PATNA : बिहार में आरटीआई कार्यकर्ताओं को सुरक्षा देने में सरकार नाकाम है। वर्ष 2005 में आरटीआई लागू किए जाने के बाद अब तक बिहार में 14 आरटीआई कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। इस वर्ष चार आरटीआई कार्यकर्ता मौत के घाट उतारे जा चुके हैं।
आरटीआइ कार्यकर्ताओं का संगठन नागरिक अधिकार मंच ने डीजीपी केएस द्विवेदी को एक ज्ञापन सौंपकर राज्य में सूचना का अधिकार कानून का इस्तेमाल करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं की जानमाल की सुरक्षा व मारे गए कार्यकर्ताओं के हत्यारों की गिरतारी की भी गुहार लगाई है।
झूठे मामले में फंसाया जा रहा
मंच के संयोजक शिवप्रकाश राय ने बताया कि पिछले 13 वर्षों में मौत के घाट उतारे गए 14 आरटीआई कार्यकर्ताओं के हत्यारों को अबतक गिरफ्तार तक नहीं किया जा सका है। इसका हश्र यह है कि सरकारी स्तर पर भ्रष्टाचार को छुपाने वाले अधिकारी आरटीआई के तहत मांगी गई सूचनाएं उपलब्ध कराने में कोई
दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं।
इतना ही नहीं, राज्य का शायद ही कोई जिला हो जहां सूचना का अधिकार कानून को भ्रष्टाचार के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले आरटीआई कार्यकर्ताओं को स्थानीय प्रशासन के सहयोग से झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल न भेजा गया हो। उन्होंने कहा कि इस साल की शुरुआत में ही सहरसा के युवा आरटीआइ कार्यकर्ता राहुल झा को मौत के घाट उतार दिया गया। उसके बाद वैशाली के गोरौल के रहने वाले एक युवा आरटीआई कार्यकर्ता जयंत कुमार , मोतिहारी के संग्रामपुर निवासी राजेंद्र प्रसाद सिंह को और पिछले दिनों जमुई के सिकंदरा के रहने वाले बाल्मिकी यादव उर्फ धर्मेंद्र यादव को मौत के घाट उतार दिया गया। इसका असर सूचना के अधिकार का इस्तेमाल करने वाले लोगों के मनोबल पर तो पड़ ही रहा है, दूसरी तरफ भ्रष्ट लोकसेवकों और भ्रष्टाचार में शामिल जनप्रतिनिधियों का मनोबल लगातार बढ़ता जा रहा है।
13 वर्षों 14 हत्या
क्रम नाम जिला वर्ष
1. शशिधर मिश्रा बेगूसराय 2010
2. रामविलास सिंह लखीसराय 2011
3. डॉ। मुरलीधर जायसवाल हवेली खड़गपुर 2012
4. राहुल कुमार मुजफरपुर 2012
5. राजेश यादव भागलपुर 2012
6. रामकुमार ठाकुर मुजफरपुर 2013
7. सुरेंद्र शमा मसौढ़ी, पटना 2015
8. गोपाल प्रसाद बक्सर 2015
9. गोपाल तिवारी गोपालगंज 2016
10. मृत्युंजय सिंह भोजपुर 2017
11. राहुल झ सहरसा 2018
12. जयंत कुमार वैशाली 2018
13. राजेंद्र प्रसाद सिंह मोतिहारी 2018
14. बाल्मिकी यादव जमुई 2018