पटना (ब्यूरो)। 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए कोचिंग का दरवाजा बंद किया जा रहा है। तो अब कोचिंग के बड़े -बड़े दावे और शोर से निजात मिलेगी। सरकार ने पहले ही यह मंशा जाहिर कर दी थी कि कोचिंग की का मतलब बच्चों के लर्निंग का नैसर्गिक विकास नहीं हो पाएगा। हाल ही में कोटा में आत्महत्या की घटनाओं ने भी कोचिंग की छवि को नकारात्मक किया है और सरकार के हालिया निर्णय पर प्रतिक्रियाओं का दौर शुरू हो गया है। दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने भी इस विषय पर शिक्षकों, पैरेंट्स-टीचर्स एसोसिएशन और एक्सपर्ट से बातचीत की। पेश है रिपोर्ट ।


क्या आप जानते हैं ?
दक्षिण कोरिया में दुनिया कीे सबसे बड़ी कोचिंग और टूटोरियल इंडस्ट्री है, जिसका आकार 20 मिलियन के करीब है। वहीं, भारत इस देश से कई गुणा आगे है लेकिन यहां पर कोचिंग या टूटोरियल बिजनेस का आकार पांच बिलियन के करीब है। भारत का यह डाटा एसोचैम के हवाले से बताया गया है।

यह हमारे मौलिक अधिकार का उल्लंघन
कोचिंग एसोसिएशन ऑफ भारत के फाउंडर सुधीर सिंह का कहना है कि यह हमारे मौलिक अधिकारों का हनन है। इसे कोर्ट में चैलेंज किया जाएगा। देश का कोई भी नागरिक कहीं भी, कोई भी बिजनेस कर सकता है, जो जनोपयोगी है। लेकिन केन्द्र सरकार के इस निर्णय से वैसे पैरेंट्स को धक्का लगेगा जो अपने बच्चों को अकादमिक रूप से बेहतर बनाना चाहते हैं। कई बच्चे पहले से ही ओपेन स्कूलिंग में हैं या किसी साधन -संपन्न स्कूल में नहीं पढ़ रहे हैं। ऐसे में वैसे बच्चे कैसे किसी प्रतिष्ठित एवं साधन संपन्न स्कूलिंग का मुकाबला कर सकेंगे। इसलिए यह निर्णय उचित नहीं है।

अब स्कूलों की जिम्मेदारी बढ जाएगी। जहां कोचिंग की वजह से गरीब और अमीर बच्चों का अंतर होता था, वह ट्रेंड भी कमजोर होगा। कोचिंग में भेजने के लिए पैरेंट्स के कंधों पर जो अतिरिक्त आर्थिक बोझ होता है, उससे भी राहत मिल सकती है।
- श्यामल अहमद, राष्ट्रीय अध्यक्ष प्राइवेट स्कूल एंड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन

यह अच्छा निर्णय आया है। स्कूल ही एक प्रॉपर लर्निंग की जगह है और स्कूल जाने की उम्र में कोचिंग जाना ही गलत है। स्कूल में बच्चे ज्यादा आएंगे और अच्छा सीखेंगे। स्कूल के टाइम में कोचिंग जाने से उनकी पढाई प्रभावित होती है।
- मेरी अल्फांसो, प्रिंसिपल डॉन बास्को स्कूल पटना

निर्णय उचित है। बच्चों को कंपिटिशन के लिए अर्ली एज में झोंक देना उचित नहीं है। बच्चे का जो पढाई स्कूल में होती है और जो एक्सरसाइज होना चाहिए, वह कोचिंग में नहीं होता है। शुरूआत बेहतर करने के लिए स्कूल ही जरूरी है।
- आभा चौधरी, सीनियर टीचर नोट्रेडेम एकेडमी पटना

निर्णय को एकतरफा नहीं देखा जा सकता है। कई बच्चे फस्र्ट जेनरेशन स्कूल जाने वाले हैं तो ऐसे में उनके लिए कोचिंग का सपोर्ट हो सकता है। लेकिन दूसरी ओर, कोचिंग जाना ही शत प्रतिशत समाधान नहीं है। स्कूल में बच्चे पढाई और कई जरूरी बातें सीखते हैं।
- मिताली मुखर्जी, प्रिंसिपल मिलेनियम वल्र्ड स्कूल, पटना

कई स्कूल में 'फ्लाइंग स्टूडेंट की समस्या है। अभी जो फैसला आया है, उसमें यह बात तय है कि कम से कम बच्चा दसवीं तक तो स्कूल में ठीक से पढ़ सकेगा। स्कूल में ही बच्चों को सर्वांगीर्ण विकास का अवसर मिलता है। इसलिए स्कूल की अनिवार्यता है।
- मनीष अरुणाचलम, मेंबर पैरेट टीचर एसोसिएशन, नोट्रेडेम एकेडमी

वर्तमान में स्कूलों की पढाई बहुत स्तरीय नहीं रह गई है। इसलिए कोचिंग का चलन अस्तित्व में आया है। सरकार का यह निर्णय पूर्णत: सही नहीं है। स्कूल का स्तर भी बेहतर करना होगा। कोचिंग के शिक्षकों के बेरोजगार होने की भी समस्या हो जाएगी।
राजेश पाण्डेय, राज्य समन्वयक प्रथम

यह पैरेंट्स के लिए अच्छा निर्णय है। बच्चों को कोचिंग पर ही निर्भर छोड़ देना सही नहीं है। बच्चों के पास पढाई के लिए स्कूल का ही सपोर्ट होना बेहतर है। साथ ही बच्चों की पढाई पर अनावश्यक आर्थिक दबाव भी नहीं झेलना होगा।
- एमपी सिंह, पैरेंट

बच्चों का भविष्य अनमोल है। स्कूल एक संस्थागत तरीके से पढने ही नहीं, उनके ओवरऑल डेवलपमेंट का भी जरिया है। इसलिए कोचिंग को कम से कम अर्ली एज में रोकना सही कदम है। साथ ही, बच्चों को काम्प्टीशन का अनावश्यक दबाव से भी बचाना है।
- पीयूष कुमार, पेरेंट