पटना(ब्यूरो)। एक बार फिर से पटना में राष्ट्रीय राजनीति में बदलाव की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। देश के विभिन्न राज्यों से करीब 16 राजनीतिक दल पहुंचे हैं और केन्द्र की राजनीति में सत्तासीन बीजेपी को मिलकर चुनौती देने के लिए एकजुट हुए हैं। यह कोई पहला मौका नहीं है जब राष्ट्रीय राजनीति में पटना में पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। इससे पहले भी पटना में अलग-अलग समय पर राजनीतिक बदलाव का दौर रहा है जिसने राष्ट्रीय राजनीति को दिशा देने का काम किया है। वर्तमान में विपक्षी एकता को लेकर यह बैठक आगे कितना संगठित रहेगा, यह अभी कहना मुश्किल है, लेकिन नीतीश कुमार पर देश की विभिन्न पार्टियों ने अपना भरोसा जरूर जताया है। अब वे सभी विपक्षी दलों के सर्वमान्य संयोजक बनाए गए हैं।

तब और अब में अंतर

पटना में इससे पहले सन् 1974 के दौरान संपूर्ण क्रांति के अग्रदूत के रूप में जय प्रकाश नारायण सामने आये। उनके आह्वान पर तब जनसंघ भी उनसे जुट गया। संपूर्ण क्रांति का नारा दिया गया। खुद जय प्रकाश नारायण ने कहा था कि मैं सत्ता पाने नहीं बल्कि बदलाव लाने के लिए एक माध्यम बना हूं। इसके बाद 1977 में जनता दल का गठन किया गया। उस समय भी कांग्रेस के खिलाफ सभी एकजुट हुए। इसके बाद 1989 में वीपी सिंह के नेतृत्व में जनमोर्चा तैयार किया गया। तब शरद यादव, जार्ज फर्नांडीज और राम विलास पासवान जैसे दिग्ग्ज नेता इस मुहिम से जुड़े थे। यह तब की बात है। अब भी राजनीतिक परिवर्तन का आह्वान किया जा रहा है जिसमें बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए एकजुट हुए हैं सभी। राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सुमन का कहना है कि एक बात कॉमन है सभी सत्ता परिवर्तन के लिए एक जुट हैं, जो पहले भी था। अंतर सिर्फ यह है कि तब कांग्रेस थी सत्ता में और अब बीजेपी हैै।

सदाकत आश्रम में होते थे महत्वपूर्ण बैठकें

आधुनिक इतिहासकारों के मुताबिक पटना में सदाकत आश्रम एक लंबे समय से महत्वूपर्ण राजनीतिक बैठकों का अड्डा रहा है। गुलाम भारत में स्वतंत्रता संग्राम खास तौर पर भारत छोड़ों आंदोलन की पृष्टभूमि में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। महात्मा गांधी, डॉ। राजेंद्र प्रसाद, सर सैयद अहमद खां समेत कई राष्ट्रीय नेता दिल्ली में होने वाले आंदोलनों की तैयारी यहां बैठकर करते थे। आज भी यह कांग्रेस पार्टी के मुख्यालय होने के अलावा कई महत्वपूर्ण राजनीतिक निर्णय का केन्द्र बिंदु है।