PATNA : भैरव लाल दास की किताब महात्मा गांधी के तीसरे गुरु पं। राजकुमार शुक्ल के लोकार्पण समारोह की अध्यक्षता करते हुए प्रो। डॉ। रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि 1857 ई। के सिपाही विद्रोह के बाद बिहार के सबसे बड़े जननेता पं। राजकुमार शुक्ल ही हुए। गांधी को चम्पारण आमंत्रित करने में सफल होते ही उन्होंने भारत के राष्ट्रीय आंदोलन का परिदृश्य ही बदल डाला। सिपाही विद्रोह के लगभग साठ वर्षो के बाद चम्पारण आंदोलन ही देश के सबसे सफल आंदोलन के रूप में इतिहास में चित्रित है। उन्होंने कहा कि चम्पारण में गांधी को ईश्वर के रूप में स्थापित करने में पं। शुक्ल का बहुत बड़ा योगदान था। वहां के लोगों में धारणा बन गई थी कि वे अवतार पुरुष हैं और उन्हें जेल में बंद नहीं किया जा सकता है। पुस्तक का परिचय कराते हुए पूर्व आईएएस गुलरेज होदा ने कहा कि चम्पारण आंदोलन की पृष्ठभूमि 1908 के साठी आंदोलन से ही शुरू हो जाती है जिसके नायक शेख गुलाब, राजकुमार शुक्ल और शीतल राय थे। उन्होंने कहा कि अगली पीढ़ी को गांधी के चम्पारण सत्याग्रह को समझने के लिए यह किताब अयंत महवपूर्ण होगी।

बारीकियां समझने में मदद

उन्होंने कहा कि पं। शुक्ल का गांव सतवरिया में एक संग्रहालय का निर्माण होना चाहिए क्योंकि इस क्षेत्र के विकास के लिए मुरली भरहवा, साठी, भीतिहरवा, रमपुरवा, लौरिया, नन्दनगढ़ सहित वाल्मिकीनगर आदि क्षेत्रों को पर्यटन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना आवश्यक है। पटना विश्वविद्यालय की प्रो। डॉ। डेजी नारायण ने कहा कि बिहार के इतिहास का सबऑल्टर्न अध्याय पं। राजकुमार शुक्ल से ही शुरू होती है। इतिहासकार शाहिद अमीन ने चौरी-चौरा का जिस प्रकार ऐतिहासिक वर्णन किया है, इस किताब में तथ्यों को उसी प्रकार से सजाया गया है। इतिहास की आगामी पीढ़ी को चम्पारण सत्याग्रह की बारीकियों से यह किताब अवगत कराएगी।

महानायकों को भूल रही पीढ़ी

पटना कॉलेज के पूर्व प्रधानाचार्य प्रो। नवल किशोर चौधरी ने कहा कि जिस प्रकार एक व्यक्ति के लिए याददाश्त का महत्व होता है, उसी प्रकार पूरे समाज के याददाश्त महत्वा है। आज की पीढ़ी हमारे महानायकों को भूलती जा रही है और ऐसे समय में इस किताब की महवपूर्ण भूमिका है। उन्होंने कहा कि जब तक समाज अपना नायक गढ़ना नहीं सीखेगी,तब तक सामाजिक हालात में परिवर्तन नहीं आएंगे। लेखक भैरव लाल दास ने कहा कि लोक दस्तावेजों के साथ अभिलेखागार में रखित तथ्यों को समेकित करने की कला आज की पीढ़ी को सीखनी चाहिए अन्यथा हम ऐतिहासिक तथ्यों के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे।

आत्मकथा का अध्ययन जरूरी

उन्होंने कहा कि पं। शुक्ल को समझने के लिए गांधीजी की आत्मकथा का अध्ययन अत्यंत आवश्यक है। आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए पं। राजकुमार शुक्ल के नाती रविभूषण राय ने कहा कि पं। शुक्ल को याद करने का हमारा यह छोटा प्रयास है। संचालन करते हुए गांधी संग्रहालय, भितिहरवा के प्रभारी डॉ। शिवकुमार मिश्र ने कहा कि इस क्षेत्र में पर्यटन की असीम संभावना है क्योंकि गांधी के साथ-साथ बुद्ध की भी यह धरती रही है। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कमलनयन श्रीवास्तव ने कहा कि जब तक गांधी और उनका वांड.मय है, पं। शुक्लजी आदरणीय बने रहेंगे। कार्यक्रम में प्रो.जयदेव मिश्र, सफदर इमाम कादरी, प्रो। मधु वर्मा, प्रो। सतीश कुमार, फादरजोश कलापुरा, श्यामानन्द चौधरी, उषा झा, रंगनाथ चौधरी, डॉ। नीतू कुमार नूतन, अनिता सिंह, डॉ। रमानन्द झा रमण, प्रेमलता मिश्रा, प्रो। डॉ। सुधा सिन्हा, डॉ। अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, रामसेवक राय, डॉ। अशोक कुमार सिन्हा,डॉ। सोहैल अनवर, ई। के.एन। सहाय, कुमार गगन, डॉ। विनय कर्ण, राजेश राज, जयप्रकाश, संजय कुमार सिंह, रत्नेश वर्मा, भारत भूषण झा, अलका दास सहित बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी उपस्थित थे।