पटना ब्‍यूरो। एक समय था जब नन्हीं गौरैया घर के आंगन में चहकती-फुदकती दिख जाती थी, लेकिन अब इसकी आवाज हमारे कानों तक नहीं पहुंचती। दिनों-दिन गौरैया की संख्या में कमी आती जा रही है। दुनियाभर में गौरैया की 26 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से पांच भारत में देखने को मिलती हैं। इंडियन वर्ड सोसायटी के 2020 में आई रिपोर्ट के अनुसार इसकी संख्या लगभग 1.6 करोड़ थी। लेकिन अब इसकी संख्या में 75 फीसदी तक कमी आई है। जिसके कई कारणों में से एक आधुनिक जीवन शैली और पारंपरिक शैली के घरों का न होना भी है। विशेषज्ञ मानते हैं गौरैया की संख्या में कमी के कारणों में आहार, खासकर कीड़ों की हो रही कमी को भी माना जा रहा है। आजकल लोग खेतों से लेकर अपने गमले के पेड़-पौधों में भी रासायनिक पदार्थ का उपयोग करते हैं। जिससे ने तो पौधों को कीड़े लगते हैं और न ही इस पक्षी को समुचित भोजन मिल पाता है। इसके साथ ही अनाज की घरेलू स्तर पर साफ-सफाई जैसे कार्यों के कम होने का भी असर गौरैया की संख्या पर पड़ रहा है।

प्रजनन दरों में आई कमी


गौरैया संरक्षण के लिए काम करने वाले नरेश अग्रवाल ने बताया कि गौरैया के प्रजनन दरों में भी कमी आई है। उन्होंने बताया कि प्रजनन के समय गौरैया ज्यादातर खेतों में होने वाले कीट-पतंगों पर निर्भर रहती थी। लेकिन खेतों में कीटनाशक के प्रयोग से अब उन्हें आहार नहीं मिल पाता है।

साल में एक बार प्रजनन करती है गौरैया


पीआईबी पटना के उपनिदेशक संजय कुमार गौरैया पर तीन किताबें लिख चुके हैं। वह गौरैया संरक्षण के लिए भी काम करते हैं। संजय ने बताया कि गौरैया के रहने के लिए शांत वातावरण का होना बेहद जरूरी है। साल में एक बार ही गौरैया प्रजनन करती है। जिसमें तीन से पांच अंडे तक देती है। उनके प्रजनन का समय मार्च से जून तक होता है। संजय बताते हैं कि शांत वातावरण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि मेल गौरैया की मीटिंग होती है जिसमें वे गीत संगीत के माध्यम से फीमेल गौरैया को अपनी ओर लुभाते हैं। लेकिन जहां पर ज्यादा ध्वनि प्रदूषण होगा वहां से उनका पलायन स्वभाविक तौर पर होगा।

घरों में बनाए रखती है सकारात्मक उर्जा


गौरैया संरक्षक नरेश अग्रवाल बताते हैं कि जिस घर में गौरैया का वास होता है वहां हमेशा सकारात्मक उर्जा बनी रहती है। गौरैया की चहचहाट से जहां हमें हर पल सुबह का एहसास होता है। उनकी आवाज से हमारी आवाज भी तरोताजा रहती है।

सामाजिक पक्षी है गौरैया


नरेश अग्रवाल बताते हैं कि गौरैया एक सामाजिक पक्षी है। वह हमेशा इंसानों के बीच रहना पसंद करती है। वह पेड़ों से ज्यादा आम इंसानों के बीच ही रहना पंसद करती है। लेकिन अब पहले की तरह खुला घर नहीं बन रहा है। घरों में न तो रौशनदान होते हैं, न ही आंगन। ऐसे में वे अब इंसानों से कहीं न कहीं दूर होते जा रही है।

गौरैया बॉक्स से संरक्षण की कोशिश पर असर


संजय कुमार और नरेश अग्रवाल ने गौरैया संरक्षण के लिए गौरैया बॉक्स डिजाइन किया है। जिसमें उनके लिए दाना-पानी के अलावा गौरैया के रहने का भी स्पेश होता है। संजय के अनुसार अब घरों के बालकनी के आगे इन बॉक्स को टांग देने और इनमें दाना-पानी रखने का एक अच्छा असर हुआ है। ऐसे सैकड़ों जगहों पर गौरैया बॉक्स रखा गया है। जिसका असर है कि जहां से गौरैया का बिल्कुल पलायन हो गया था। अब इन बॉक्स के लगने के बाद यहां फिर से उनका बसेरा बन गया है।

2010 में शुरू हुआ था विश्व गौरैया दिवस


नेचर फॉरेवर सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद दिलावर के प्रयासों से पहली बार 2010 में विश्व गौरैया दिवस मनाया गया था। तब से हर साल 20 मार्च को यह दिवस मनाया जाता है। इसका मकसद गौरैया के संरक्षण के प्रति लोगों में जागरूकता लाना है।

पटना का गंगा पथ बना नया बसेरा


पटना में गंगा पथ के नीचे बने अंडर पास में बड़ी संख्या में गौरैया ने अपना बसेरा बनाया है। संजय कुमार बताते हैं कि यह इलाका बिल्कुल प्राकृतिक तौर पर गौरैया के आवास अनुकूल है। अभी हजारों की संख्या में इन अंडरपास के दराजों में गौरैया रहती हैं। यहां पर्याप्त मात्रा में आहार व पानी उपलब्ध है।