथो में बिम्बित विज्ञान के विविध आयाम पाठ्यक्रम में शामिल किया जा रहे हैं। मंच संचालन रसायन शास्त्र के सहायक अध्यापक एवं इस व्याख्यान माला के समन्वयक डॉक्टर कुमार कृष्णानंद ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन अंग्रेजी के विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर डीएन सिन्हा द्वारा किया गया। मौके पर पीजी कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट के एचओडी, प्रोफेसर शैलेंद्र, पूटा के अध्यक्ष डॉक्टर अभय कुमार, संस्कृत के विभाग अध्यक्ष डॉ मुरारी शरण मांगलिक सहित महाविद्यालय के सभी शिक्षक एवं बड़ी संख्या में छात्रगण उपस्थित रहे।